झारखण्ड पुलिस पर लिखी खबर, बड़े पुलिस अधिकारियों को नहीं आई रास, पत्रकार को थाने पर बुलाकर की पूछताछ

कल यानी 23 मई को देर रात हमने अपने वेबसाइट विद्रोही 24 पर एक न्यूज डाली। उस न्यूज का हेडिंग था – “झारखण्ड CID या पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं की रेमडेसिविर की कालाबाजारी करनेवाले महत्वपूर्ण शख्स का टेटूआ दबा दें, इसके लिए जिगर चाहिए, जो इनमें नहीं”। शायद यह समाचार राज्य में बैठे बड़े-बड़े पुलिस पदाधिकारियों को रास नहीं आया हैं, क्योंकि इसका परिणाम यह हुआ कि दोपहर होते ही मेरे मोबाइल पर कोतवाली थाने में पदस्थापित दारोगा का फोन आया कि आप कोतवाली थाने में शाम को पहुंचिये, मैंने कहा शाम को क्यों?

मैं अभी पहुंच जाता हूं, पर संदर्भ क्या है? उधर से दारोगा ने कहा कि बस वहीं पुराना मामला है। मैंने समझा कि शायद न्यूज 11 भारत ने जो मेरे खिलाफ इसी साल फरवरी माह में झूठी प्राथमिकी दर्ज करवाई है, उसी सिलसिले में लोग बुला रहे होंगे। मैं दोपहर में करीब दो बजे तक कोतवाली थाने पहुंच गया, मेरे केस के आइओ ने मुझे दस मिनट बाद कोतवाली थाना प्रभारी से बात कराई। कोतवाली थाना प्रभारी का पहला प्रश्न था – कि आपने अपने केस में जमानत लिया। मैंने उत्तर दिया – मैं क्यों जमानत लूं, अगर आपको लगता है कि मैंने अपराध किया हैं तो जेल में बंद कर दें, मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।

बातचीत से यह भी पता हमें लग गया कि मेरे द्वारा उस केस में यह कहने पर भी कि न्यूज 11 भारत के द्वारा ही बताये गये घटना की तारीख के दिन का घटना स्थल का सीसीटीवी फूटेज व सभी के मोबाइल का सीडीआर आप जल्द कैप्चर करें, ये अभी तक नहीं हुआ है, इसका मतलब है कि साक्ष्य जुटाने का प्रयास भी अब तक नहीं हुआ है, इसका कारण क्या हैं, भगवान जानें।

दूसरा प्रश्न था कि आपने आज डीजीपी के बारे में कुछ लिखा है, उन्हें बेईमान कहा है, मैंने कहा कि बेईमान शब्द का प्रयोग तो मैने नहीं किया, पर आप लिखे वाक्यों का मायने अगर निकालने शुरु करेंगे तो फिर बहुत सारे मायने निकलेंगे। उदाहरण और आप पाठकों की जानकारी के लिए मैंने अपने कल के समाचार में क्या लिखा हैं, फिर से डाल देना चाहता हूं, पुनः पढ़े –

“मैं तो कहता हूं कि जिस दिन कोई ईमानदार पुलिस अधिकारी पुलिस महानिदेशक या प्रमुख पद पर पहुंच गया, तो समझ लो तुम्हारी सारी गड़बड़ियों का अंत हो जायेगा, समय नजदीक है, फिलहाल वर्तमान पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा के शासनकाल में तुम मस्ती कर सकते हो। इसकी शत प्रतिशत गारंटी है, क्योंकि वर्तमान पुलिस महानिदेशक तुम्हारे खिलाफ कुछ नहीं करेगा, हां तुम जिसको उलटा लटकाना चाहो, जरुर लटकवा देगा, इसके पक्के सबूत है मेरे पास।”

अब सवाल उठता है कि क्या कोई खबर, अगर कोई पत्रकार प्रकाशित करेगा तो उसके लिए भी कोतवाली थाने में बुलाकर पूछ-ताछ की जायेगी? और जब ऐसा है तो क्या झारखण्ड पुलिस के अधिकारी ये बतायेंगे कि अब तक किन-किन पत्रकारों को आपने किन-किन समाचार लिखने पर थाने में बुलाकर पूछ-ताछ की है। ताजा मामला तो रेमडेसिविर दवा का ही है, जिस चैनल से वो रेमडेसिविर की शीशी बड़े प्रेम से आपने प्राप्त किया, जिसने खुद को बचाने के लिए अपने चैनल से लाइव करा दी, क्या आपने उसे बुलाकर, कोई पूछताछ की, उसने तो बचने के लिए स्टिंग का लेवल लगा दिया और आप संतुष्ट हो गये।

भाई जितनी उदारता आप हम पर दिखा रहे हैं, थोड़ा अन्य पर भी दिखाइये। हमारा सवाल यही तो है कि एक के लिए लाठी का प्रबंध और दूसरे के लिए सूरमा देने का तरीका कहां से आपने अपना लिया? अंततः विनम्र अनुरोध राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से क्या अब समाचार लिखने पर भी इस प्रकार के हथकंडे पुलिस के बड़े पदाधिकारियों के इशारे पर थाने में बैठे छोटे अधिकारी करेंगे, तब तो ऐसे में गलत संदेश जायेगा।

हां, अगर एक सत्यनिष्ठ पत्रकार को फंसा कर उसका जीवन तबाह करना हैं, तो बात ही अलग है। एक धुर्वा का थानेदार था – तालकेश्वर राम। बाद में सुना की डीएसपी भी बना। जब भी मिलता बड़ा बौद्धिक देता और बाद में पता चला कि उसने राज्य की भाजपा सरकार और पुलिस सेवा में बैठे बड़े पदाधिकारियों के इशारे पर मेरे एक झूठे केस को ट्रू करार कराने में एड़ी चोटी लगा दी, और मैं जानता हूं कि इसकी सजा उसे ईश्वर कही न कही दे ही रहा होगा, क्योंकि उसकी अदालत से भला कोई बचा है क्या?

अब नया झूठा केस कोतवाली में झेल रहा हूं। सब कुछ वहीं है, केवल नाम बदल गया है, पर मुझे ईश्वर पर भरोसा है, उसके न्याय पर भरोसा हैं, बाकी किसी पर नहीं। हालांकि ये सब मैं नहीं लिखना चाहता था, पर मेरी बहन जो सत्यनिष्ठ पत्रकार हैं, थोड़ी देर पहले ही उससे बात हुई, उसने कहा कि नहीं, इस पर आपको लिखना चाहिए, क्योंकि ये गलत परम्परा की शुरुआत हो रही हैं, इसका विरोध  होना ही चाहिए, आपने गलत ही क्या लिखा है?