पहले भाजपा ये तो बताएं कि राज्य में उसका एक नंबर का नेता कौन? बाबूलाल, रघुवर, दीपक या अर्जुन मुंडा

पहले भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश के नेता इस विवाद को तो सुलझाए कि झारखण्ड में भाजपा का सबसे बड़ा, प्रभावशाली, सभी कार्यकर्ताओं में समान रुप से ग्राह्य एक नंबर का नेता कौन है? बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा या दीपक प्रकाश, क्योंकि जब तक ये क्लियर नहीं हो जाता कि झारखण्ड में एक नंबर का भाजपाई नेता कौन है, हमें नहीं लगता कि झारखण्ड में हेमन्त सोरेन जैसे मजबूत नेता को फिलहाल कोई चुनौती भाजपा की ओर से मिलने जा रही है।

क्योंकि जो भी भाजपा में अभी नेता हैं, वे सभी उधार की बुद्धि लेकर अपने-अपने तरीके से शेखी बघार रहे हैं, पर किसी की चल नहीं रही, हांलांकि सभी अपने-अपने लोगों को कह रखे है कि जैसे ही कुछ उनकी ओर से बयान या फोटो जारी हो, सभी धड़ल्ले से उन बयानों और फोटो को सोशल साइट पर अपने-अपने स्तर से जारी करें, पर इसका लाभ किसी को मिल नहीं रहा। इधर हेमन्त सोरेन ने अपने क्रियाकलापों से इस प्रकार अपनी राज्य में स्थिति मजबूत कर ली है कि हेमन्त सोरेन के आगे-पीछे भाजपा का कोई राज्यस्तरीय नेता कही दिखाई ही नहीं दे रहा।

कमाल की बात है कि एक ओर बाबू लाल मरांडी और दीपक प्रकाश दिल्ली जाकर कभी गृह मंत्री अमित शाह के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं तो कोई जे पी नड्डा के साथ अच्छे बच्चे की तरह खड़ा होकर अपनो फोटो सोशल साइट पर डाल रहा हैं, पर सच्चाई यह भी है कि इनकी स्थिति ऐसी हो गई है कि इनके भाषण सुनने के लिए राज्य में शायद ही कही कोई भीड़ दिखाई दें, क्योंकि इन सभी ने अपना इमेज खुद ही बिगाड़ लिया है, क्योंकि दोनों कभी न कभी झाविमो में अपनी किस्मत अजमा चुके हैं, ये अलग बात है कि अभी खुद को सबसे बड़ा भाजपाई और करिश्माई नेता दिखाने में लगे हैं।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो जब प्रदेशस्तरीय कार्यसमिति की सूची बन रही थी, उस वक्त सभी ने जोर लगाया था कि उनके लोग प्रदेशस्तरीय कार्यसमिति में प्रभावी रुप से आये, पर जिस प्रकार से रघुवर लॉबी ने अपना करिश्मा दिखाया, बाबू लाल मरांडी का कोई करिश्मा काम नहीं आया, दीपक प्रकाश अपने कुछ लोगों को कार्यसमिति में लाये, पर अर्जुन मुंडा के लोग तो एक तरह से साफ ही हो गये, जो लोग अर्जुन मुंडा की राजनीति को जानते हैं, वे यह भी जानते है कि वे बोलते कम और करते ज्यादा है, और वे वेट एंड वाच की पॉलिसी में विश्वास करते हुए, फिलहाल केन्द्रीय राजनीति में ज्यादा अपने को सेफ मान रहे हैं।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो जो कद बाबू लाल मरांडी का झाविमो सुप्रीमो का था, फिलहाल भाजपा में आने से, उनका वो कद पूरी तरह समाप्त हो गया, अब वे भाजपा के बड़े व स्थानीय नेताओं के रहमोकरम पर हैं, तभी तो नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए इन्हें नाक रगड़ने पर रहे हैं, और इसमें इन्हें सफलता नहीं मिल रही, उधर रघुवर लॉबी, बाबू लाल मरांडी को फूंटी आंखों देखना पसन्द नहीं करती, पर चूंकि सरकार नहीं है, खुद जमशेदपुर पूर्व में अपनी लूटिया डूबो चुके हैं, इसलिए वे खुद ही शर्मसार होकर, आजकल जमशेदपुर में ज्यादा समय बीता रहे हैं, लेकिन अभी भी हाथी उड़ाने की मंशा उनकी गई नहीं हैं, वे सोच रहे है कि भले ही झारखण्ड में हाथी नहीं उड़ा सकें, पर भाजपा जैसी पार्टी में हाथी तो उड़ा ही देंगे, लेकिन उनकी हाथी उड़ाने की कला में अगर कोई सेंध लगा रहा हैं, तो सबसे बड़े उनके घुर-विरोधी बाबू लाल ही हैं।

हालांकि जिस व्यक्ति ने बाबू लाल मरांडी को भाजपा में लाने के लिए दिमाग लगाया था, और जिसके कहने पर बाबू लाल मरांडी भाजपा में आये हैं, निश्चित मानिये, भाजपा जब भी चुनाव लड़ेगी, उसका हाल झारखण्ड विकास मोर्चा वाला होगा, यानी कितना भी जोड़ लगा लें, पन्द्रह और बीस के बीच में ही इनकी सीटें आयेंगी, और भाजपा का सत्यानाश उतना ही सुनिश्चित होगा, शायद भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को नहीं मालूम, अब तय करना है भाजपा को कि वो किसके बल पर भाजपा को झारखण्ड में शीर्ष पर लायेगी, पर हमें लगता है कि जब तक हेमन्त है, अब भाजपा शीर्ष पर आना भूल जाये, क्योंकि युवा हेमन्त के आगे, भाजपा का कोई स्थानीय नेता कही से टिकता नहीं दिखता, क्योंकि भाजपा के पास दलबदलूओं की फौज हैं तो सामने खांटी झारखण्डी हेमन्त सोरेन और उनकी पार्टी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा है।