अपनी बात

जैसी सरकार वैसी झारखण्ड की अखबार, मल्टीप्लेक्सों पर खूब ध्यान पर मृतप्राय एकल स्क्रीन सिनेमा की ओर किसी का ध्यान ही नहीं

ऐसे तो पूरे देश में प्रत्येक वर्ष 16 सितम्बर को राष्ट्रीय सिनेमा दिवस मनाया जाता है, पर इस बार मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने 23 सितम्बर को राष्ट्रीय सिनेमा दिवस मनाया और इस अवसर पर अपने दर्शकों को मात्र 75 रुपये में देश के विभिन्न मल्टीप्लेक्सों में सिनेमा दिखाने का प्रबंध किया, जो सफल भी रहा, लेकिन क्या आपको यह भी पता है कि जहां आप रहते हैं, वहां के एकल स्क्रीन सिनेमा व्यवसाय से जुड़े लोगों का क्या हाल रहा, नहीं न, तो क्या इनके बारे में हमें नहीं जानना चाहिए?

हम आपको बताते है कि एकल स्क्रीन सिनेमा व्यवसाय से जुड़े, खासकर झारखण्ड के सिनेमा उद्योगों का हाल बहुत ही बुरा है, स्थिति ऐसी है कि इस उद्योग से जुड़े लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं, पर न तो राज्य सरकार और न ही उनके अधिकारी इसकी सुध ले रहे हैं, कुछ राज्यों ने तो सुध ली, जिससे इस उद्योग का हाल सुधरा है, पर झारखण्ड में तो जैसे लगता है कि राज्य सरकार और उनके अधिकारियों ने कसम खा ली है कि इस उद्योग को पूरी तरह मार देना है।

आश्चर्य यह भी है कि 23 सितम्बर को ज्यादातर इस राज्य के प्रमुख अखबारों ने मल्टीप्लेक्सों के तो हाल जानें और उसे अपने अखबारों में स्थान भी दिया, लेकिन एकल स्कीन सिनेमा उद्योग की सुध लेने की जहमत नहीं उठाई। झारखण्ड सिनेमा प्रदर्शक संघ के प्रशांत कुमार बताते हैं कि एक साल पहले उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को पत्र लिखा था और सोचा था कि पत्र लिखने का असर होगा, वो भी दिख नहीं रहा।

वे बताते है कि उन्होंने अपने पत्र में इस बात का जिक्र किया था कि झारखण्ड एकल स्क्रीन सिनेमा व्यवसाय को रुग्ण उद्योग घोषित किया जाय, चूंकि कई राज्यों में इस उद्योग को एसजीएसटी से मुक्त कर दिया गया है, इसलिए यहां भी इसे मुक्त किया जाय। झारखण्ड एकल स्क्रीन सिनेमा को अत्यधिक नगर निगम का टैक्स देना पड़ता है, जिससे निजात दिलाने के लिए नगर निगम टैक्स को एक अप्रैल 2020 से पांच साल के लिए मुक्त करने का प्रबंध किया जाय, जिसमें होल्डिंग/संपत्ति कर, वाटर टैक्स, यूजर चार्ज आदि भी शामिल हो।

प्रशांत कुमार कहते है कि चूंकि कोविड काल में इस सिनेमा उद्योग को बहुत बड़ा झटका लगा है, क्योंकि काफी समय तक यह एकल स्क्रीन सिनेमा बंद रहा, इसलिए इसकी लाइसेंस फीस माफ हो, साथ ही बिजली बिल में फिक्स चार्ज से भी छूट मिले। सरकार बैंक द्वारा सब्सिडी लोन दिलाने का प्रबंध करें, ताकि ये उद्योग फिर से चालू हो सकें, क्योंकि बैंक अधिकारी लोन नहीं देते, उनका कहना है कि यह उद्योग मर चुका है।

प्रशांत कुमार का कहना है कि राज्य सरकार अगर थोड़ा भी इस उद्योग पर ध्यान दे दें, तो इसकी स्थिति सुधर सकती है, पर पता नहीं क्यों राज्य सरकार का ध्यान इस ओर नहीं जाता, कई बार उनके प्रतिनिधि राज्य सरकार से मिलने की भी कोशिश की, पर राज्य सरकार ने इनके प्रतिनिधियों से मिलने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।