अपनी बात

भाजपा को गति देने के लिए भेजे गये संगठन मंत्री कर्मवीर, बाबूलाल मरांडी और पार्टी दोनों के लिए बने स्पीड ब्रेकर, लक्ष्मीकांत वाजपेयी और नागेन्द्र नाथ त्रिपाठी हुए किंकर्तव्यविमूढ़

झारखण्ड में भाजपा की हालत पस्त है। केन्द्र में बैठे भाजपा के दिग्गजों को लगता है कि उन्होंने झारखण्ड अब फतह कर ली है, लेकिन विद्रोही24 से कोई पूछे तो वो यही कहेगा कि यहां भाजपा लोकसभा में इस बार 2004 का परिणाम प्राप्त करने जा रही हैं। ज्ञातव्य है कि भाजपा 2004 में मात्र एक लोकसभा सीट जीती थी। इसका मूल कारण प्रदेश स्तर पर पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं का आपस में सिरफुटौव्वल हैं।

साथ ही जमीनी कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा हैं। इन्हें लगता है कि श्रीरामजन्मभूमि के पीली अक्षत के सहारे लोकसभा सीट जीत लेंगे तो इस पर हम यही कहेंगे कि हर व्यक्ति और हर पार्टी को सपनों का हवामहल बूनने की पूरी स्वतंत्रता हैं, इसमें उसे चूकना भी नहीं चाहिये। राजनीतिक पंडितों की मानें तो कुछ नामों पर बाबूलाल मरांडी को घोर आपत्ति हैं। लेकिन जिन नामों पर बाबूलाल मरांडी को घोर आपत्ति हैं। उसी नामों से कर्मवीर सिंह को प्यार भी हैं।

वे चाहते है कि उनके प्यारे नुमाइंदे नई कार्यसमिति बनें तो उसमें भी पूर्व की तरह उच्च पदों पर विराजमान हो, ताकि उनकी हमेशा जय-जय होती रहे। पार्टी में शुरु से ही परम्परा रही है कि संगठन महामंत्री संघ का प्रचारक या पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहते हैं। वे मंच और माइक से दूर रहते हैं। ये दूर ही रहकर शिल्पीकार बनकर काम करते हैं। लेकिन झारखण्ड में सब कुछ उलटा-पूलटा हो रहा है। यहां कर्मवीर सिंह भाजपा रुपी बस की स्टीयरिंग संभाल ली हैं, जबकि बाबूलाल मरांडी को उन्होंने पिछली सीट पर बिठाकर रख दिया है।

कमाल है, झारखण्ड में नागेन्द्र नाथ त्रिपाठी जैसे क्षेत्रीय संगठन मंत्री, लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे झारखण्ड प्रभारी मौजूद हैं। फिर भी झारखण्ड में भाजपा शून्य पर जाकर टिक गई है। उसका मूल कारण इन दोनों नेताओं का पार्टी में चल रहे इस प्रकार की हरकतों पर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाना है। रांची हो या जमशेदपुर हर जगह पार्टी की हालत खराब है। कही दो गुट तो कही इससे भी अधिक गुटों ने मोर्चा संभाल लिया हैं और सभी एक दूसरे को बर्बाद करने के चक्कर में पार्टी को बर्बाद कर रखे हैं।

बताया जा रहा है कि कर्मवीर सिंह चाहते हैं कि उनके प्यारे नुमाइंदे जैसे प्रदीप वर्मा, रमेश सिंह और राकेश भास्कर जैसे लोगों को नई टीम में जगह मिलें और उन्हें उच्च पद दिये जाये, जबकि बाबूलाल मरांडी ऐसे किसी भी लोगों को नई टीम में जगह नहीं देना चाहते हैं, जिनके पार्टी में स्थान देने से पार्टी का नुकसान हो जाये। राजनीतिक पंडितों की मानें तो प्रदेश अध्यक्ष बने बाबूलाल मरांडी को सात महीने से भी अधिक हो गये, लेकिन अभी तक टीम का नहीं बनना, यह बताने के लिए काफी हैं कि पार्टी में क्या हो रहा हैं और कैसे भाजपा झारखण्ड में आजसू से भी खराब पोजीशन की ओर बढ़ रही हैं।

एक ओर आजसू हर सप्ताह ऐसे-ऐसे लोगों को अपने साथ जोड़ रही है, जो समाज में एक बेहतर स्थिति में हैं, जबकि भाजपा में ऐसे लोग आ रहे हैं, जिनकी समाज में कोई पकड़ नहीं हैं, बल्कि ये खुद भाजपा के सहारे अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। भाजपा में ही कई ऐसे पुराने दिग्गज नेता व कार्यकर्ता हैं, जो पार्टी को मजबूत स्थिति में ला सकते हैं।

लेकिन सच्चाई यह है कि पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं ने इनकी ओर न ध्यान देकर, पिछले सात-आठ साल से दूसरे दलों से आये अथवा अपने निजी स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए भाजपा में शामिल हुए लोगों को महत्व देना शुरु कर दिया हैं, जिससे पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं में भयंकर नाराजगी हैं। एक भाजपा कार्यकर्ता ने तो विद्रोही24 को बताया कि अगर इस बार किसी ने ऐसे लोगों को टिकट दिया जिनकी भाजपा या संघ में आयु सात-आठ साल से भी कम हैं तो उसे हराने के लिए भाजपा के ही लोग ज्यादा जोर लगायेंगे, इसमें किसी को अब भ्रम नहीं होना चाहिये।