धर्म

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।

रांची के चुटिया अयोध्यापुरी स्थित वृंदावनधाम में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में देर रात तक लोग भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में डूबे रहे। वृंदावनधाम में ऐसा लगा, जैसे मानो स्वर्ग धरती पर उतर आया हो, लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म प्रसंग में दीपावली मनाई, नन्दोत्सव के दौरान लूटाएं जा रहे नाना प्रकार के मिठाइयों और उपहारों को पाने के लिए भक्तों व श्रद्धालुओं में होड़ सी दिखी, देर रात तक भगवानश्रीकृष्ण की झांकी और उनके पालने को झूलाने के लिए लोगों में गजब की भक्ति दिखी। इधर ये सब कार्यक्रम चलता रहा और उधर महाराष्ट्र से आये भागवताचार्य संत मणीषजी भाई महाराज लोगों को श्रीकृष्ण के चरित्र को जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करते रहे।

उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति श्रीकृष्ण की भक्ति करता है, श्रीकृष्ण उसे हर प्रकार के पाशों से मुक्त कर देते हैं, जैसे उन्होंने अपने माता-पिता देवकी और वसुदेव को मुक्त किया। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण को आज समझने और जानने की जरुरत हैं। भारत में, भारत को प्यार करनेवाला, भारत को चाहनेवाला, भारत की उन्नति के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष करनेवाला भगवानश्रीकृष्ण के जैसा दूसरा आज तक भारत में जन्म ही नहीं लिया। देश क्या होता है, धर्म क्या होता, ये  सिर्फ श्रीकृष्ण ही आपको बेहतर सीखा सकते हैं। उन्होंने कहा कि राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ, पर भगवानश्रीकृष्ण का पूरा जीवन ही संघर्षमय रहा, जन्म से लेकर मोक्ष की प्राप्ति तक भगवान श्रीकृष्ण खतरों से खेलते रहे और अपने भक्तों को आनन्द प्रदान करते रहे।

उन्होंने यह भी कहा कि लोग चाहते है कि उनके घर में भगवान राम या भगवान कृष्ण जन्म लें, पर उन्हें मालूम होना चाहिए कि जहां दशरथ जैसे पिता और कौशल्या जैसी मां होती हैं, वहीं राम का जन्म होता है, और जहां वसुदेव जैसे पिता और देवकी जैसी मां होती है, वहीं भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होता है, जहां नन्द बाबा जैसे पिता और यशोदा जैसी मइया होती हैं, वहीं संस्कार और चरित्र का जन्म होता हैं, इसलिए हर मां यशोदा, कौशल्या और देवकी जैसी बनने की कोशिश करें और पिता दशरथ, वसुदेव और नन्दबाबा जैसे बने, फिर देखिये हर घर में राम और श्रीकृष्ण कैसे दिखाई पड़ते हैं।

मणीषभाई जी महाराज ने कहा कि हर घर को रामायण बनाइये, श्रीरामचरितमानस पढ़िये, श्रीरामचरितमानस का एक-एक चरित्र अनुकरणीय है। बेटा कैसा हो तो श्रीराम के जैसा, भाई कैसा हो तो भरत जैसा, मित्र कैसा हो तो निषादराज के जैसा, सेवक कैसा हो तो केवट जैसा। उन्होंने यहां तक कहा कि शत्रु कैसा हो, तो वह भी श्रीरामचरितमानस आपको सिखायेगा, कहेगा – रावण के जैसा। जो श्रीराम से परास्त होने के बाद भी कहता है कि हे प्रभु मैंने अपनी प्रतिज्ञा पुरी की, कि आपको जीते जी अपने जन्मभूमि लंका पहुंचने नहीं दिया और मरणोपरांत मेरा भाग्य देखिये कि मैं आपके वैकुंठ की ओर प्रस्थान कर रहा हूं, अतः हमारी तो हर प्रकार से जीत ही जीत है। रामायण की कथा हमारी पूंजी है, हमारे संस्कार इसी से जागेंगे, अपने बच्चों को रामायण-श्रीमद्भागवत की कथा सुनाएं, ठीक उसी प्रकार जैसे जीजाबाई ने शिवाजी को सुनाया और शिवाजी ने अपनी मां के इन कथाओं को सुन अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए निकल पड़े।

उन्होंने कहा कि जीवन में ऐसा ऐहसास होना चाहिए कि जीवन में सत्संग नहीं, भगवत्प्रेम नहीं, तो कुछ भी नहीं,  जिस दिन आपको यह ऐहसास हो जायेगा, यकीन मानिये, आपके हृदय में भक्ति प्रकट हो जायेगी। उन्होंने कहा कि भगवान का भजन जब गाये तो यह मत देखे कि आपने कितनी बार भजन गाया, आप सिर्फ यह देखे कि आपके भजन में, संकीर्तन में, हरिस्मरण में भाव कितना और कैसा था, क्योंकि भगवान क्ववांटिटी नहीं, बल्कि क्वालिटी देखते है। उन्होंने कहा कि जिस दिन आप भगवान कृष्ण और भगवान राम से जुड़ गये, दुनिया की कोई ताकत आपको हानि नहीं पहुंचा सकती, क्योंकि फिर आप भगवान के हो गये, भला भगवान अपने भक्तों को कष्ट में कैसे देख सकते हैं।