अपनी बात

दो कौड़ी के विज्ञापन के लिए रघुवर दास के आगे ताता-थैया करनेवाले अखबारों-चैनलों ने हेमन्त मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों की शैक्षिक योग्यता को बनाया मुद्दा

28 जनवरी को राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। आम तौर पर किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को यह उसका विशेषाधिकार होता है कि वह किसे मंत्री बनाये और किसे मंत्री  न बनाएं। इसमें मुख्यमंत्री अपने विवेक का इस्तेमाल करता है और कोई उसे चुनौती भी नहीं दे सकता, पर झारखण्ड में इस बार हेमन्त मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों की शैक्षिक योग्यता मुद्दा बन गई है और इसे मुद्दा बनाया हैं, राज्य के तथाकथित धीर-गंभीर स्वयं को माननेवाले चैनलों-अखबारों ने।

उन अखबारों ने जो अपने अखबारों में जापानी तैल का प्रचार-प्रसार संभालते हैं। जापानी तैल जानते हैं न, अगर नहीं जानते हैं तो अखबारों के संपादकों से संपर्क करिये, वे जरुर बतायेंगे, जापानी तैल का कब और कहां उपयोग किया जाता है? तथा जापानी तैल के क्या-क्या फायदे हैं?

उन अखबारों ने जिन्होंने दो कौड़ी के विज्ञापन के लिए अपने संपादकीय पेज तक दांव पर लगा दिये थे, और रघुवर दास के आगे-पीछे करने में कोई कमी नहीं रहने दी। उन अखबारों ने जो रघुवर दास के मेहमान बन कर विभिन्न जिलों का दौरा किये और रघुवर दास के पक्ष में ठीक पेड न्यूज की तरह अखबारों में उन समाचारों को स्थान दिया।

उन चैनलों ने जो आधे घंटे का स्लॉट सीएम रघुवर दास के चरणों में एक तरह से समर्पित कर दिया था, ये अलग बात है कि आजकल ये चैनल रघुवर दास और उनके संग कभी काम किये लोगों का चरित्र-हनन करने में लग गये, मैं इसे चरित्र-हनन ही कहूंगा, क्योंकि जानकारी तो उनके पास पहले भी थी, उन्होंने तब उनके खिलाफ न्यूज क्यों नहीं प्रसारित किया, इसलिए न कि कहीं रघुवर दास विज्ञापन न बंद करा दें, अगर ऐसी पत्रकारिता आप करेंगे तो कहां जायेंगे और कहां जा रहे हैं? वो तो आपको पता ही हैं।

अब सवाल उठता है कि कोई कम पढ़ा-लिखा है या नहीं पढ़ पाया, तो क्या उसे मंत्री बनने का अधिकार नहीं हैं, भारतीय संविधान ने उस पर रोक लगा दिया है? क्या जो पढ़े-लिखे होते हैं, वे ही सिर्फ संस्कारित,चरित्रवान या बुद्धिमान होते हैं या उन्हें राज्य या देश चलाने का तजुर्बा होता हैं, और कम पढ़े-लिखे होनेवाले को नहीं?

मैं अपना तजुर्बा बताता हूं। मेरे माता-पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। केवल उनके पास अक्षर-ज्ञान था। डिग्रियां तो दूर की बात है, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जो संस्कार, जो चरित्र और जो बुद्धिमता के बीज उन्होंने हमारे जेहन में डाले, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर दूसरे घर में हमारा जन्म होता, तो मैं इतना संस्कारित नहीं होता, जितना मुझे संस्कारित होने का गर्व है।

हमें कोई मंत्री पढ़ा-लिखा हैं या नहीं या किस जाति का है, इससे हमें क्या मतलब? हमें तो मतलब है कि उसे जो दायित्व मिला, उस दायित्व को पूरा करने में उसने कितनी मेहनत की, कितनी ईमानदारी बरती, अगर उसने ऐसा नहीं किया तो हम उस पर सवाल दागेंगे, जनता के सामने उसे बतायेंगे कि ये व्यक्ति मंत्री क्या, जनप्रतिनिधि बनने लायक भी नहीं, पर शैक्षिक योग्यता को आधार बनाकर उसे मुद्दा बनाना, ये तो कोई पत्रकारिता नहीं।

फिलहाल एक पत्रकार है, जो बड़े अखबार में काम करते है, हाल ही में रांची प्रेस क्लब में बड़े पद पर चुने गये है, उन्होंने अपने सोशल साइट पर लिख दिया कि राजपूत, हो, मुंडा जाति से कोई मंत्री नहीं बना, अब सवाल उठता है कि हमारे देश में बताया जाता है कि तीन हजार से भी ज्यादा जातियां- उपजातियां हैं, तो ऐसे में जहां 11 मंत्री ही बनाये जाने हैं, वहां इतनी जातियों के लोग कैसे मंत्री बनेंगे?

आश्चर्य देखिये, उक्त पत्रकार ने सवाल उठाया और आज प्रेस क्लब में क्षत्रिय समाज के एक संगठन ने प्रेस कांफ्रेस बुला दिया, अब ऐसे में यह झारखण्ड बढ़ेगा कि नीचे जायेगा, ये चिन्तन का विषय है, इसलिए हम सभी जनता से अपील करेंगे कि वे अखबारों-चैनलों तथा कथित पत्रकारों के भ्रमजाल से दिग्भ्रमित न हो, जो आपका विवेक और आत्मा कहे, वही करिये, नहीं तो झारखण्ड बर्बाद हो जायेगा।

इसके लिए आप सभी जिम्मेवार होंगे, क्योंकि अब कोई यहां पत्रकारिता नहीं कर रहा, क्योंकि अब वो पत्रकार नहीं, दुकानदार है और दुकानदार केवल यह देखता है कि उसके यहां जो समान पड़ी हैं, वो सारे के सारे बिक जाये, चाहे वह सामान घटिया या एक्सपायर ही क्यों न हो गई हो? उसे उपभोक्ताओं के लाभ में कोई दिलचस्पी नहीं होती।