लगता है भाजपा के संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह, झारखण्ड में भाजपा का अच्छी तरह कर्म कूट कर ही जायेंगे

छह अप्रैल यानी भाजपा का स्थापना दिवस। रांची स्थित भाजपा प्रदेश कार्यालय में भाजपा के कार्यकर्ता भाजपा स्थापना दिवस की तैयारी कर रहे थे। कुछ भाजपा कार्यकर्ता तस्वीर लगाने में जुटे थे। आम तौर पर भाजपा द्वारा आयोजित विशेष कार्यक्रम में पूर्व में एक ओर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, बीच में भारत माता और दूसरी ओर दीन दयाल उपाध्याय की तस्वीरें ही लगती थी, पर जब से अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न मिला और वे दिवंगत हुए, उसके बाद से परिपाटी बदली। अटल बिहारी वाजपेयी की भी तस्वीर संग-संग लगने लगी।

इस बार जैसे ही भाजपा कार्यकर्ता अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर को लगाकर अपना काम पूरा कर चुके थे। भाजपा के संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह की नजर श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय के संग लगी अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर पर पड़ी। वे वाजपेयी की तस्वीर देखते ही बिदक पड़े। कर्मवीर सिंह ने लगे हाथों उक्त तस्वीर को लगानेवाले भाजपा कार्यकर्ता की सैकड़ों भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच क्लास ले ली। बेचारा कार्यकर्ता क्या करता, उसकी क्लास लग रही थी और किंकर्तव्यविमूढ़ होकर कर्मवीर सिंह की बातें वो सुनता रहा।

अंत में, कर्मवीर सिंह के कहने पर, उसने अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर वहां से हटा दी। मतलब ये हाल है भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं के तस्वीर का, और उनकी इज्जत का, उस नेता की जिसकी राजनीति, पत्रकारिता, साहित्यिक पृष्ठभूमि के आगे सभी सिर झूकाते थें/हैं। जो राजनीतिक दलों के उछल-कूद से भी परे था, जिसकी सभी दलों के नेता आज भी इज्जत से नाम लेते हैं, पर कर्मवीर सिंह के लिए अटल बिहारी वाजपेयी कुछ भी नहीं। कर्मवीर सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर वहां से हटवाकर ही दम ली।

जब ये बातें मीडियाकर्मियों को लगी तो सभी मीडियाकर्मियों को मनाने में जुट गये। प्रभाव भी दिखा, सभी मीडियाकर्मियों ने इस न्यूज को ही ढंक दिया, जैसे लगता हो कि यह कोई मामला ही नहीं, पर जिस कार्यकर्ता ने अटल बिहारी वाजयेपी को देखा हैं, जिसने वो तस्वीर लगाने का काम कर रहा था, उसे बहुत ही दुख हुआ, वो भी ये सोचकर कि जब अटल बिहारी वाजपेयी के तस्वीर का ये हाल हो रहा हैं तो फिर लाल कृष्ण आडवाणी व डा. मुरली मनोहर जोशी के साथ या आनेवाले समय में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के साथ भी ये लोग ऐसा ही करेंगे। क्या भाजपा में ऐसे ही दिवंगतों का इज्जत होगा।

कहने को तो भाजपा एक पारिवारिक संगठन खुद को बताती है। भाजपा को एक परिवार मानती है, लेकिन अपने ही परिवार के दिवंगत शीर्षपुरुषों के साथ कर्मवीर सिंह का यह व्यवहार स्तब्ध करनेवाला है। जो पुराने भाजपा के नेता हैं, वे विद्रोही24 को बताते हैं कि पूर्व में ये परंपरा थी कि डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय की तस्वीर ही लगा करती थी और बीच में भारत माता का चित्र हुआ करता था, जहां भी भाजपा का विशेष कार्यक्रम होता था, पर बीच में परिपाटी बदली, जब अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न मिला और फिर जब वे दिवंगत हुए तो अटल बिहारी वाजपेयी का भी चित्र लगने लगा।

लेकिन अब अटल बिहारी वाजपेयी के चित्र पर भी किसी को आपत्ति हो और उसे क्रुद्ध होकर कोई बलपूर्वक हटवा दें, तो ये तो सीधा भाजपा का दुर्भाग्य ही बता रहा है। कहने को तो कर्मवीर सिंह संगठन मंत्री हैं, पर वे दिन-रात प्रदेश कार्यालय में जो एक स्वनामधन्य लोगों की जो चौकड़ी हैं, उससे घिरे रहते हैं, देखने में तो यह भी आता है कि ये जनाब हमेशा स्वनामधन्य चौकड़ियों से घिरे होने के कारण उन्हीं के इशारों पर काम भी करते हैं।

कई भाजपा के नेता विद्रोही24 को बताते है कि इस भाजपा का दुर्भाग्य है कि जिसने संगठन मंत्री के रुप में कभी सुंदर सिंह भंडारी, कैलाश पति मिश्र, कुशाभाऊ ठाकरे, अश्विनी कुमार, संजय जोशी, हृदय नाथ सिंह जैसे लोगों को देखा। आज वहां राजेन्द्र सिंह, धर्मपाल सिंह और अब कर्मवीर सिंह जैसे लोग दिख रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि वर्तमान के संगठन मंत्री सिर्फ नाम के हैं। स्पष्ट शब्दों में कहें तो लगता है कि ये भाजपा का कर्म कूट कर ही जायेंगे।

नहीं तो, वे बतायें कि भाजपा की बेहतरी के लिए संगठन मंत्री के रुप में अब तक क्या किया है? भाजपा को क्या फायदा दिलाया है?  जो लोग 11 अप्रैल की सचिवालय घेराव को लेकर ज्यादा मुखर थे, आज उनके मुख बंद क्यों हैं? बताये न, शोरगुल तो किया था कि सचिवालय घेरेंगे और गोलचक्कर पर ही इनके आंदोलन की बैंड बज गई। लाखों लोग उतारने की बात किये थे। हजारों पर गिनती इनकी अटक गई। सारे के सारे भाजपा के किये प्रबंध फेल हो गये। उलटे पत्थरबाजी करने के आरोप भाजपा पर पहली बार लग गये। इस पत्थरबाजी में कई पत्रकार भी घायल हो गये, जिसमें तो एक के सिर पर नौ टांके भी लगें, तो कर्मवीर सिंह आप ही बताये कि क्या ऐसा ही संगठन आपने गढ़ने की योजना बनाई थी।

पुराने भाजपा नेता तो साफ कहते है कि जिन्होंने पूर्व में भाजपा का सर्वनाश किया। जो भाजपा का सर्वनाश करने के लिए संकल्प लिया करते थे। आज वे ही भाजपा के उद्धारकर्ता स्वयं को सिद्ध करने में लगे हैं। भाजपा से फायदा उठा रहे हैं। सांसद व प्रमुख पद पा रहे हैं। आश्चर्य है कि ऐसे ही लोग निर्णय लेनेवाले पदों पर जाकर विराजमान हो गये हैं। और जिसने कभी भाजपा के अहित की नहीं सोची, उससे पुछा जाता है कि आपने भाजपा के लिए क्या किया? वे ये भी कहते है कि नये संगठन मंत्री हैं, हो सकता है कि उन्हें नई तकनीक के तहत संगठन गढ़ना बताया गया हो, जिसमें वे आगे बढ़ रहे हैं, वे कितना बढ़ेंगे, भगवान जाने, पर इतना तो तय है कि कुछ करें या न करें, पर ये भाजपा का कर्म कूट कर यहां से जरुर जायेंगे।