दो अखबारों के खिलाफ FIR दर्ज कराने के लिए नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन पर जनता का बढ़ रहा दबाव

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता इन दिनों रांची से प्रकाशित दो अखबारों से बहुत ज्यादा आक्रोशित हैं, ये आक्रोश झामुमो एवं महागठबंधन समर्थकों में भी देखा जा रहा हैं, अखबारों में तो ये समाचार दिख नहीं रहा, पर सोशल साइट में यह युद्ध का रुप ले चुका हैं, करीब-करीब सारे ग्रुपों में समर्थकों, कार्यकर्ताओं व निरपेक्ष लोगों का कहना यही है कि अगर हेमन्त सोरेन को लगता है कि खबर सही नहीं हैं, तो बिना विलम्ब किये उक्त दोनों अखबारों के खिलाफ उन्हें प्राथमिकी दर्ज करा देनी चाहिए।

बताया जाता है कि रांची से प्रकाशित एक अखबार ने हेमन्त सोरेन के हवाले से पिछले दिनों यानी 20 अप्रैल को “बजरंगबली का झंडा लगाने से क्या आचार संहिता का उल्लंघन नहीं होताः हेमन्त सोरेन” नामक हेडिंग से खबर छाप दिया, जिसकी तीखी प्रतिक्रिया पूरे झारखण्ड में देखने को मिली हैं, हालांकि लोगों का कहना है कि ये खबर स्पष्ट करता है कि ये खबर सुनियोजित तरीके से धार्मिक वैमनस्यता को केन्द्र में रखकर छापी गई, अखबार ने लिखा है कि हेमन्त सोरेन का यह बयान उस वक्त आया, जब वे दुमका के मसलिया में आयोजित प्रखण्डस्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन सह प्रशिक्षण शिविर को संबोधित कर रहे थे।

लोग बताते हैं कि जो व्यक्ति हर समय हिन्दूओं के धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता हो, जो हर समय मंदिर-मंदिर ही घुमता रहता हो, विभिन्न प्रकार के यज्ञों में हिस्सा लेता हो, स्वयं हनुमान भक्त हो, भला वो बजरंगबली के झंडे के बारे में ऐसा क्यों बोलेगा? इस खबर में उन्हें नहीं लगता है कि कोई सच्चाई हैं, जबकि दूसरा पक्ष साफ कहता है कि अगर हेमन्त सोरेन ने ऐसा नहीं कहा और अखबार ने गलत छापा हैं, तो वे उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराएं, इसमें तो देर भी नहीं होनी चाहिए।

इसी बीच यह खबर प्रकाशित होने के बाद, हेमन्त सोरेन ने अपने फेसबुक पेज पर 20 अप्रैल को ही रात्रि के 8.22 मिनट पर एक संदेश पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने अपनी भावनाओं को इस प्रकार अभिव्यक्त किया। “साथियों, भाजपा आगामी चुनावों में अपनी बुरी हार की आशंका को देखते हुए किसी भी नीचता पर उतरने को तैयार है। अभी समाचार पत्र के रुप में एक फेंक न्यूज फैलाया जा रहा है – जिन बातों को मैंने नहीं कही है। पर भाजपा अपनी नीच हथकंडों की वजह से जानी जाती है. शर्मनाक। जल्द ही इस झूठी खबर छापनेवालों पर उचित कार्रवाई की जाएगी।”

हेमन्त सोरेन के इस संदेश के पोस्ट होने के बाद, ऐसे लोगों की संख्या अधिक हैं, जिन्होंने इस समाचार पर बेहद ही कड़ी टिप्पणी कर दी हैं, एक ने कड़ी टिप्पणी करते हुए लिखा है कि “अब अखबारों में पैसे के दम पर न्यूज छपते और पत्रकार बिकते हैं, मीडिया भाजपा के हाथों की कठपुतली बन गई है, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ देश के लिए शर्मसार और घिनौना स्तंभ बन चुका हैं और अपने जमीर बेचकर कार्य कर रहे लोग पत्रकार नहीं, भाजपा सरकार के दलाल बन चुके हैं।”

इसमें कोई दो मत नहीं, कि इन दिनों अखबार, चैनल, पोर्टल विभिन्न दलों के मुखपत्र या मुख्यवक्ता बन चुके हैं, जिसके बदले में उन्हें विभिन्न दलों से नाना प्रकार के प्रलोभन तथा उपहार भी दिये जा रहे हैं, ऐसे तो कई जिलों में जिला निर्वाचक पदाधिकारियों ने पेड न्यूज पर रोक के लिए कमेटियां भी गठित कर दी हैं, ये कमेटी तो राज्यस्तर पर भी बनी हुई हैं, पर ये कमेटियां क्या कर रही हैं, किसी को नहीं पता।

जबकि अखबारों में छप रही समाचारों को लेकर प्रबुद्ध वर्ग मुस्कुरा रहा हैं, और कह रहा है कि निर्वाचन आयोग डाल-डाल तो मीडिया वाले पात-पात, यानी कोई कुछ भी कर लें, जिन्हें अपने मन की करनी हैं, वो तो करके ही रहेंगे, दलों के प्रति समर्पित ही रहेंगे, चाहे जो कुछ हो जाये। जैसे कल की ही घटना देख लीजिये, सीएम रघुवर दास का जमकर कांके में विरोध हुआ, पर एक अखबार ने उस घटना को जिक्र करना तक उचित नहीं समझा। आखिर ये घटना बताने के लिए काफी नहीं कि उक्त अखबार का किस पार्टी के प्रति कितना प्रेम उमड़ रहा है।