वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ की नजरों में उदयपुर कांड के लिए सेक्युलर हिन्दू दोषी, जो हर जघन्य कांड के बाद लेकिन शब्द की आड़ में थेथरई करते हैं

अब इस सच्चाई को स्वीकारने में गुरेज़ नहीं होना चाहिए कि “गंगा जमनी तहज़ीब” की बात करना सबसे बड़ा झूठ बोलना है। यह कभी थी ही नहीं, न है और न होगी। अगर होती दो देश का बंटवारा होता ही नहीं और न ही आजादी के बाद अनगिनत दंगे होते और न ही ” उदयपुर ” होता। इसके सबसे बड़े दोषी वो “सेक्युलर हिन्दू” हैं जो हर जघन्य कांड के बाद “लेकिन” शब्द की आड़ में थेथरई कर ही लेते है।

सूचना प्रसारण मंत्रालय को अब गहरी नींद से जाग जाना चाहिए। किसी भी चैनल पर हो रही धार्मिक बहस पर उसे तत्काल रोक लगा देनी चाहिए। शो की TRP बढ़ाने के लिए हर दिन निज़ी चैनलों पर पंडितों-आचार्यों और मौलवी-मुल्लाओं को बुलाकर एक दूसरे के धर्म को कोसने वाली “उन्मादी बहस” अगर तत्काल बन्द न हुई तो दोनों ओर से इतनी हिंसा शुरू हो जाएगी कि दंगाइयों को भड़काने और संरक्षण देने वाले राजनेता और “ख़ास गैंग के पत्रकार” भी कुछ नहीं कर पाएंगे।

राहत इंदौरी साहब का जो शेर “सेक्युलर पत्रकारों” ने दंगाइयों को सिखाया है (लगेगी आग तो उसकी जद में कई मकान आएंगे, इस मोहल्ले में सिर्फ़ मेरा मकान थोड़े ही है) उसकी लपटें उनके मकान तक भी पंहुच जाएगी। हम सभी जानते हैं कि उन्मादी और दंगाई का कोई धर्म नहीं होता, वो सब किराए के हत्यारे होते हैं इसलिए जो लोग भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और सत्ता पाने की लालच में या सत्ता में बने रहने की लालच में उन्हें पाल पोस रहें हैं वो जितनी जल्दी संभल जाएं, बेहतर होगा।

किसी के धर्म को कोसना, देवी -देवताओं को गाली देना, किसी भी मानदंड से अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है। अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो अपने पैगम्बरों के बारे में भी वैसी ही प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहें। वैसे तो हमारे देश में कुछ ऐसे हताश और निराश राजनीतिक दल तथा “बड़े और सेक्युलर पत्रकार” हैं जो उन्माद की आग में घी डालते ही रहेंगे लेकिन अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार आगे आकर तत्काल निज़ी चैनलों पर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर करवाई जाने वाली “धार्मिक और उन्मादी” बहस पर रोक लगा दे।

अभिव्यक्ति की आजादी के लिए संविधान में निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले या करवाने वाले किसी भी चैनल या वक़्ता -प्रवक्ता को बख़्सना देश हित के ख़िलाफ़ होगा। सख़्त कार्रवाई ही उदयपुर जैसी घटनाओं में कमी लाएगी अन्यथा दोनों ओर से यह आग इतनी फैल जायेगी कि उसकी लपटें सिर्फ आम और निरीह जनता तक ही सीमित नहीं रहेगी बल्कि ऐसी घटनाओं की पटकथा लिखने वाले राजनेताओं, धार्मिक हस्तियों और उन पत्रकारों तक भी पंहुच जाएगी जो उन्मादियों और दंगाइयों को “स्क्रिप्ट और डायलॉग” लिख कर देने का काम कर रहे हैं। मेरी बात कुछ लोगों को कड़वी लग सकती है लेकिन उसे नकारना किसी के लिए भी नामुमकिन हो जाएगा अगर “सेक्युलरिज्म” की आड़ में यही सबकुछ करवाया जाता रहा।

उदयपुर में जिस ढंग से एक दर्ज़ी की हत्या की गई है वह आम नागरिकों के लिए एक सबक हैं। सबक इस बात की, अब आपको अपनी रक्षा खुद करनी है। उस दर्ज़ी ने पुलिस से कट्टरपंथियों की धमकी को लेकर सुरक्षा की मांग की थी लेकिन पुलिस ने कोई ध्यान नहीं दिया। हत्या के बाद हत्यारों ने जो वीडियो जारी किया है वो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है इन हत्यारों को पूरी तरह मोदी विरोधी नेताओं का समर्थन और संरक्षण प्राप्त है।

वजह ये की सारे विपक्षी नेता निजी चैनलों पर आकर हत्या की बात को पूरी तरह राजनीतिक रंग देने में जुट गए हैं और एक स्वर से मोदीजी को इसका जिम्मेदार बताने में जुट गए हैं। तस्वीर साफ है, उस दर्ज़ी की बर्बर हत्या की मज़म्मत कोई नहीं कर रहा है। तमाम नृशंस हत्याओं की तरह इसे भी दरकिनार कर राजनेता और प्रवक्ता राजनीति करने में जी जान से जुट गए हैं। उन सभी नेताओं -प्रवक्ताओं की बात का एक ही लब्बोलुआब है कि जबतक मोदी को हटाया नहीं जाएगा, हराया नहीं जाएगा तब तक ऐसी घटनाएं रुकने वाली नहीं।

ऐसे बयान इस बात का जीता जागता सबूत है कि भारत मे अपने देवी-देवताओं को दी गयी गाली के प्रतिवाद में अगर आपने मुसलमानों के पैग़म्बर की आलोचना की तो आपकी गर्दन कलम कर दी जाएगी। अब वो समय आ चुका है कि आप राजनेताओं की कमीनगी और अवसरवादिता को धता बताकर अपनी रक्षा के प्रति एकजुट और सजग हो जाएं। पुलिस आपको सुरक्षा नहीं देगी क्यूंकि उसे राजनेताओं और उनके कुत्तों को सुरक्षा प्रदान करनी रहती है।

अगर यही सिलसिला रहा और हम आप भी मोदी, राहुल, सोनिया, लालू , ममता में फंसे रहे तो यकीन जानिए कि वो दिन दूर नही जब भारत में राम और हनुमान का नाम लेने वालों की हत्याएं रोज़मर्रा की बात हो जाएगी। आपको अपने आराध्य देवी – देवताओं का अपमान करने वालों को उन्हीं की भाषा मे जवाब भी देना होगा और हर घटना के बाद राजनीतिक रोटियां सेंकने वाली पार्टियों और राजनेताओं को भरपूर सबक भी सिखाना होगा। वजह ये कि ऐसे सभी कातिलों को पालने – पोसने और उन्हें संरक्षण देने का हर संभव प्रयास करना उन राजनेताओं का ही काम है जिन्हें अपने क्षेत्र की जनता से कहीं ज्यादा चिंता ऐसे “तालिबानी हत्यारों” की होती है।