याद रखिये CM हेमन्त जी, ‘आत्मविश्वास और घमंड में कोई ज्यादा का फर्क नहीं होता’

जो सत्ता में हैं या शीर्ष पर हैं, उन्हें यह संवाद हमेशा याद रखना चाहिए कि ‘आत्मविश्वास और घमंड में कोई ज्यादा का फर्क नहीं होता’। उन्हें गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा विरंचित श्रीरामचरितमानस की कुछ पंक्तियां भी कंठस्थ कर लेना चाहिए, जैसे..

बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ।।

बूंद अघात सहहिं गिरि कैसें। खल के बचन संत सह जैसें।।

छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई।।

ताकि उनके जीवन में अपने घुर विरोधियों के प्रति भी सहानुभूति का भाव हो, अगर आप शीर्ष पर हैं और आप में आत्मविश्वास की जगह अहंकार का भाव आ गया, तो आपको फर्श पर आने में कोई ज्यादा देर नहीं लगती।

उदाहरण के तौर पर, झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को ले सकते हैं। रघुवर दास के अंदर भी मुख्यमंत्री बनने के बाद गजब का अहंकार मन में प्रवेश कर गया था, वे अपने कनफूंकवों को ही सब कुछ समझ चुके थे, उनके कनफूंकवे उनके समक्ष वहीं बात करते, जो उन्हें पसन्द आता और एक दिन जहां आप (हेमन्त सोरेन) बैठे हुए थे, उसी विधानसभा में रघुवर दास ने विपक्षियों का ऐसा अपमान किया कि ईश्वर ने उनसे विधानसभा की सदस्यता तक छीन ली।

हेमन्त जी, याद रखिये। ज्यादातर मामलों में देखा गया है, कि व्यक्ति जब शीर्ष पर पहुंचता है। तो उसे यह याद नहीं रहता कि किन-किन लोगों ने उन्हें उसे शीर्ष पर ले जाने में अहम् भूमिका निभाई, किनकी दुआओं ने उन्हें शीर्ष पर लाकर खड़ा कर दिया। वो घमंड में इतना मग्न हो जाता है कि जिसने उसे शीर्ष पर पहुंचाया, उसे ही गला दबाने में ज्यादा रुचि लेने लगता है। वे उस गिलहरी तक को भूल जाते हैं, जिसके प्रयास से वो व्यक्ति बहुत दूर निकल गया।

गिलहरी समझते ही होंगे, देखे भी होंगे, बड़ी प्यारी होती है। उसके विषय में एक कहानी है, जो मैं आपको सुनाना चाहता हूं। कहा जाता है कि जब श्रीराम, जानकी को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए, समुद्र पर पुल का निर्माण कर रहे थे, तभी भगवान श्रीराम ने देखा कि एक गिलहरी समुद्र में जाती और फिर तट पर लोटने लगती, जिससे उसके शरीर पर बालू के कण सट जाते, फिर गिलहरी उन शरीर पर लगे बालूओं को लेकर, जहां पुल निर्माण हो रहा था, वहां जाकर अपने शरीर को झार आती।

इसी क्रम में कई वानरों को उसके ऐसा करने से बड़े-बड़े पत्थरों को लाने में दिक्कतें आ रही थी, उसने देखा कि इस गिलहरी से उसे दिक्कत आ रही हैं, तो उस वानर ने गिलहरी को उठाकर दूसरी ओर फेक दिया, पर ये क्या? गिलहरी तो भगवान श्रीराम के हाथों पर आ गिरी। भगवान श्रीराम तो ये दृश्य स्वयं देख रहे थे। वे पुलकित हो गये। उन्होंने बड़े प्रेम से गिलहरी के संपूर्ण शरीर हाथ फेरा और कहा कि जब तुम्हारे जैसा प्राणी भी इस यज्ञ में शामिल होकर, मेरा साथ दे रहा हैं तो फिर श्रीराम को सफल होने से कोई रोक ही नहीं सकता…

इस कहानी के भाव को अगर आप समझ जायेंगे, तो फिर आपको किसी विधायक को रायपुर ले जाने के लिए, साथ ही आपको खुद ड्राइविंग करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। आप जहां से आते है न, वहां दो धाम है – एक वैद्यनाथ दूसरा वासुकिनाथ। कभी इन दोनों पर चिन्तन करियेगा, इन दोनों ने कभी भी अपने लोगों को भगाने की कोशिश नहीं की, जहां रहे, मस्ती में रहे और किसी ने भी इन दोनों के साथ दगा करने की कोशिश नहीं की। मैं आज भी कह रहा हूं कि आप जिन विधायकों के साथ झारखण्ड विधानसभा पहुंचकर (रांची से रायपुर भेजकर, फिर रायपुर से रांची लाकर) बहुमत सिद्ध किया, उस पर आप कितना भी जोश दिखा लें, फेसबुक पर यह लिखकर –

‘जीते हैं हम शान से

विपक्ष जलते रहें हमारे काम से

लोकतंत्र जिंदाबाद!’

वाहवाही लूट लें, पर जो राजनीति में शुचिता व शुद्धता के पक्षधर हैं, वे आपको हमेशा कटघरे में खड़ा करेंगे। इतिहास में आप पर एक काला धब्बा लग गया। लोग कहेंगे, आपने अपने विधायकों (जो बिकने को तैयार थे, भले ही वे बिकने को तैयार रहे या न रहे, अगर खरीद-फरोख्त की बात करते हैं, तो खरीदा भी उसे ही जाता है जो बिकने को तैयार हो) को रायपुर-रांची का दौरा कराकर ठीक नहीं किया। आप ही के नेता लोबिन हेम्ब्रम का संवाद देख लीजिये, जो सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं – ‘जो बिकनेवाला है, वो तो सदन में भी बिक जायेगा, इसलिए हम रायपुर क्यों जायें?’

आपने जिस प्रकार बहुमत सिद्ध करने के बाद तेवर दिखाये हैं, हो सकता है कि आपके समर्थकों को बहुत रास आया हो, लोग वाह-वाह कर रहे हो, पर मुझे जहां तक राजनीति का इल्म हैं, आप बहुत ही कमजोर हुए हैं। आपके लोग जो स्वप्न देख रहे हैं कि आपने सर्वजन पेंशन योजना लागू कर दिया, आपने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर दिया, आपने सहायक पुलिसकर्मियों की नौकरी की अवधि बढ़ा दी, आपने नेतरहाट फायरिंग फील्ड प्रोजेक्ट पर अंकुश लगा दिया, तो आप लोकप्रिय हो गये, तो ये सस्ती लोकप्रियता मात्र है।

चुनाव, इन सभी मुद्दों पर नहीं लड़े जाते, अगर ऐसा होता तो फिर रघुवर दास आपसे ज्यादा काम कर चुके थे। आज जहां आप विधानसभा में बैठे हैं, या जो हाईकोर्ट बन रहा है, वो आपकी देन नहीं हैं, वो रघुवर दास की देन है। ऐसे कई काम रघुवर दास ने भी किये हैं, जिस पर हम एक पुस्तक तक लिख सकते हैं, पर रघुवर दास ने अपने ही कामों पर गोबर लीप दिया, जब उसमें आत्मविश्वास की जगह घमंड ने घर बना लिया।

दरअसल घमंड कब घर बना लेता है, व्यक्ति को मालूम ही नहीं होता और उसमें ऐसा फंसता है कि उसकी पूरी जिंदगी तबाह हो जाती है। आपके आस-पास जितने सलाहकार है, वैसे सलाहकार तो रघुवर दास के आस-पास भी थे। क्या हुआ रघुवर दास का। अरे भाई सरयू राय ने कल क्या कहा? आपकी कार्यशैली पर उन्होंने प्रश्नचिह्न लगा दिया? यही बातें विनोद सिंह, नेता विधायक दल भाकपा माले,ने कह डाला कि उन्हें समझ नहीं आ रहा हैं और ये अजीब विडम्बना है कि विधायकों को रायपुर ले जाने की क्या जरुरत थी, वह भी तब जब यहां एक चुनी हुई सरकार है, उन्होंने यहां तक कह दिया कि यह स्थितियां आदर्श नहीं है, बेहतर नहीं है, बेहतर तरीका नहीं है।

जरा सोचियेगा कि विनोद सिंह कोई आपके दल के विधायक नहीं हैं, फिर भी वे आपको समर्थन दे रहे हैं, वे रायपुर भी नहीं जाते और न किसी की हिम्मत है, कि उन्हें खरीद लें। यही बात लागू होती है सरयू राय पर, जो कल तक आपको समर्थन दे रहे थे, पर इस मुद्दे पर आप से अलग हो गये। आप कहेंगे कि मेरे पास तो 48 विधायक है, प्रचंड बहुमत है, लेकिन ये मत भूलिये कि महाभारत में कौरव 100 थे, और पांडव मात्र पांच थे, लेकिन जीता कौन, विजयी घोषित कौन हुआ, लोग किसे आदर्श मानते हैं – कौरवों या पांडवों को।

आप अपने ही किये गये बेहतर कार्यों पर कालिख मत पोतिये। लोगों ने आपको कोरोना काल में बेहतर स्टेप लेते देखा है, आप कोरोना काल में भारत के सभी मुख्यमंत्रियों में से शीर्ष पर थे, पर आज की क्या स्थिति है? आपके बगल बिहार का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा की गलतफहमियों को बिहार में बैठे-बैठे दूर कर दिया और आपको पसीने छूट गये। आज वो पीएम कैंडिडेट के रुप में दिल्ली का दौरा कर रहे हैं और आप रांची-रायपुर में लगे हैं।

आप घमंड में कह रहे हैं कि खरीद-फरोख्त करनेवालों देख लो सदन में हम कितने मजबूत है, 2024 में हम तुम्हारा सुपड़ा साफ कर देंगे, भाई अभी 2024 आने में बहुत देर है। कही राज्यपाल या चुनाव आयोग ने ही आपको छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया तो आप क्या करेंगे? आप क्यों नहीं स्वीकार करते कि आपको वर्तमान स्थिति में लानेवाले, आपके आजू-बाजू के लोग ही हैं, निश्चय ही अगर आप अपने आस-पास बेहतर लोगों को रखते या उन लोगों को रखते, जो आपको आज भी शीर्ष पर देखना पसन्द करते हैं, तो आपकी ये स्थिति ऐसी नहीं होती।

फिलहाल जो आपके उपर ग्रहण लगा है, उसे ये आपका विधानसभा में प्राप्त किया गया बहुमत भी दूर नहीं कर सकता। अगर विपक्ष कहता है कि आपको अपने ही विधायकों पर विश्वास नहीं हैं, तो ये गलत नहीं और इसका प्रत्यक्ष रुप से समर्थन तो सरयू राय और विनोद सिंह जैसे नेता भी कर रहे हैं, तो कह दीजिये कि ये सारे लोग भी गलत है। भाजपा विधायक दल के नेता बाबू लाल मरांडी ने ठीक ही कहा कि सदन में ये कहने की क्या जरुरत है कि आप शिबू के बेटे है, आंदोलनकारी है, डरनेवाले नहीं, अगर आप डरनेवाले नहीं हैं तो फिर रायपुर-रांची, रांची-रायपुर किसलिये कर रहे थे और इतिहास उलटी जायेगी तो फिर सारा भ्रम भी दूर हो जायेगा।

ये तो रही राजनीति। अंततः अपने आस-पास के सलाहकारों से सतर्क रहिये। ये किसी काम के नहीं। मन लगाने के लिए, हंसी-मजाक तक ये ठीक हैं, पर राजनीतिक रुप से शून्य है, और याद रखिये, केन्द्र में मोदी-शाह हैं, वो आपकी सारी राजनीति और आपकी समझ को अपने-अपने थर्मामीटर से नाप चुके हैं, 2024 में शायद ही आप उनके सामने टिक पायेंगे, क्योंकि आपके साथ रहनेवाले बहुत बड़े नेता राहुल गांधी जब आटे को लीटर में नाप लेते हैं, तो समझ लीजिये कि आनेवाले समय में झामुमो-कांग्रेस की क्या स्थिति होनेवाली हैं, इसलिए हेमन्त मेरे भाई, सतर्क होकर, फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाइये। नहीं तो … जो है, सो हइये हैं।

एक बात और, तीन साल पहले वाला समय को मत भूलियेगा, जब आप विरोधी दल के नेता थे, फिर भी आपको कोई अखबार वाला चाहे रांची से छपनेवाला हो या दिल्ली से छपनेवाला हो, या कोई इलेक्ट्रानिक मीडिया, आपको भाव नहीं देता था, सभी हर-हर रघुवर, घर-घर रघुवर का मंत्र जाप किया करते थे, पर उस हालात में भी एक ऐसा शख्स था जो ताल ठोककर कहता था – आयेंगे तो हेमन्त ही, पर आपने उसके साथ क्या किया?