नेशनल एलायंस ऑफ पीपुल्स मुवमेंट की झारखण्ड इकाई ने CM हेमन्त सोरेन को भूमि कानूनों में बदलाव के लिए लिखा पत्र

नेशनल एलायंस ऑफ पीपुल्स मुवमेंट की झारखण्ड इकाई ने CM हेमन्त सोरेन को, झारखण्ड में प्राकृतिक संसाधनों पर समुदाय की मिल्कियत के लिए संबंधित भूमि कानूनों में बदलाव के लिए पत्र लिखा है। यह पत्र राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को ई-मेल द्वारा भेजा गया है। जिसमें मिथिलेश दांगी, हजारीबाग 9430708229, आलोका कुजूर, रांची 8986683426,  डॉ लिओ ए सिंह, प्रीति रंजन दास, सुषमा बिरूली, दुर्गा नायक, जयपाल मुर्मू, अफ़जल अनीस, बसंत हेतमसरिया के नाम हैं।

पत्र में लिखा गया है कि “विगत वर्षों में कई राज्यों के उच्च न्यायालयों तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में कई मुकदमों की सुनवाई करते हुए यह सार्थक टिप्पणी की गई है कि उन राज्यों के जमीन कानूनों के अनुसार जमीन मालिक ही खनिज का मालिक है (सर्वोच्च न्यायालय के केस संख्या सिविल अपील 4549/2000 )। मेघालय सरकार बनाम दिमासा स्टूडेंट यूनियन केस संख्या सिविल अपील संख्या 10720/2018  दिनांक 03.07.19 के फैसले के दौरान यह टिप्पणी की गई है कि इस देश का प्राकृतिक संसाधन सिर्फ वर्तमान पीढ़ी के लिए ही नहीं, अपितु आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है। अतः इनका बौद्धिक उपयोग होना चाहिए।

आगे इसी फैसले के अनुच्छेद 191(4) में कहा गया है कि मेघालय के पर्वतीय जिलों के भूमि कानून के अनुसार उन क्षेत्रों में अधिकांश जमीन या तो निजी या फिर सामुदायिक स्वामित्व की है, जिन पर राज्य का कोई अधिकार या दावा नहीं है। निजी जमीनों के स्वामी व्यक्ति तथा सामुदायिक जमीनों पर मिल्कियत समुदाय की है, जो सिर्फ ऊपरी सतह ही नहीं अपितु अवमृदा का भी मालिक है। 8 जुलाई 2013 के एक फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अवमृदा (sub soil) को परिभाषित करते हुए यह कहा है कि जमीन के उस टुकड़े की ऊपरी सतह से पृथ्वी के केंद्र तक के संपूर्ण हिस्से को अवमृदा कहते हैं।

इसी प्रकार का एक फैसला कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कर्नाटक राज्य बनाम डुंडामाडा सेफ्टी केस संख्या आईएनआर 993 के ए आर 26 05 1994 4 3 के ए आर एलजी 378 ने दिया है जिसमें फैसले की बिंदु संख्या 5 के विभिन्न भागों में यह कहा गया है कि कर्नाटक के वैसे हिस्से जो पूर्व मैसूर राज्य में स्थित हैं, में वैसे पट्टा भूमि धारक, जिनकी जमीन सरकार के अधीन नहीं है, वह अपनी जमीनों के पूर्व मालिक हैं, लिहाजा उनके जमीन में पाए जाने वाले लघु खनिज ग्रेनाइट के भी वही मालिक हैं।

उनके जमीन में पाए जाने वाले लघु खनिज का वे बिना किसी रोक-टोक के खनन कर सकते हैं। उन्हें ट्रांसपोर्ट नियमों का पालन अवश्य करना होगा। भारत के संविधान में 39-बी में भी यह संकेत है कि भारत के भौतिक संसाधनों का नियंत्रण और स्वामित्व समुदाय के हित में होगा परंतु दुर्भाग्य से इस दिशा में कार्य होकर समुदाय के स्वामित्व को पूर्ववर्ती सरकारों की गलत रवैया के कारण छीन लिया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान राज्यसभा सांसद दिशुम गुरु माननीय शिबू सोरेन जी का भी सपना था कि कोयला को स्थानीय समुदाय का कोऑपरेटिव संचालित करें।

आपने भी मई 2020 को एक साक्षात्कार में कोयला को ग्राम सभा को सौंपने संबंधी वक्तव्य दिया था। अतः आपसे निवेदन है कि केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक एवं  पूर्वोत्तर के राज्यों के समान झारखंड में भी जमीन संबंधी ऐसा अध्यादेश लाएं, जिससे यहां के प्रमुख एवं गौण खनिजों पर स्थानीय समुदाय, आदिवासियों एवं मूल निवासियों का अधिकार सुनिश्चित हो जाए, ताकि सभी झारखंडी सम्मान पूर्वक जीवन बसर कर सकें और झारखंड विश्व के मानचित्र पर प्रमुख स्थान बना सके। यह आपके अधिकार क्षेत्र में है, क्योंकि भूमि का मामला संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार राज्य का मामला है। यह ऐतिहासिक कार्य आपके कर-कमलों से हो हमें इसका इंतजार रहेगा।”