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CM आवास में बैठकः मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन बने रहेंगे, इधर राजनीतिक पंडितों का अनुमान ईडी प्रकरण से इंडिया एलायंस को झारखण्ड में फायदा जबकि भाजपा को नुकसान

झारखण्ड में फिर से एक बार राजनीतिक बवंडर उठा है और इस बवंडर का क्या परिणाम निकलेगा, यह समय के गर्भ में हैं। लेकिन एक जनवरी को गांडेय के झामुमो विधायक सरफराज के इस्तीफे और स्पीकर रवीन्द्र नाथ महतो द्वारा उनके द्वारा दिये गये इस्तीफे की मंजूरी, फिर विभिन्न राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं के बयान, राजभवन की गहमागहमी, उसके बाद अचानक झामुमो द्वारा मीडिया को रांची के कांके रोड स्थित सीएम आवास पर तीन जनवरी को गठबंधन दलों के विधायकों की बैठक की दी गई जानकारी मीडिया में बैठे रांची से दिल्ली तक के राजनीतिक धुरंधरों और राजनीतिक पंडितों को बैठे-बैठाये राजनीतिक अफवाहों को फैलाने का बड़ा मौका दे दिया। जो राजनीतिक बवंडर का रुप ले चुका है।

हालांकि मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के मन-मस्तिष्क में क्या चल रहा है? किसी को पता नहीं है। लेकिन सभी ने एक स्वर से राजनीतिक परिवर्तन की बात कह दी। हेमन्त सोरेन की जगह पर उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की बात को हवा दे दी। हालांकि कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की बात कोई अचानक नहीं निकली है। जब से प्रवर्तन निदेशालय ने मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को कथित जमीन घोटाले में अपने रडार पर लिया है और बार-बार उन्हें समन जारी की है। तभी से ज्यादातर मीडिया के लोगों तथा हेमन्त सोरेन के कट्टर विरोधियों ने मान लिया कि आज नहीं तो कल हेमन्त सोरेन को जेल जाना ही है और जब वे जेल जायेंगे तो अपनी जगह वे अपनी पत्नी को ही मुख्यमंत्री बनायेंगे।

हालांकि मुख्यमंत्री कौन बनेगा या नहीं बनेगा जब तक उस पद पर हेमन्त सोरेन है। तब तक केवल अफवाह का ही बाजार गर्म रहेगा। लेकिन सच्चाई यह भी है कि जब से इस राज्य में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन बने हैं। चाहे वो जनता के बीच में कितने भी लोकप्रिय क्यों न हो। जनता उन्हें हाथों-हाथ क्यों न लेती हो। पर रांची की मीडिया और उनके विरोधियों ने उन्हें कभी भी नहीं स्वीकारा।

जिन्हें भी झारखण्ड का थोड़ा सा भी ज्ञान है। वे इसे अस्वीकार नहीं कर पायेंगे कि जब दिसम्बर 2019 के पहले रघुवर की सरकार थी। तब उस वक्त चल रहे विधानसभा चुनाव अथवा विधानसभा चुनाव के पूर्व नेता प्रतिपक्ष के रुप में हेमन्त सोरेन के रहने के बावजूद भी रांची व दिल्ली की मीडिया में हेमन्त सोरेन को वो स्थान नहीं मिला, जो एक विपक्ष के नेता को मिलना चाहिए। लेकिन आज की स्थिति क्या है? आज तो हेमन्त सोरेन से भी ज्यादा राज्य के विपक्षी दलों को जगह मिल रहा है।

एक अखबार तो प्रतिदिन विपक्षी दलों के नेताओं को फोन कर-कर के उनके बयान ले रहा हैं और अपने अखबार में स्थान दे रहा है। मामला क्या है, सबको पता है। लेकिन उस मामले में भी भाजपा का राज्यसभा सदस्य, योगेन्द्र तिवारी द्वारा उसके प्रधान संपादक को कथित धमकी मामले में सीबीआई जांच की मांग कर डाली है। इसे कहते है, नेता और मीडिया की यारी। जो कभी हेमन्त सोरेन को नसीब ही नहीं हुई और न मिलेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो एक तरफ कोरोना की त्रासदी को दो सालों तक झेलना, फिर राज्यपाल के तेवर को झेलना, उसके बाद प्रवर्तन निदेशालय की बार-बार समन, विपक्ष द्वारा बेवजह की सदन में जनहित में पेश विधेयकों में अड़ंगे डालने के बावजूद हेमन्त सोरेन का डटे रहना कोई सामान्य बात नहीं। राजनीतिक पंडित यह भी कहते है कि हेमन्त का डटे रहना इस बात का संकेत हैं कि उन्हें पता है कि ईडी, केन्द्र, राजभवन और मीडिया कुछ भी कर लें, राज्य की जनता का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त है।

राजनीतिक पंडित यह भी मानते है कि अगर ईडी, केन्द्र, राजभवन व मीडिया का यही रवैया रहा तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहां से लेने के देने पड़ सकते हैं, क्योंकि ओपीएस, पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, बालिकाओं को दी गई साइकिलें, आवास योजना की शुरुआत, सरना धर्म कोड, निजी क्षेत्र में 75 प्रतिशत का आरक्षण और 1932 के डोमिसाइल ने झारखण्ड में हेमन्त सोरेन को बहुत ही मजबूत कर दी है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो कही झारखण्ड में 2004 की पुनरावृत्ति न हो जाये, क्योंकि जैसे भाजपा को उस समय यहां से मात्र एक लोकसभा की सीट मिली थी, इस बार वैसा ही मामला न बन जाये, क्योंकि यहां वर्तमान में भाजपा की अपेक्षा राजद-कांग्रेस और झामुमो का गठजोड़ ज्यादा मजबूत है। उसका मूल कारण प्रदेश स्तर के भाजपा नेताओं में हेमन्त के बराबर किसी नेता का नहीं होना है। इसे सभी स्वीकारते हैं।

प्रदेश के भाजपा नेताओं में ले-देकर उनके पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी है, जो यहां भी लोकप्रिय है। श्रीराममंदिर में उनकी भूमिका ने उनके प्रति जनता का मन खींचा हैं, लेकिन बार-बार ईडी द्वारा दिये जा रहे मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को समन, जनता को लगता है कि केन्द्र के दबाव पर यहां यह केन्द्रीय एजेंसियां काम कर रही हैं और यह बात हर जनता के दिमाग में बैठ गई है। शायद यही खतरा लोकसभा में भाजपा के लिए खतरा बन सकता है। याद करिये, 2004 में सभी सर्वें यहां भाजपा को बेहतर स्थिति में बता रहे थे, पर जब चुनाव परिणाम आया तो सभी के सांप सूंघ गये। कही वहीं स्थिति इस बार न हो जाये।

हालांकि आज की बैठक जो मुख्यमंत्री आवास पर चल रही थी। वो कुछ घंटे पहले खत्म हो गई। उस बैठक में कुल 43 विधायक पहुंचे थे। बैठक खत्म होने के बाद इंडिया एलायंस के एक बड़े नेता प्रदीप यादव ने तो साफ कह दिया कि हेमन्त सोरेन आज भी उनके मुख्यमंत्री है, कल भी मुख्यमंत्री वहीं रहेंगे। मतलब साफ है कि इंडिया एलायंस के नेताओं के हौसले बुलंद है। सीएम हेमन्त सोरेन का हर प्रकार के कोई भी फैसले लेने की छूट दे दी है। मतलब वो जो भी करेंगे। इंडिया एलायंस उनके साथ एकजूट रहेगा। आज की विशेष बात यह भी रही कि गांडेय सीट से इस्तीफा देनेवाले सरफराज अहमद भी इस बैठक में शामिल रहे। उन्होंने भी साफ कह दिया कि उन्हें जो कहा गया। उन्होंने कर दिया। उन्हें कोई गम नहीं है कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे को कोई भी अपने-अपने नजरिये से देख सकता है।

कुल मिलाकर देखा जाये, तो विपक्ष और मीडिया को आज की सीएम आवास पर हुई बैठक से जरुर धक्का लगा होगा। शायद वो अपनी बातों पर मुहर लगाना चाहता था कि आज बैठक में मुख्यमंत्री कल्पना सोरेन को लेकर कुछ निर्णय हो जायेगा। चैनलों और अखबारों ने तो जैसे लगता है कि हेमन्त सोरेन को मुख्यमंत्री पद से आज हटवा ही दिया था। विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलवा दिया था। राजभवन को भी ड्रीम लाइट में ले आया था। लेकिन आज की बैठक से निश्चय ही सभी को धक्का लगा होगा।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो उनका साफ कहना है कि अगर ईडी हेमन्त सोरेन को गिरफ्तार करती है। तो इसका असर वो नहीं होगा, जैसा भाजपा के प्रदेशस्तर के नेता समझ रहे हैं। असर यह होगा कि हेमन्त सोरेन के साथ जनता तो होगी, लेकिन भाजपा के पास जनता तो नहीं होगी, मीडिया और चैनलवाले जरुर होंगे, क्योंकि बार-बार हेमन्त सोरेन को चैलेंज कर-कर के भाजपावालों ने कम ही समय में ऐसा-ऐसा निर्णय हेमन्त सोरेन से करवा लिया कि वो हेमन्त सोरेन के लिए मजबूती का काम कर दी। आज की स्थिति भी वैसी ही है।

भाजपा के बाबूलाल मरांडी को छोड़कर कोई प्रदेश का नेता बताये न कि क्या वे अपने बलबूते एक भी सीट विधानसभा का सीट निकाल सकते हैं। उत्तर होगा- नहीं। अरे ये वार्ड कमीश्नर का चुनाव नहीं जीत सकते। विधायक और सांसद के चुनाव की बात तो अलग है। चाहे वो दीपक प्रकाश हो या प्रदीप वर्मा, आदित्य साहू हो या और कोई। इधर तो भाजपा में बिल्डरों और धनकूबेरों को पार्टी में शामिल करने का अभियान चला हुआ है। जो उनके लिए ही आनेवाले समय में काल साबित होगी, क्योंकि उनके इस अभियान से तो उनके कार्यकर्ता ही नाराज है। बस समय का इंतजार करिये।