अपनी बात

लोग बाढ़ से मर रहे हैं और लालू को सत्ता की पड़ी है

पूरा बिहार बाढ़ से त्रस्त है, और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और उनका परिवार 27 अगस्त की पटना की रैली को लेकर बेचैन है। रैली में आने के लिए लोगों को आह्वान किया जा रहा है। नई-नई लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है, माहौल ऐसा बना दिया गया है, जैसे बिहार में चुनाव हो। बड़ी- बड़ी एलइडी स्क्रीन का इस्तेमाल किया जा रहा है, फिर भी लोगों के बीच लालू प्रसाद की इस रैली के प्रति वो आकर्षण नहीं हैं, जो पूर्व की रैलियों में हुआ करती थी।

आखिर इसका कारण क्या है? लोग बताते है कि लालू की रैली का फिलहाल मतलब यहीं हैं कि शरीफ के घर में आग लगे, तो…। पूरा बिहार बाढ़ से तबाह है। तीन सौ से ज्यादा लोग बाढ़ में डूब कर मर गये। हजारों-लाखों मकान क्षतिग्रस्त हो गये। अरबों रुपये की फसल तबाह हो गयी, पर लालू जी को इससे कोई मतलब ही नहीं। नेता का मतलब, दुखियों, मजलूमों की बात करनेवाला होता है, न कि उनके घाव पर नमक छिडकनेवाला। होना तो यह चाहिए था कि रैली को स्थगित कर, जो रैली में पैसे खर्च होनेवाले हैं या हो रहे हैं, उन पैसों को बाढ़पीड़ितों में डाइवर्ट करना था, पर यहां तो अपने परिवार की चिंता है, यहां ये चिंता है कि कैसे उनकी सत्ता चली गई? और फिर वह सत्ता उन्हीं लोगों के पास है, जिनके पास पूर्व में थी।

लोग कहते है कि लालू ने नीतीश पर विश्वास ही क्यों किया? किसने कहां था उन्हें विश्वास करने को, क्या उन्होंने महागठबंधन करने के पूर्व आम जनता से राय ली थी? बेकार की बातों में उलझ गये हैं लालू जी। अभी सिर्फ बाढ़पीड़ितों की बात होनी चाहिए और दूसरा कुछ नहीं।

कुछ लोग यह भी कहते है कि मुंबई में बैठा अभिनेता आमिर खान, बिहार के बाढ़पीड़ितों के लिए आगे बढ़ने का आह्वान कर रहा हैं, और अपने घर का नेता, जिसकी वोट से वह नेता बना हैं, सब कुछ छोड़कर पटना और रांची का चक्कर लगा रहा है। रांची का चक्कर लगाना तो समझ में आता है कि कोर्ट का चक्कर है, पर पटना में रहकर बाढ़पीड़ितों की चिंता न कर, केवल रैली की चिंता करना, ये मानवीयता नहीं हैं।

लालू प्रसाद को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिन इलाकों में बाढ़ है, उन इलाकों के मतदाताओं ने ही, अभी ये बोलने की ताकत दी है, जिसको वे समझ नहीं रहे। अगर लालू प्रसाद अभी नहीं सुधरे तो फिर उनकी हालत आज से पांच साल पहले वाली हो जायेगी, उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए, उन्हें सारे काम छोड़कर बिहार के बाढपीड़ितों का दर्द सुनने के लिए बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा करना चाहिए, इसी में उनकी और उनकी पार्टी की समझदारी है।