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झारखण्ड हाई कोर्ट ने विवेकानन्द विद्या मंदिर के पक्ष में सुनाया फैसला, अभय कुमार मिश्रा की हुई जीत, विरोधियों की हालत पस्त

निबंधन महानिरीक्षक के द्वारा पारित आदेश दिनांक 28.2.2020 को निरस्त किया जाता है। चूंकि निबंधन महानिरीक्षक का आदेश क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर गैर-कानूनी प्रक्रिया के तहत संस्था में आंतरिक विवाद का निपटारा करने का आदेश प्रतीत होता है। इस प्रकार के आदेश करने का अधिकार, संस्था अधिनियम 1860 के अंतर्गत निबंधन महानिरीक्षक को प्राप्त नहीं हैं।

दिनांक 3.3.2022 को प्रार्थी अभय कुमार मिश्रा के आवेदन पर अवकाश प्राप्त न्यायाधीश नरेन्द्र नाथ तिवारी को प्रशासक नियुक्त किया गया था, यह आदेश जब तक चुनाव प्रक्रिया संपन्न न हो, प्रशासक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश नरेन्द्र नाथ तिवारी बने रहेंगे तथा प्रशासक से अपेक्षा की जाती है कि दो महीने में चुनाव प्रक्रिया संपन्न करा लेंगे और चुनाव प्रक्रिया संपन्न करा लेने के उपरांत नव-नियुक्त अध्यक्ष व सचिव को प्रभार सौंपकर ही अपने पदभार से मुक्त होंगे। fयह अदालती फैसला झारखण्ड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजेश शंकर ने आज सुनाया। अभय कुमार मिश्रा की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार और आर डी भट्टाचार्या की ओर से वरीय अधिवक्ता विजय प्रताप सिंह ने अपना पक्ष रखा।

ज्ञातव्य है कि विवेकानन्द विद्या मंदिर के सचिव अभय कुमार मिश्रा को हटाने के लिए, उनके विरोधी अनेक प्रकार के प्रयास उनके पूर्व में करते रहे हैं। उसका कारण यह है कि पूरे भारतवर्ष में यह एकलौता विद्यालय है, जिसका गत् 2015 से विद्यालय के किसी भी शुल्क में वृद्धि नहीं हुई है। दूसरा यह कि यहां तीरंदाजी, तलवारबाजी, निशानेबाजी, क्रिकेट, फुटबॉल, गायन, वादन, योग, कराटे, ताइक्ववांडो का निशुल्क प्रशिक्षण बच्चों को दिलाया जाता है, यहीं नहीं इन्हीं के आने के बाद निःशुल्क इंजीनियरिंग व मेडिकल की तैयारी भी बच्चों को कराई जा रही हैं।

जिसमें यहां के बच्चे राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं, जिसका सारा श्रेय सचिव अभय कुमार मिश्रा को जाता है। यहीं नहीं इस विद्यालय में पुस्तकों के दाम अभय कुमार मिश्रा के कारण ही कभी बढ़े नहीं बल्कि उलटा घट गया। यहां प्राथमिक कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए पुस्तकों का शुल्क मिनिमम 250 रुपये तथा अधिकतम दो हजार रुपये ही रहा, जो पूरे रांची में आज भी चर्चा का विषय बना हुआ हैं, क्योंकि ऐसा कर अभय कुमार मिश्रा ने शिक्षा माफियाओं को कड़ी चोट दे दी। यहीं नहीं विद्यालय का परीक्षा में परिणाम भी शत प्रतिशत रहा।

लोग बताते हैं कि इधर अभय कुमार मिश्रा की तूती बोल रही थी, इनका सम्मान बढ़ रहा था, और जो लोग पूर्व में इस विद्यालय से लाभान्वित हुआ करते थे और बच्चों पर बेवजह का आर्थिक बोझ डाला करते थे, अभिभावकों का शोषण करते थे, उन्होंने अभय कुमार मिश्रा को सचिव पद से हटाने तथा विद्यालय पर अपना कब्जा जमाने के लिए इन पर दबाव बनाना शुरु किया, साथ ही इन्हें कानूनी पचड़े में डालने का प्रबंध करना प्रारंभ किया, जिसका जवाब अभय कुमार मिश्रा बराबर देते रहे।

इसी का परिणाम रहा कि अभय कुमार मिश्रा के विरोधियों ने  झामुमो विधायक समीर मोहंती से इस मामले को विधानसभा में उठवा दिया। उन्होंने प्रश्नकाल के दौरान विद्यालय के सचिव अभय कुमार मिश्रा पर आरोप लगाया कि वे जबरन पद पर बने हुए हैं। उन्हें अपदस्थ करने के लिए प्रशासन के द्वारा जबरन प्रभार लिया जाये। जिसे देखते हुए जिला प्रशासन ने 200 सिपाहियों के साथ मजिस्ट्रेट नियुक्त कर दिये। तब अभय कुमार मिश्रा ने इस मामले को न्यायालय में ले जाकर, न्यायाधीश के समक्ष गुहार लगाई। न्यायालय ने इसी बीच विद्यालय का नया प्रशासक नियुक्त कर दिया।

बताया जाता है कि सुकृत भट्टाचार्य गलत तरीके से छल पूर्वक संस्था का निबंधन प्राप्त कर लिया था, जिसे न्यायालय ने निरस्त कर दिया। इसी बीच यह भी बताया जाता है कि पूर्व सचिव आर डी भट्टाचार्य को आलोक कुमार सिन्हा पूर्व अध्यक्ष एवं महेश तिवारी अधिवक्ता इसी प्रकार से छल बल करके जेल भेजकर, आर डी भट्टाचार्य से हस्ताक्षर करवाकर अपनी याचिका में न्यायालय को बताया कि आर डी भट्टाचार्य के पिता काकोरी कांड में सम्मिलित थे।

उनके पिता और राम प्रसाद बिस्मिल ने गाना लिखा था – मेरा रंग दे बसंती चोला, सरफरोसी की तमन्ना आदि। उनके पिता का नाम देवेन्द्र देव भट्टाचार्यी था। जो स्वामी विवेकानन्द के डायरेक्ट शिवानन्द के द्वारा दीक्षित थे। वैसे व्यक्ति के पुत्र को झूठा मुकदमा कर जेल में डालकर, जब वे जेल में थे, तो उनके तरफ से न्यायालय में एक शपथ पत्र दायर कर दिया गया। जबकि जेल मैन्यूल में ऐसा कही उल्लेख नहीं है कि एक कैदी कैद में रहते हुए उच्च न्यायालय में आकर शपथ पत्र भी दायर कर सकेगा। ऐसा कार्य अधिवक्ता महेश तिवारी ने किया। इधर यह भी बताया जाता है कि दूसरी ओर सुकृत भट्टाचार्य ने ओ पी शरण से अध्यक्ष का प्रभार ले लिया, जबकि वो इस समय मृत थे।

इधर अदालत के इस फैसले से सुकृत भट्टाचार्य एवं अधिवक्ता महेश तिवारी को बहुत बड़ा झटका लगा है। अदालत के इस फैसले से संस्था श्रीरामकृष्ण सेवा संघ व विद्यालय विवेकानन्द विद्या मंदिर में कार्यरत सभी लोगों में हर्ष व्याप्त हैं। आज सभी ने मिलकर अभय कुमार मिश्रा को इसके लिए बधाई व शुभकामनाएं दी।

अभय कुमार मिश्रा ने विद्रोही24 से बातचीत के क्रम में बताया कि जब वे 2015 में विद्यालय के सचिव थे, उस वक्त विद्यालय में बच्चों की संख्या 935 थी, विद्यालय को ठीक से चलाने के लिए पैसे तक नहीं थे। आज स्थिति यह है कि विद्यालय में 4600 बच्चें हैं, और यह विद्यालय आर्थिक रुप से सशक्त हैं, जिस पर लोगों की कुटिल नजर थी। उन्होंने कहा कि वे जब तक जीवित हैं, विद्यालय और संस्था पर किसी की कुटिल नजर पड़ने नहीं देंगे, क्योंकि विद्यालय और संस्था के वो सचिव नहीं, बल्कि चौकीदार हैं।