मुख्यमंत्री के नाक के नीचे चल रहे जनसंवाद केन्द्र में हुआ वेतन/मानदेय घोटाला

अगर, माल कमाना हो, तो याद रखो, इरादा भले ही गंदे हो, पर खुद को नेक जनता के बीच जरुर दिखाते रहो। भले ही तुम अपने मातहत काम करनेवालों को खून के आंसू रुला दो, पर खुद को मसीहा, जनता के बीच शो करते रहो, तुम निश्चय ही, आज के युग में महानायक सिद्ध हो जाओगे। ये बातें हमने ऐसे ही नहीं लिख दी, झारखण्ड में रहकर अनुभव हुआ है।

मुख्यमंत्री रघुवर दास का चेहरा चमकाने के लिए, खुद मुख्यमंत्री के ही देखरेख में माइका कंपनी मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र चलाती है, जिसे एक करोड़ 66 लाख 68 हजार रुपये प्रतिवर्ष भुगतान होता है, ये मैं नहीं कह रहा, स्वयं लिखित तौर पर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के एक अधिकारी ने दिया है, पर जिस मैन पावर पर ये रुपये खर्च होने हैं, क्या उसे वह राशि मिलती है, उत्तर होगा – नही, तो फिर इतनी बड़ी राशि का भुगतान कौन ले जा रहा है और किसके पास जाता है, सबसे बड़ा सवाल यह हैं?

याद रखिये, हर मंगलवार को मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र की साप्ताहिक समीक्षा बैठक होती है और महीने में एक बार स्वयं मुख्यमंत्री का “सीधी बात” होता हैं, लोग कहते है कि इसमें जनता की शिकायतों का त्वरित निष्पादन होता है, पर जो बच्चे या कर्मी उस मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में काम कर रहे हैं, उसकी बात वहां का अधिकारी या मुख्यमंत्री क्यों नहीं सुनता, क्या उसकी समस्या सुनने के लिए, भगवान सूचना भवन में आकर जनसंवाद केन्द्र की समीक्षा करेंगे?

सूत्र बताते है कि जब मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र की परिकल्पना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एक व्यक्ति ने सीएम रघुवर दास के पास रखी, तब सीएम ने इसकी जल्दी ही मंजूरी दी और देखते ही देखते लाम-काम बनना शुरु हो गया। सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारियों का दल इसे मूर्तरुप देने में लगा, बताया गया कि इसमें टेली कॉलरों की संख्या 26, आइटी एक्सपर्ट की संख्या 6, आइटी एक्सपर्ट (सोशल मीडिया/वेबसाइट अपडेटिंग के लिए) 6, ट्रेनर 2, इन्फार्मेशन एनालिस्ट 2, न्यूज एनालिस्ट 1, सुपरवाइजर 2, टीम लीडर 1 की आवश्यकता पड़ेगी, जो अनुबंध पर रखे जायेंगे।

जिनका वेतन टेलीकॉलर को 15,000 रुपये महीने, आइटी एक्सपर्ट को 20,000 रुपये महीने, आइटी एक्सपर्ट को (सोशल मीडिया/वेबसाइट अपडेटिंग के लिए) 40,000 रुपये महीने, ट्रेनर को 40,000 रुपये महीने, इन्फार्मेशन एनालिस्ट को 50,000 रुपये महीने, सुपरवाइजर को 40,000 रुपये महीने, और टीम लीडर को 50,000 रुपये महीने देय होंगे, जिस पर कुल एक करोड़ तैतीस लाख अस्सी हजार रुपये वार्षिक खर्च होंगे। ये सभी बाह्य स्रोतों से विहित प्रक्रिया के अनुसार किया जायेगा।

साथ ही यह भी बताया गया कि डिजाइनर के दो पद, कंटेट राइटर के दो पद, विजुयलाइजर के एक पद, अनुवादक के तीन पद, फोटोग्राफर के दो पद, फोटो लाइब्रेरियन के एक पद, कम्प्यूटर आपरेटर के दो पद सृजित किये जायेंगे। जिसमें डिजाइनर को प्रति माह 40,000, कंटेट राइटर को प्रति माह 50,000, विजुयलाइजर को प्रतिमाह 30,000, अनुवादक को प्रतिमाह 20,000, फोटोग्राफर को प्रतिमाह 30,000, फोटो लाइब्रेरियन को प्रतिमाह 10,000, कम्प्यूटर आपरेटर को प्रतिमाह 20,000 रुपये प्रतिमाह देने का प्रावधान था। माइका कंपनी काम भी करना शुरु कर दी, पर सच्चाई यह है कि सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा बनाये गये इस वेतन/मानदेय को कभी कंपनी ने नहीं स्वीकारा और न ही इस अनुरुप कभी भुगतान किया।

जब एक वर्ष कंपनी ने पूरे किये, तब माइका कंपनी ने एक वर्ष के लिए और अनुबंध बढ़ाने की बात कही। जिस पर तत्कालीन निदेशक अवधेश कुमार पांडेय ने प्रधान सचिव को 29 अप्रैल 16 को लिखा कि मेसर्स एडुकेशनल प्रा. लि. में कार्य करनेवाले कर्मियों के संबंध में मुख्यतः देय राशि कार्य बल (मैन पावर) से संबंधित है। चूंकि संचिका में अवधि विस्तारित करने की कार्रवाई की जा रही हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि भवदीय की अध्यक्षता में माइका के संजय जैन के साथ बैठक करना चाहेंगे, जिसमें मुख्यमंत्री के सचिव सुनील कुमार बर्णवाल भी रहे, जिसमें कार्यरत बल एवं सम्पादित कार्यों के संबंध में निर्णय लिया जा सके, क्योंकि इनके द्वारा जो कार्य बल की विवरणी दी जायेगी, उसी के अनुरुप राशि देय होगा।

इस संबंध में यह भी उल्लेखित करना है कि माइका को अगले साल के लिए सेवा विस्तारित करने के पूर्व जिन-जिन कर्मियों को राशि दी जा रही है, उसका विस्तृत ब्यौरा एवं बैंक आरटीजीएस के भुगतान का ब्यौरा उपलब्ध कराने पर विचार करना होगा। अतः प्रस्ताव होगा कि बैठक हेतु तिथि एवं समय निर्धारित किया जा सकता है। इस पत्र के आधार पर प्रधान सचिव संजय कुमार ने 2 मई 2016 को तिथि निर्धारित कर दी, और स्थान प्रोजेक्ट बिल्डिंग निर्धारित कर दिया गया।

आश्चर्य की बात यह रही कि बैठक 2 मई 2016 को जरुर हुई पर जिस ओर अवधेश कुमार पांडेय, निदेशक, आइपीआरडी ने ध्यान आकृष्ट कराया था, माइका कंपनी ने उसे नजरंदाज कर दिया, जिस पर एक बार फिर 3 मई को अवधेश कुमार पांडेय ने प्रपत्र पर टिप्पणी की, “कृपया प्रधान सचिव के समक्ष हुए विमर्श का स्मरण करना चाहेंगे, जिसमें उन्होंने कर्मियों के वेतन भी देने का प्रस्ताव दिया था, जो यहां अंकित नहीं है।”

इसी बीच 12 मई 2016 को सहायक इलेक्ट्रानिक अभियंता ने माइका कंपनी चला रहे संजय जैन को पत्र लिखा कि वे निदेशक महोदय के आदेशानुसार 2 मई 2016 को प्रधान सचिव के समक्ष हुई विमर्श का स्मरण किया जाय, जिसमें आपने कर्मियों के वेतन भी देने का प्रस्ताव दिया था, वह अंकित नहीं है, शीघ्र अंकित कर अधोहस्ताक्षरी को सूचित किया जाय, पर संजय जैन ने कभी भी इस आदेश पर ध्यान नहीं दिया, जो बताता है कि दाल में काला नहीं, बल्कि पूरी दाल काली है। बताते है कि जिस कंटेट राइटर का वेतन 50,000 रुपये प्रतिमाह निर्धारित किया गया था, उसे 25,000 रुपये प्रतिमाह दिया जाता था, यहीं हाल अन्य कर्मियों का भी था, यानी सरकार से इसी मद में लिया जाता था कुछ और कर्मियों को दिया जाता था कुछ, आश्चर्य इस बात की भी है, कि यह प्रक्रिया आज भी जारी है, कोई बोलनेवाला नहीं हैं।

अगर महालेखाकार से इसकी जांच करा ली जाये, तो साफ पता लग जायेगा कि यहां मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कितना बड़ा वेतन/मानदेय घोटाला चल रहा हैं और इस घोटाले से कौन-कौन उपकृत हो रहे हैं? कमाल की बात है, जिस ओर तत्कालीन निदेशक अवधेश कुमार पांडेय ध्यान दिला रहे थे, सीएमओ में बैठे भ्रष्ट लोग माइका को बचाने का काम कर रहे थे, जिसे वे आज भी जारी रखे हुए है, तथा मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत लोगों का शोषण करने के लिए कुचक्र रच रहे थे, जो आज भी जारी है। सच्चाई यह भी है कि आज भी मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में बहुत बड़ा वेतन/मानदेय घोटाला जारी है, पर कोई सुननेवाला नहीं है, क्योंकि सभी भ्रष्टाचार की गंगोत्री में आकंठ डूबे हैं।