राजनीति

झामुमो नेता को एसडीओ ने कहा 32 लाख रुपये जमा करो, नहीं तो होगी कार्रवाई

लगता है कि झामुमो नेताओं पर रघुवर सरकार में आफत आई हुई है, पूर्व में दो विधायकों की विधायकी चली गई, ये अलग बात है कि फिर चुनाव हुए और दोनों जगह से फिर झामुमो ही आई, लेकिन इतना तय है कि भाजपा को झामुमो नेता पसंद नहीं हैं, तभी तो झामुमो पर आफत पर आफत आता जा रहा हैं, ताजा मामला, जमशेदपुर के धालभूम का हैं, जो आज चर्चा का विषय बना हुआ है।

झामुमो नेता एवं पूर्वी सिंहभूम के झामुमो जिलाध्यक्ष रामदास सोरेन को धालभूम, जमशेदपुर के अनुमंडलाधिकारी ने पत्र लिखकर कहा है कि वे पूर्व में क्षति से संबंधित राशि 32 लाख रुपये यथाशीघ्र सरकारी खजाने में जमा करें, अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो उनके विरुद्ध ऐसी हालत में बिहार उड़ीसा लोक मांग वसूली अधिनियम 1914 के सुसंगत धाराओं के तहत कार्रवाई की जायेगी।

रामदास सोरेन पर आरोप है कि दिनांक 25 नवम्बर 2016 को सीएनटी-एसपीटी एक्ट के संशोधन के खिलाफ, जब संपूर्ण विपक्ष ने झारखण्ड बंद बुलाया था, उस वक्त इस इलाके में संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था, जिसकी क्षतिपूर्ति झामुमो जिलाध्यक्ष रामदास सोरेन से वसूलने की बात हो रही हैं।

रामदास सोरेन का कहना है कि चूंकि जब की ये घटना है, उस वक्त उनसे प्रशासन द्वारा कारण पृच्छा हुआ था, जिसका जवाब उन्होंने दे दिया था, जवाब देने के बाद प्रशासन द्वारा कोई सूचना नहीं दिये जाने पर उन्हें लगा कि प्रशासन उनके जवाब से संतुष्ट है, पर अचानक आज फिर झारखण्ड महाबंद बुलाया गया और आज के ही दिन ये पत्र जारी कर 32 लाख रुपये सरकारी खजाने में जमा कराने की बात, स्पष्ट बताता है कि यहां राजनीति हो रही हैं, और उन्हें राजनीतिक कारणों से इस प्रकार की नोटिस भेजी गई है, जो न्यायोचित नहीं है।

इधर अनुमंडलाधिकारी ने अपने पत्र में लिखा है कि उनके द्वारा दिये गये जवाब से प्रशासन संतुष्ट नहीं हैं, जिस कारण उनके जवाब को अस्वीकृत किया जाता है, वे जल्द से जल्द 32 लाख रुपये सरकारी खजाने में जमा करें। अनुमंडलाधिकारी ने इस पत्र की एक प्रतिलिपि उपायुक्त जमशेदपुर एवं एसएसपी के साथ-साथ सभी राजनीतिक दलों के जिलाध्यक्षों को भेजी है, ताकि क्षतिपूर्ति राशि को बंद समर्थक पार्टियां, संबंधित व्यक्ति से सम्पर्क कर अधिरोपित क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान करना सुनिश्चित करें।

इधर अनुमंडलाधिकारी के इस प्रपत्र को पढ़कर भाजपा छोड़ सभी राजनीतिक दलों के नेताओं में गहरा आक्रोश व्याप्त है, इन नेताओं का कहना है कि कोई ये भूल में न रहे कि वह सदैव सत्ता में ही बने रहने के लिये आया है, राजनीतिक प्रतिद्वंदिता अच्छी हैं, पर राजनीतिक विद्वेष में लिया जा रहा निर्णय उन लोगों के लिए घातक हैं, जो इस प्रकार की राजनीति की शुरुआत करने में लगे हैं।