ए नीतीश जी, छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, इसलिए अपने दिल, मन और अपनी सोच को बड़ा करिये, मैंने देखा है आपकी सोच बहुत छोटी है

ए नीतीश बाबू उर्फ सुशासन बाबू (ऐसे आपके नाम के कई पर्यायवाची शब्द हैं, कितना लिखे, कुछ नाम तो तेजस्वी और तेज प्रताप ने भी रखे थे, जब आपने उन्हें धोखा देकर, भाजपा से गलबहियां कर ली थी), आप अपने सम्मान के साथ खेलना चाहते हैं, खुब खेलिये, पर बिहार के सम्मान के साथ खेलने की कोशिश क्यों करते हैं? बिहार की संस्कृति और उसकी परम्परा से क्यों खेलते हैं?

क्या आपको नहीं पता कि आप बिहार के मुख्यमंत्री है और आप से प्रत्येक बिहारियों का सम्मान जुड़ा हैं, आपके क्रियाकलापों से भारत ही नहीं बल्कि दूरे-देशों में बैठे बिहारियों का सर शर्म से झूक जाता है। आप अपनी छोटी सी सोच को अपने उपर इतना हावी क्यों होने देते हैं, अरे थोड़ा अपनी सोच, अपने छोटे मन व सिकुड़े दिल को, उसे थोड़ा हम बिहारियों की तरह बड़ा करिये न।

आप तो गाहे-बगाहे समय-समय पर भाजपाइयों को आइना दिखाने का काम करते हैं, वो भी अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर और आप ही अटल बिहारी वाजपेयी की वो मूल कविता से ली गई एक अंश को भूल जाते हैं, जो वाजपेयी बार-बार कहा करते थे – छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता। कभी वाजपेयी ने ही कहा था – जीत और हार जीवन का हिस्सा है, जिसे समानता के साथ देखा जाना चाहिए।

अरे आप इतनी छोटी सोच कब तक रखियेगा, ये मैं इसलिए लिख रहा हूं कि मैंने आपको कई बार देखा है कि आप समय-समय पर अपनी छोटी सी सोच को प्रदर्शित करते रहे हैं, ये अलग बात है कि बिहार के पत्रकार या अखबार/चैनल/पोर्टल विज्ञापन न मिलने के भय से आपके खिलाफ कुछ भी बोलने/दिखाने/पढ़ाने से डरते हैं।

कुछ पत्रकार तो इसलिए आपके खिलाफ नहीं बोलते कि कहीं आप उनसे रुठ न जाये, क्योंकि उन्हें भी अपने बेटे-बेटी की शादी में मुख्यमंत्री को बुलाकर अपना ठाठ-बाट दिखलाना होता हैं, देखो मैंने मुख्यमंत्री को अपने बेटे-बेटी की शादी में बुला लिया, है किसी की इतनी हिम्मत, जो मुख्यमंत्री को अपने कार्यक्रम में बुला लें। मैंने तो देखा था कि बिहार में तो एक चैनल के पत्रकार ने अपने कार्यक्रम में आपको बुलाकर आपके चरण-रज भी छूए थे। आप कहेंगे कि आपने क्या अपराध कर दिया कि मैं ये सभी बाते लिख रहा हूं। जरा आप अपना ट्विटर देखिये, और अगर फुर्सत न हो तो मैंने आपकी सुविधा के लिए ही ये ट्विटर के एक अंश की छाया प्रति यहां डाल रहा हूं, आप खुद देखें।

आपने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को मिली सफलता पर कांग्रेस पार्टी को बधाई दे दी। मैंनपुरी में डिंपल यादव को मिली सफलता पर अखिलेश यादव को बधाई दे दी। आज सोनिया गांधी के जन्मदिन पर उन्हें जमकर बधाई दे दी। पर गुजरात में भाजपा ने ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की, इसके लिए आपने भाजपाइयों को क्यों नहीं बधाई दिया। कुढ़नी में आपके ही कैंडिडेट कोई कुशवाहा जी थे, उनको भाजपा नेता केदार गुप्ता जी ने हरा दिया। आपने केदार गुप्ता को क्यों नहीं बधाई दी।

अरे भाई, यहीं तो लोकतंत्र हैं। हम लड़ेंगे, जीतेंगे-हारेंगे और जब जनता का जनादेश आयेगा तो उसे शिरोधार्य करेंगे और जीतनेवाले को कुढ़ने के बजाय उसे दिल से बधाई देंगे। लेकिन आपने क्या किया? आपने बधाई देने में भी कंजूसी कर दी। आप अंदर से इतने कुढ़ गये कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को गले लगाया और भाजपाइयों को बधाई देने के बजाय, उनसे किनारा कर लिया। मतलब इतनी नफरत भाजपा से।

ऐसे आपका स्वभाव मैं खुब जानता हूं। आपने टिव्टर पर जो कांग्रेस और सपा को बधाई देकर जो काम किया हैं, उससे लोकतंत्र में विश्वास रखनेवालों को जरुर धक्का लगा होगा। भाई, बिहार की तो परम्परा रही हैं कि हम हारते हैं या जीतते हैं। दोनों में समान भाव रखते हैं। हारने के बावजूद, जीतनेवालों को हम दिल से बधाई देते हैं। आपकी तरह नहीं कि छोटी सोच रखकर, जीतनेवाले से दूरियां बना लेते हैं या बधाई देने में भी कंजूसी करते हैं।

नीतीश जी आप ही हैं न। जब भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक एक बार पटना में आयोजित थी, तब आपने पटना में शामिल सभी भाजपा के नेताओं को अपने आवास पर रात्रि भोज दिया था और फिर बाद में आपने खुद ही कैंसिल कर दिया। क्या यही बिहार की परम्परा है कि मेहमानों को खाने पर बुलाओ और फिर कह दो कि आपको हम खाने पर नहीं बुलायेंगे, हमने आपका भोज कैंसिल कर दिया। अरे इससे बड़ी शर्म की बात तो कोई हो ही नहीं सकती, क्या उस दिन भाजपा के नेताओं को खाने की कमी हो गई थी या वे लोग आपसे खाने के लिए थाली व कटोरा लेकर आपके पास पहुंच गये थे?

नीतीश जी आप ही हैं न। जब बिहार में भयंकर बाढ़ आई। तब उस वक्त तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के लोगों के लिए आर्थिक मदद और कुछ सामग्रियां भेजी थी, आपने उसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की तरह लौटा दिया था, जैसे पाकिस्तान को भारत मदद भी करना चाहे तो पाकिस्तान वो मदद लेने से इनकार कर देता हैं, क्योंकि पाकिस्तान भारत से घृणा करता है, आपकी भी गुजरातियों से उस वक्त ऐसी ही घृणा थी, आज भी आप वैसी ही घृणा करते हैं।

मेरा आपसे अनुरोध है कि जब आपने इतनी घृणा पाल ही रखी हैं, तो क्यों नहीं गुजरात के विभिन्न शहरों में काम करनेवाले बिहारियों को आप अपने यहां बुला लेते हैं कि आ जाओ बिहारियों, मैं आपको अपने राज्य में काम दूंगा, मैं नीतीश कुमार हूं, मेरा जैसा कोई मुख्यमंत्री आज तक न हुआ हैं और न होगा, पर आप तो ऐसा करेंगे नहीं, क्योंकि आप को ऐसा करना होता तो कब के कर चुके होते, आपका इतना सामर्थ्य भी नहीं कि आप बिहार को आत्मनिर्भर बना सकें। आप तो केवल कुढ़ेंगे और इस कुढ़नई में अनाप-शनाप निर्णय लेंगे, अपने साथ-साथ बिहार के सम्मान से भी खेल जायेंगे।

अरे आप से अच्छे वे खिलाड़ी हैं, जो खेल भावना से खेलते हुए हार मिलने पर भी जीतनेवाले खिलाड़ियों से हाथ मिलाकर उन्हें जीत की बधाई देते हैं, अगर आपको इस बात की जानकारी न हो तो कोई भी क्रिकेट या फुटबॉल मैंच का अंतिम क्षण देख लीजिये।