अपनी बात

दूसरी पुण्यतिथिः हम अपने परम मित्र स्व. अरुण श्रीवास्तवजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं व सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं

आज मेरे परम मित्र स्व. अरुण श्रीवास्तव जी की दूसरी पुण्यतिथि है। हम इस अवसर पर अपने परम मित्र को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सचमुच उनका जीवन, उनका व्यक्तित्व व कृतित्व आज भी सभी के लिए अनुकरणीय है। परिवार क्या होता है? समाज को हम अपना बेहतर कैसे दे सकते हैं? अगर कोई आपके उपर जान-बूझकर अत्याचार कर रहा है, फिर भी उससे घृणा न कर, उस पर जान छिड़कना, कोई सीख सकता है, तो अरुण श्रीवास्तव जी के जीवन से सीख सकता था/है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि व्यक्ति जब जीवित होता है, तो उसकी कद्र करना नहीं जानता। लेकिन जब वो चला जाता है, तो उसकी याद में आंसू बहाता है, पर हमें जिंदगी भर इस बात की खुशी होगी कि मैंने अरुण श्रीवास्तव को उनके जीवन में भी और मरणोपरांत भी उनके सम्मान में कोई कमी नहीं की। हां, एक बात का दुख हमेशा रहेगा कि वो हमसे हमेशा विभिन्न विषयों पर घंटों बातें करते। लेकिन जीवन के अंतिम एक सप्ताह में बात ही नहीं किये। जब भी मोबाइल पर फोन करता, पता चलता बीमार है। जब ठीक हो जायेंगे तो बात करेंगे। लेकिन ईश्वर ने इसी बीच ऐसा चक्र चला दिया कि उन्हें अपने पास ही बुला लिया।

मैं जब भी उनसे मिला तो उन्होंने अपनी बात कभी नहीं की। हमेशा दूसरों की मदद की बात ही वो किया करते। एक संवाद, तो उनके मुख पर रहता था कि मुझे अपनी चिन्ता नहीं हैं, मुझे तो उन 70 परिवारों की चिन्ता रहती हैं, जो हमारे उपर निर्भर हैं। हमें याद हैं, कोरोनाकाल में जहां बड़े-बड़े संस्थान, अपने संस्थानों से लोगों को नौकरी से हटा रहे थे या जो उनके यहां काम कर रहे थे, उनके वेतन में कटौती कर दिया करते थे।

पर, मेरे अरुण जी तो दूसरे मिट्टी के बने हुए थे। उन्होंने अपने संस्थान में काम करनेवाले किसी भी व्यक्ति को नौकरी से नहीं निकाला। न ही किसी के वेतन में कटौती की। हालांकि उन्हें इस कारण बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। कई लोग तो इस दौरान उन्हें धोखे भी दिये। उनसे मोटी रकम ली और उन्हें चूना लगा दिये। लेकिन उसके बावजूद भी उस व्यक्ति के लिए उनके दिल में कभी नफरत या घृणा, मैंने नहीं देखी।

सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग झारखण्ड में कार्यरत एक बड़ा अधिकारी, जो आज भी उस पोस्ट पर विद्यमान है। जब तक अरुण श्रीवास्तव जी जिन्दा थे। उनको नुकसान ही पहुंचाया। उस अधिकारी के खिलाफ भी उनके दिल में प्रेम ही उमड़ता था। जब भी उस अधिकारी ने उन्हें कभी कुछ कहा, उनका काम बड़ी ही ईमानदारी से उन्होंने करने में दिलचस्पी दिखाई। वे तो अपने प्रतिद्वंदियों के लिए भी बेहतर सोच रखा करते थे।

उनका तो मानना था कि इस धरती पर जीवन यापन करनेवाले सभी लोगों का सम्मानपुर्वक जीने का हक हैं और ये हक सभी को मिलना चाहिए, जो बड़े पदों पर हैं, उन्हें ये हक देना और दिलवाना भी चाहिए। लेकिन अरुण श्रीवास्तव के साथ उक्त अधिकारी ने कभी भी अच्छा नहीं किया। मैंने भी सोचा था कि सरकार बदलेगी तो कुछ अच्छा होगा, लेकिन अच्छा क्या और बुरा ही हो गया।

ऐसे भी एक बहुत बड़े आईएएस अधिकारी जो झारखण्ड में बहुत बड़े पद पर हैं। मुझसे एक दिन कहा था। जब मैं बहुत दर्द में था। उन्होंने कहा था कि – ‘मिश्राजी, ईश्वर अच्छे लोगों को ही ज्यादा कष्ट देता है, वो उस पर रहम नहीं करता।’ उनकी बात में, मुझे दम लगता है। ईमानदारी और चरित्र से जीवन यापन करनेवाले लोगों को बहुत ही कष्ट है, पर क्या करें, जिन्होंने ईमानदारी और चरित्र को ही अपना आभूषण बना रखा है, वो जीवन के अंतिम क्षण में भी कैसे उक्त आभूषणों का परित्याग करेंगे? अरुण श्रीवास्तव जी, आप जहां भी हैं, मैं आपको अपने पूरे परिवार के साथ श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, कृपया इसे स्वीकार जरुर करियेगा।