अपनी बात

धनबाद में जज की हत्या न्यायिक व्यवस्था पर हमला है, यह DGP नीरज सिन्हा पर ऐसा महाकलंक है, कि कभी धुल नहीं पायेगा

26 जुलाई को तमाड़ में रांची के चर्च रोड निवासी, रांची सिविल कोर्ट के अधिवक्ता मनोज कुमार झा की हत्या और फिर दो दिनों बाद यानी 28 जुलाई को अहले सुबह धनबाद कोर्ट के जिला एवं सत्र न्यायाधीश (अष्टम) उत्तम आनन्द की हत्या दरअसल यह व्यक्तिविशेष पर हमला नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक व्यवस्था पर हमला है और इस महाकलंक को राज्य के पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा ताउम्र कुछ भी कर लें, कभी धो नहीं पायेंगे। इसे गांठ बांध कर वे रख लें।

इस बात को वे पत्रकार भी गांठ बांध कर रख लें, जो अपने सोशल साइट पर पता नहीं किस बात को लेकर उनकी स्तुतियां गाया करते हैं, हालांकि उनकी स्तुतियां मैं यहां पर छाप सकता हूं, पर उनकी इज्जत सरेआम नीलाम न हो, इसको देखते हुए मैं उन चीजों को नहीं प्रकाशित कर रहा हूं, पर इतना जरुर कह देना चाहता हूं कि वे तथाकथित पत्रकार एक राष्ट्रीय अखबार जो क्षेत्रीय अखबार भी हैं, उसमें संवाददाता के रुप में कार्यरत हैं, पर उसके संपादक को अपने संवाददाता के इस कार्य पर लज्जा तक नहीं आती।

हम झारखण्ड हाई कोर्ट के उस वक्तव्य का समर्थन करते हैं, जिसमें झारखण्ड हाई कोर्ट ने कहा कि यह हिट एंड रन केस नहीं, बल्कि ब्रूटल मर्डर है। झारखण्ड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डा. रवि रंजन व न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद ने ठीक ही कहा है, क्योंकि इस घटना से झारखण्ड का आम जनमानस भी व्यथित है, तथा इस पर कड़ी टिप्पणी व्यक्त कर रहा है।

सच्चाई यह है कि यह एक उच्चस्तरीय न्यायिक अधिकारी पर एक प्रकार का आक्रमण है, जो न्यायपालिका पर प्रहार जैसा है, इससे अधिक संवेदनशील घटनाएं और क्या हो सकती है, न्यायालय को नहीं लगता कि राज्य की पुलिस मामले की निष्पक्ष जांच करा पायेगी, यह भी राज्य के पुलिस महानिदेशक के लिए डूब मरने की बात है।

न्यायालय की इस प्रकार की टिप्पणी के बाद भी झारखण्ड पुलिस अपने आचार-विचार में परिवर्तन ला पायेगी, कहना मुश्किल है। दरअसल जबसे पुलिस महानिदेशक के रुप में नीरज सिन्हा ने पद संभाला है, उसी दिन से अपराधियों के मनोबल बढ़े हैं, तभी तो जिधर देखिये, उधर हत्याओं व बमबाजी का दौर शुरु हो गया है, और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है।

धनबाद के सुप्रसिद्ध समाजसेवी विजय झा कहते है कि एक समय था, जब धनबाद में एक ही एसपी हुआ करती थी, जिनका नाम था –सुमन गुप्ता। जिन्हें आज भी धनबाद की जनता भूली नहीं हैं, इसी बीच कई एसपी आये और गये, पर सुमन गुप्ता जैसा नाम नहीं कमा पाये। वो एक थी पर सौ अपराधियों पर भारी थी। वो निडर थी, वो ईमानदार थी, वो कर्तव्यनिष्ठ थी, पर आज सुमन गुप्ता जैसे कितने एसपी है?

विजय झा कहते है कि पहले एक एसपी सुमन गुप्ता और अपराध पर नियंत्रण, आज एसएसपी मिलाकर तीन-तीन एसपी धनबाद में हैं, पर अपराध का ग्राफ देखिये – न्यायाधीश तक की हत्या हो जाती है, आम नागरिक दहशत में हैं किसी के उपर बम फेकें जा रहे हैं तो किसी के घर में बम फेके जा रहे हैं, कितने लोगों के नाम बताऊं, अगर नाम ही लिखना है तो लिखिये – जिनके उपर या जिनके घर पर बम फेके गये हैं, उनके नाम हैं – कन्हाई चौहान, राजेश गुप्ता, संजय लोयलका, हराधन मोदक।

अभय सिंह पर तो फायरिंग तक हो गया। ऐसे में कानून व्यवस्था तो यहां खत्म है, कोई भी पुलिस अधिकारी रहे, आम जनता को क्या मतलब, जब उसकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो। जज उत्तम आनन्द की हत्या तो चीख-चीखकर कह रही हैं, कि यहां पुलिस व्यवस्था, कानून व्यवस्था ध्वस्त है। वे आज भी कहते है कि अगर कानून व्यवस्था ठीक करनी हैं तो सुमन गुप्ता, अनिल पालटा जैसे लोगों को अच्छे पोस्टों पर लाना होगा, तभी अपराधी पकड़े जायेंगे।

उन्हें सजा मिलेगी, नहीं तो जो हो रहा हैं, वो बता रहा है कि कितने नाकाबिल लोगों को हाथ में राज्य की जनता को दे दिया गया है। लोग तो इतने डरे हुए हैं कि कल किसकी हत्या हो जायेगी, इसी को लेकर रात की नींद तक लोगों की गायब हो गई हैं, जबकि जिन्हें कानून का शासन सुनिश्चित करना है, वे आराम से मस्ती कर रहे हैं। अब तो आम जनता को एक ही आसरा झारखण्ड हाई कोर्ट से हैं कि वो कुछ ऐसा करें, जिसमे आम आदमी निर्भय होकर जी सकें तथा फिर किसी जज या अधिवक्ता की हत्या न हो।