अच्छा है, प्रयास करते रहिये, शायद कुछ झारखण्ड के लिए अच्छा निकल जाये, पर…

अच्छा है, प्रयास करते रहिये, शायद कुछ झारखण्ड के लिए अच्छा निकल जाये, पर जिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इशारे पर पूरा उद्योग जगत बलिहारी जाता है, क्या वो उद्योग जगत आपके इन प्रयासों को पानी देगा, जिससे राज्य में कोई उद्योग आ जाये और वो फल-फूल सकें।

दरअसल सच्चाई यह भी है कि कुछ गलतियां झारखण्डियों ने भी गत् वर्षों में इस प्रकार की कर दी है कि कोई उद्योग जगत का जाना-माना नाम झारखण्ड आने की रुख नहीं करता और जो यहां है भी वो अब यहां रुचि नहीं लेता, कारण जल-जंगल-जमीन के नाम पर होते रहे आंदोलनों में कोई भी उद्योग जगत का व्यक्ति अपना धन क्यों डूबाना चाहेगा?

दो दिन पहले की घटना है, जिसमें आप ही के पार्टी के केन्द्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने संवाददाता सम्मेलन में ओड़िशा का मुद्दा उठाया, जिसमें उन्होंने एक दो उदयोगपतियों का नाम लेते हुए, वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तक पर अंगूलियां उठा दी और आगे कहा कि ज्यादा हुआ तो आप भी उस आंदोलन में भाग लेने के लिए पांचवी अनुसूची के उस इलाके में जायेंगे, जहां झामुमो के लोग ग्रामीणों का साथ दे रहे हैं, आंदोलन कर रहे हैं, यहां भी मामला उद्योग से ही जुड़ा है।

झारखण्ड में उद्योग न लगने या उद्योगपतियों की रुचि नहीं लेने का प्रमुख कारण यही है। हाल ही में गोड्डा में अडानी के पावर प्लांट को लेकर कितना बड़ा ड्रामा होता रहा हैं, झाविमो के नेता प्रदीप यादव और उस वक्त झाविमो के सुप्रीमो रहे बाबू लाल मरांडी ने क्या तमाशा खड़ा किया, वो जगजाहिर है। इसी प्रकार झारखण्ड के हर छोटे-बड़े इलाके में कोई भी व्यक्ति उद्योग चलाना चाहते हैं तो उसे किन-किन स्थितियों-परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं, या पड़ रहा हैं, वो कौन नहीं जानता?

जरा सोचिये, जितने मुख्यमंत्री उतनी बार पूंजी निवेश की बातें और सच्चाई क्या है कि एक पैसे तक का निवेश नहीं हुआ। पिछली सरकार तो ड्रामा ही कर बैठी थी, खुब मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर पैसे बहाये गये, आप इसकी जांच भी करवा रहे हैं, क्या हुआ? कुछ नहीं।

मैंने तो देखा अर्जुन मुंडा ने मित्तल तक को बुला लिया, रघुवर दास ने तो जैसे लगा कि उदयोगपतियों की फौज बुला ली। रतनजी टाटा भी पहुंच गये, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं, आपने भी जोर लगाया है, ये जोर लगाना अच्छा ही हैं, हम पहले से ही मायूस क्यों हो जाये, मायूस होना ठीक भी नहीं।

पर अच्छा रहता कि राज्य में जो आइएएस/आइपीएस हैं, जिन्होंने अपनी सेवा के दौरान जमकर लूट-पाट मचाई है, अकूत धन-संपत्ति अर्ज की हैं, उन्ही को कहिये कि वे लूटे गये पैसे यहीं पर लगाये, पूंजी निवेश करें ताकि ये झारखण्ड आगे बढ़े, कुछ-कुछ लोगों ने तो यहां पैसे लगाये भी हैं, लगा भी रहे हैं, कोई स्कूल तो कोई अस्पताल बनवाया ही हैं, इसलिए अगर यहां के आईएएस/आईपीएस ही झारखण्ड से लूटी गई अथाह/अकूत संपतियों को यहीं पूंजी निवेश कर दें तो राज्य मालामाल हो जायेगा।

हम तो उन नेताओं को भी कहेंगे कि आप भी वैसा ही करें, काहे को सिंगल विंडो सिस्टम की बात करते हैं, अरे आप अधिकारी/नेता आप तो जैसे भी कहेंगे, काम हो जायेगा, और झारखण्ड आगे बढ़ जायेगा, क्या जरुरत है दिल्ली या मुंबई के ताज में कार्यक्रम रखने की या विदेश भ्रमण की। वो भी तब जब कि जानते है कि कुछ होना नहीं हैं, और उसका मूल कारण भी सब को पता है।