अपनी बात

कभी अमेरिका, कभी नेपाल-पाकिस्तान, आखिर चीन भारत से इतना डरा हुआ क्यों है, औकात पता चल गया क्या?

जब चीन स्वयं को इतना बड़ा शूरमा समझ ही रहा हैं तो फिर विधवा प्रलाप क्यों कर रहा हैं, वो बार-बार भारत को गीदड़ भभकी क्यों दे रहा हैं, कभी उसका ग्लोबल टाइम्स यह कह रहा है कि भारत को अमरीका भड़का रहा है। कभी कहता है कि अमेरिका भारत को झूठा दिलासा दिलाना चाह रहा है कि भारत के साथ अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का समर्थन है, जबकि भारत ने न तो अमेरिका और न ही पश्चिमी देशों से समर्थन की मांग की है।

कभी उसका ग्लोबल टाइम्स और चीनी मीडिया यह कहता है कि चीन के साथ अगर भारत का युद्ध होता है, तो भारत के पड़ोसी देश नेपाल और पाकिस्तान चीन के साथ होंगे, (अरे मूर्ख चीन, क्या भारत को इस बात की जानकारी नहीं हैं, कि तू उसे बताने की कोशिश कर रहा हैं, एकदम लोल ही हैं क्या?) इससे भारत को युद्ध में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता हैं, जबकि भारत अच्छी तरह जानता है कि जब भी चीन से भारत की युद्ध होगी, तो पाकिस्तान कश्मीर पर हमले करेगा और नेपाल चीन की सहायता में सबसे आगे रहेगा।

भारत का बच्चा-बच्चा भी यह जानता है कि जब तक ऐसा नहीं होगा, चीन और पाकिस्तान को पता भी नहीं चलेगा कि भारत क्या है? ऐसे भी भारतीय सैनिक, पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानियों को कई बार बता चुके हैं, कि भारत की सैन्य शक्ति क्या है? और हाल ही में तीन-चार दिन पहले चीन की सेना को भी भारतीय सैनिकों के करारे हाथों का उनके गालों पर लगा थाप जरुर बताया होगा, कि भारतीय सैनिकों में कितने दम हैं।

तभी तो चीनियों के मुंह सुजे हैं, तभी तो भारत का मनोबल कैसे टूटे? भारत चीन से नहीं लड़े, इसके लिए तिकड़म भिड़ा रहे हैं, जबकि भारत के प्रधानमंत्री ने, चीन को साफ कह दिया है कि भारत चीन को उसके किये का जवाब जरुर देगा, और लीजिये भारत ने चीन को जवाब देना शुरु भी कर दिया, उसे आर्थिक चोट पहुंचाना शुरु भी कर दिया।

भारतीय रेलवे ने चीन की कंपनी बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिजाइन इंस्टीच्यूट ऑफ सिग्नल एंड कम्यूनिकेशन लिमिटेड को दिये गये कांन्ट्रेक्ट को कैंसिल कर दिया है। आपको मालूम होना चाहिए कि इस कंपनी को कानपुर-दीनदयाल उपाध्याय रेलखंड को बनाने का ठेका मिला था, जो करीब 417 किलोमीटर लंबा कोरिडोर है।

इधर भारत संचार निगम लिमिटेड ने भी फोर जी अपग्रेडेशन के लिए चाइनीज इक्वपमेन्ट्स को इस्तेमाल नहीं करने की बात कही है। उसने अपनी पुरानी टेंडर को भी रद्द कर दिया है, तथा नये टेंडर में चीनी कंपनियों को बोली लगाने की मनाही भी है, यानी जिस गुमान में चीन था कि भारत के लोग केवल बोलते है, करते नहीं, उसे अब पता चलेगा कि भारत के लोग जब करने को आते हैं तो चीन जैसे देश की सरकार को यह बताने में भी शर्म आता है कि उसके कितने सैनिक भारतीय सैनिकों के हाथों मारे गये, क्योंकि ऐसा करने से, विश्व को बताने से, फिर उसकी सारी हेकड़ी विश्व के अन्य देशों को पता चल जायेगी कि भारत अब 1962 वाला नहीं हैं, वो चीन का गर्दन पकड़कर, उसका टेटूआ दबा सकता है।

जरा देखिये भारतीय सैनिकों का कमाल, चीन की वो दशा कर दी है कि चीन बता ही नहीं रहा कि उसके कितने सैनिक इस दुनिया में नहीं हैं, चीन के नागरिकों की ये दशा हो गई है कि वे अपनी सरकार से पूछ भी नहीं सकते कि उनके परिवार के लोगों जो गलवान घाटी में थे, वे अब कहां हैं?

यानी चीन और चीनी मीडिया की हालत पस्त है, वे इस पर बात करने को दबाव बना रहे है कि भारत उससे बात करें, और दोनों देश कोई ऐसा कदम उठाये कि चीन की इज्जत बच जाये, पर भारत ने ऐसा कड़ा रुख कर दिया है कि चीन की न बोलते बन रही हैं और न कुछ करते बन रही है। अब तो उसके सामने इस बात का संकट है कि जिस नेपाल और पाकिस्तान के पीठ पर उसने हाथ रखी थी, अब उस नेपाल-पाकिस्तान के सामने वो कौन सा मुंह लेकर जायेगा।

इधर चीन की हालत यह है कि जहां उसका कब्जा है, उस हांगकांग के लोग चीन के खिलाफ कार्टून बना रहे हैं, भारत का समर्थन कर रहे हैं। ताइवान न्यूज ने तो वह कार्टून ही प्रमुखता से प्रकाशित कर दिया, जिसमें चीन की नाक कट रही है, भगवान राम ड्रैगन को नर्क की सैर कराने के लिए तत्पर है, ऐसे में जो ग्लोबल टाइम्स भारत को डराने की कोशिश में जो लगा है, उसे अपने आस-पास की खबरों पर भी ध्यान देना चाहिए कि उसके अगल-बगल के देश भारत और चीन के युद्ध के बारे में क्या सोचते हैं?

शायद चीन को मालूम नहीं कि उसके कोरोना के जन्म देने के बाद पूरे विश्व में उसकी क्या पहचान बनी है, आज कोरोना को लोग चीनी वायरस के नाम से जानते हैं, यही चीन की पूरे विश्व में औकात है और भारत के साथ युद्ध का हौवा करने की कोशिश, सिर्फ यही है कि पूरे विश्व का ध्यान उस चीनी वायरस से हट जाये, पर चीन को पता नहीं कि विश्व के एक दो पिद्दी जैसे देशों को छोड़कर, आज कोई उसके साथ नहीं हैं, और न आना चाहेगा।

खुशी इस बात की है, चीन को उसकी औकात बताने की शुरुआत भारत से हो गई। उधर भारत सरकार और उसके उपक्रमों ने चीनी कंपनियों को ठेंगा दिखाना शुरु किया, और इधर चीन के उत्पादों का बहिष्कार करने के लिए देश के खुदरा व्यापारियों के संगठन कान्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने चीनी सामानों के बहिष्कार करने की अपील कर दी।

खुशी इस बात की भी है कि आज भारत का प्रत्येक युवा चीन के खिलाफ जा चुका है और भारतीय सेना के साथ खड़ा है। ये अलग बात है कि भारत में छपनेवाले कुछ अंग्रेजी अखबार आज भी चीन के गुलाम हैं, उसकी आरती उतारना अपनी शान समझते हैं, वामपंथियों का तो कहना ही नहीं, उनका तो इतिहास ही रहा हैं, जब 1962 में वे चीन के पक्ष में थे और आज इस मुद्दे पर अपने होठ सील लिये हैं, तो फिर इन पर कुछ कहना ही क्या? ऐसे भी भारत में ऐसे लोगों की तादाद भी ज्यादा हैं, जो मोदी के विरोध के नाम पर चीन को जीतता हुआ भी देखना पसंद करेंगे, लेकिन उन्हें नहीं पता कि जिस दिन भारतीय युवा का दिमाग घुमा, फिर ऐसे लोग किस दुनिया में रहेंगे, पता भी नहीं चलेगा, क्योंकि अब भारत वो भारत नहीं, जो 1962 के समय था, जो हिन्दी-चीनी भाई-भाई का मतलब नहीं जानता था।