अपनी बात

सुदेश महाधिवेशन पर कितना भी फूंक दें, बाजार में पड़े बेकार वस्तुओं को मंच पर ला कितना भी क्यों न सजा लें, मीडिया से सुदेश भजन ही क्यों न भजवा लें, फिर भी उनकी दाल नहीं गलनेवाली

राजनीति करने की बात आती है, मंच पर भाषण देने की बात आती है तो सुदेश महतो को आदिवासी, मूलवासी, दलित, अल्पसंख्यक, पिछड़े याद आने लगते हैं और जब राजनीतिक लाभ लेने की बात आती है तो उसे स्वयं और मौसा तथा मौसा का पूरा परिवार नजर आता है। दरअसल सच्चाई यह है कि अलग-अलग मंच पर आजसू प्रमुख सुदेश महतो की प्राथमिकता बदलती रहती है। जब सांसद व विधायक बनने-बनाने की बात आती हैं तो इनकी पहली और अंतिम प्राथमिकता स्वयं और मौसा तथा मौसा का परिवार नजर आता है।

नहीं तो पूछिये, सुदेश महतो से कि बड़कागांव में तो आजसू के टिकट पर कई आजसू के अच्छे-अच्छे नेता चुनाव लड़ना चाहते थे, उन्होंने अपने मौसा रोशन लाल चौधरी को ही हर बार टिकट क्यों दिया? गिरिडीह लोकसभा से अपने सगे मौसा के छोटे भाई चंद्र प्रकाश चौधरी को आजसू के टिकट से चुनाव क्यों लड़वाया? रामगढ़ से अपने सगे मौसा के छोटे भाई आजसू सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी यानी मौसी सुनीता चौधरी को विधायक क्यों बनवाया?  सुनीता चौधरी तो राजनीति में आना भी नहीं चाहती थी, फिर भी उन्हें विधायक क्यों बनवाया?

सूत्र बताते है कि जब ये राज्य में कभी मंत्री बने थे तो इन्होंने मंत्री पद का भी जमकर लाभ उठाया। मतलब नेता, सांसद, विधायक आजसू से कोई बनेगा तो सुदेश महतो और उनका परिवार, मंत्री बनने की बात आयेगी तो उसमें भी प्राथमिकता मिलेगी उनसे जुड़े परिवारों की ओर, जनता को उल्लू या मूर्ख बनाने की बारी आयेगी तो वही भाषण बार-बार दुहराया जायेगा, जो पिछले तीन दिनों से फिर दुहराया जा रहा है।

मतलब हेमन्त सरकार राज्य के दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के साथ षडयंत्र कर रही है। खतियान आधारित स्थानीयता झारखण्डी सपना इसे लेकर रहेंगे। झारखण्ड के लिए हमारे पूर्वजों ने कई कुर्बानियां दी। अरे भाई पूर्वजों ने कुर्बानियां दी और आप उन पूर्वजों के वंशजों और झारखण्डियों के साथ कर क्या रहे हो? आप तो रघुवर दास की सरकार में शामिल भी थे, क्या किया?

आप स्वयं अपने विधायकों, जो कभी मंत्री भी रहे हैं, जिसमें आप भी शामिल हो, एक बार ईमानदारी से कहो न कि आपके कार्यकाल की ईमानदारी से सीबीआई या ईडी जांच करवाली जाये, झारखण्डियों को भी पता लग जायेगा कि उनका प्यारा नेता सुदेश महतो और उनके मौसा का कार्यकाल कैसा रहा है? सच्चाई यह है कि भाजपा से इनका गठबंधन न हो, तो सुदेश महतो स्वयं सिल्ली का सीट भी न निकाल पायें।

दरअसल, झारखण्ड ही नहीं, बल्कि पूरे देश का यही हाल है। जो भी नया नेता बनता है। वो बात तो आजकल दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों व पिछड़ों की कर रहा है। जमकर सवर्णों को खुद भी तथा अपने मंच से दूसरों को बुलवाकर उन्हें मनुवादी कहकर गरियाता भी हैं। लेकिन जैसे ही उसे मौका मिलता है तो उसकी प्राथमिकता दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी या जो स्वयं पिछड़ा होता हैं, उसकी भी सुध न लेकर, सिर्फ और सिर्फ अपना तथा खानदान को कैसे और कहां बेहतर स्थिति में लायें, इस पर काम करना शुरु कर देता है।

पिछले तीन दिनों से सुदेश महतो ने रांची के मोराबादी मैदान में राजनीतिक महाधिवेशन बुलाकर लोगों को आंखों में धूल झोंकने के लिए विदेशों, देश की राजधानी दिल्ली तथा अन्य प्रमुख नगरों के प्रमुख संस्थानों तथा रांची के अखबारों में कभी-कभी दिख जानेवालों को अपने मंच पर बुलाकर ज्ञान की घूंटी पिलवाई, एक तथाकथित पत्रकार ने तो मंच से ही झूठ बोल दिया कि हेमन्त सरकार में कोई दलित समुदाय से मंत्री ही नहीं हैं, जबकि सच्चाई यहां का बच्चा-बच्चा जानता है। मतलब जनता को बेवकूफ बनाना कोई अगर सीखे तो सुदेश महतो से सीखें।

लेकिन जो राजनीतिक पंडित हैं, वो तो अच्छी तरह जानते है कि आजसू प्रमुख सुदेश महतो की राजनीति कहां से शुरु और कहां पर खत्म होती है। फिलहाल, ये एनडीए और भाजपा के प्रमुख नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और जे पी नड्डा को ये बताने के लिए ये सारा नौटंकी कर रहे है कि बिना उनके साथ गठबंधन किये और बिना उन्हें एक से दो टिकट लोकसभा को समर्पित किये, झारखण्ड में वे बेहतर नहीं कर सकते।

जबकि सच्चाई यह है कि सुदेश महतो को स्वयं उनकी पहचान की संकट आ खड़ी हुई है। एक नया उभरता चेहरा जयराम महतो ने इनकी नींद उड़ा दी है। वो कुर्मी समुदाय का एक नया चेहरा उभर कर सामने आया है, जिसके पीछे एक युवाओं की बड़ी फौज आ खड़ी हुई है। स्थिति ऐसी हो गई है कि जहां से सुदेश महतो राजनीति कर रहे हैं, जहां ये स्वयं समझते है कि वे मजबूत स्थिति में हैं, जयराम ने उनकी खटिया खड़ी कर दी है। इसलिए वे उस तालाब में तैरने के दौरान हाथ-पांव चला रहे हैं, जहां पानी ही नहीं हैं। इनकी हाथ-पांव मारने की इस कला में साथ देने के लिए रांची के कुछ अखबार व टूटपूजियें पत्रकार साथ आ खड़े हुए हैं, जिनको लगता है कि सुदेश महतो उनके अन्नदाता है। उन्हीं से उनकी कल्याण हो सकता है। ऐसे में समझा जा सकता है कि झारखण्ड की राजनीति किस करवट बैठने जा रही है।

आज भी सुदेश महतो वहीं कर रहे हैं, जो पहले किया करते थे, ये स्वयं को झारखण्ड का बड़ा कुर्मी नेता मान चुके हैं, पर ऐसा हैं नहीं। आज भी कुर्मी समुदाय से झामुमो में ही ऐसे बड़े-बड़े नेता हैं, जो इनकी राजनीति को कुंद करने के लिए काफी है। भाजपा में भी कुर्मी जाति के नेताओं की अच्छी खासी संख्या हैं, जिनकी अपने-अपने इलाकों में अच्छी पकड़ है और वे जीतते भी हैं। इसलिए कुल मिलाकर देखा जाये तो आजसू के इस राष्ट्रीय अधिवेशन में न तो झारखण्ड को बेहतर दिशा में ले जाने के लिए मंथन हुआ है और न ही इससे दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों व मूलवासियों को कुछ फायदा होनेवाला है। ले-देकर ये सारी कोशिश सुदेश अपने तथा अपने मौसा-मौसियों को बेहतर राजनीतिक स्थिति में लाने के लिए कसरत कर रहे हैं, इसमें उन्हें कितनी कामयाबी मिलेगी। वो विद्रोही24 को पता है।

फिलहाल स्थिति यह है कि झामुमो ने एनडीए की बत्ती यहां सदा के लिए गुल कर दी है। सुदेश महतो और उनके परिवारों की हार सुनिश्चित है। इस बार 2024 के चुनाव में जो भी पार्टी आजसू के साथ मिलकर लड़ेगी, उसका दिवाला भी निकलना उतना ही तय है, जितना की आजसू का, क्योंकि अब झारखण्ड की जनता आजसू और आजसू प्रमुख सुदेश महतो को अच्छी तरह जान गई है। रही बात अखबारों व चैनलों की तो बेचारे क्या करेंगे, उनके भी परिवार हैं, बच्चे-बच्चियां हैं, सपने हैं, वे तो वहीं छापेंगे या दिखायेंगे जो उन्हें कहा जायेगा, क्योंकि आजसू से उन्हें विज्ञापन और अन्य उपहार भी तो लेने हैं। इसलिए कई अखबार के कई पेज पिछले तीन दिनों से पहले से ही आजसू के लिए बुक कर दिये गये हैं।