कोडरमा SDO, जो संसद से पारित व राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित कानून को भी असंवैधानिक बता देता है

ऐसे-ऐसे लोग एसडीओ कैसे बन जाते हैं? जो संसद से पारित कानून को ही असंवैधानिक बता देते हैं। जरा देखिये कार्यालय, अनुमंडल पदाधिकारी, कोडरमा का आदेश, अनुमंडलाधिकारी कोडरमा ने क्या आदेश जारी किया है? आदेश में लिखा है कि”आवेदक प्रेम कुमार पांडेय एवं अनवारुल हक, सामाजिक एकता मंच, कोडरमा के द्वारा दिये गये आवेदन पत्र जो, पूरे देश में NRC एवं CAA जैसा काला कानून लाने के खिलाफ जो, देश की जनता को बांटने और उन्हें भारी मुसीबत में डालने एवं यह काला कानून जन विरोधी के साथ-साथ संविधान विरोधी भी है।”

अब सवाल उठता है कि जो CAA संसद के दोनों सदनों से पारित होकर, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून का रुप ले चुका है, भला उस कानून को एक अधिकारी संविधान विरोधी कैसे बता सकता है? उसे काला कानून कैसे कह सकता है? उस कानून को देश की जनता को बांटने और उन्हें भारी मुसीबत में डालनेवाला कैसे करार दे सकता है? उस कानून को जन-विरोधी बताते हुए, प्रदर्शन के पक्ष में अपनी बयानबाजी कैसे आदेश के रुप में जाहिर कर सकता है?

आखिर वह किस बुनियाद पर ऐसा कर व कह डाला, आदेश जारी कर दिया, क्या उस अनुमंडलाधिकारी को भी राजनीति का स्वाद लग चुका है, अगर उसे राजनीति का स्वाद लग चुका है तो फिर अनुमंडलाधिकारी के पद पर बैठ कर भारत सरकार को कैसे चुनौती दे रहा हैं? उसे तो त्याग पत्र देकर शीघ्रातिशीघ्र किसी राजनीतिक दल को ज्वाइन कर अपनी राजनीतिक प्यास बुझाने का काम करते हुए, जो मन में आये बकना चाहिए, पर जो महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद पर बैठा व्यक्ति हैं, वह इस प्रकार का उलजूलुल वक्तव्य, वह भी आदेश के माध्यम से कैसे जारी कर सकता है?

राज्य सरकार को तो इसका संज्ञान लेना चाहिए, आखिर उस अनुमंडलाधिकारी ने ऐसा कैसे आदेश जारी किया? हालांकि राज्य सरकार इस मुद्दे पर क्या एक्शन लेगी, ये तो बाद की बात हैं, पर सोशल साइट में कोडरमा के अनुमंडलाधिकारी की बुद्धि की खूब बांट लगाई जा रही है, लोग खुब उसकी बुद्धि की बलिहारी पर कमेन्ट्स दे रहे हैं, पर इन अनुमंडलाधिकारियों को इससे क्या मतलब? इनकी इज्जत भी जाये तो भी ये खुद पर गर्व करना ये नहीं भूलते, क्योंकि इनको क्या पता कि इज्जत क्या चीज होती है?