अपनी बात

प्रभात मिश्रा की पुस्तक पलामू के क्रांतिकारी के लोकार्पण कार्यक्रम में पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी का छलका दर्द, पूरनचंद से जुड़ी एक वाकया ऐसी सुनाई, जिसे जानकर आप भी रह जायेंगे दंग

पलामू के क्रांतिकारी नामक पुस्तक का लोकार्पण पिछले दिनों डालटनगंज में संपन्न हुआ। इस पुस्तक के लेखक प्रभात मिश्रा ‘सुमन’ है। प्रभात मिश्रा संप्रति दिल्ली के किसी राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्र से जुड़े हैं। इनके पुस्तक को प्रभात प्रकाशन नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है। वर्तमान में इनके पुस्तक की कई विद्वानों ने प्रशंसा की है। जैसा पुस्तक का नाम है, बताया जाता है कि इस पुस्तक में पलामू के समस्त क्रांतिकारियों को उन्होंने यथासंभव स्थान दिया है।

इस पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में विद्रोही24 की भी नजर थी। लेकिन अफसोस है कि हम उस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सकें। आज हमनें इस संबंध में झारखण्ड विधानसभा के प्रथम विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी से बातचीत की। उन्होंने इस कार्यक्रम के बारे में बातचीत के अलावे जो बाते बताई, वो पलामू के क्रांतिकारियों के प्रति समर्पण का भाव रखनेवालों को भी विचलित कर देगी।

इंदर सिंह नामधारी ने विद्रोही24 से बातचीत के दौरान कहा कि वे भी उस लोकार्पण के कार्यक्रम में शामिल थे। उन्हें भी अपनी बातें रखने का मौका मिला, पर चूंकि उन्हें अंतिम में समय मिला था, पता नहीं लोगों ने उनके वक्तव्यों पर कितना ध्यान दिया। इंदर सिंह नामधारी के शब्दों में किसी भी क्रांतिकारियों व महापुरुषों को दो प्रकार से याद किया जाता है। चाहे तो आप उनके नाम पर स्मारक या संस्था बना दीजिये अथवा उनके बारे में आप कुछ लिखें।

इंदर सिंह नामधारी ने बताया कि निःसंदेह प्रभात मिश्रा ने पलामू के क्रांतिकारी नामक पुस्तक लिखकर पलामू के क्रांतिकारियों के बारे में जाननेवालों पर बड़ा उपकार किया है, इससे आनेवाले पीढ़ी को एक बेहतर पुस्तक उनके हाथों में आया है। निश्चय ही, वे जब पढ़ेंगे तो उनका ज्ञानवर्द्धन होगा। इंदर सिंह नामधारी ने विद्रोही24 से कहा कि उनके मन में भी क्रांतिकारियों व समाजसेवियों के प्रति गहरी आस्था रही है।

उन्होंने बातचीत में ही कहा कि पलामू में एक स्वतंत्रता सेनानी व समाजसेवी पूरनचंद हुआ करते थे। एक बार की बात है कि जब वे स्पीकर थे, तब उन्हें महुआडांड़ जाने का मौका मिला। जब वे वहां गये, तभी एक सज्जन उनसे मिले और कहा कि मैं चाहता हूं कि आप मेरे घर पर भोजन करें। उन सज्जन की श्रद्धा देखकर, उन्हें टालने की उनकी हिम्मत नहीं हुई। वे जब उक्त सज्जन के घर गये तो उन्होंने एक महिला की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये उनकी बहन है और पूरनचंद की पत्नी है। उक्त सज्जन ने यह भी कहा कि इन्हें पेंशन तक नहीं मिलता, कोई सहयोग राशि भी नहीं मिलती, जिनसे इनका भरण-पोषण हो।

इंदर सिंह नामधारी ने विद्रोही24 को बताया कि जब वे वहां से रांची लौटे तो उन्होंने पूरनचंद की फाइल खुलवाई। जिसमें उन्होंने (पूरनचंद) लिखा था कि वे डिक्लीयर करते है कि उनका कोई नहीं हैं, और उनके नाम पर किसी को कुछ भी नहीं दिया जाये। लेकिन सच्चाई कुछ और थी। उन्होंने काफी मेहनत कर, उनकी पत्नी को वो सम्मान दिलाया, साथ ही उक्त सज्जन के बेटे को भरपूर आर्थिक मदद दिलवाई। मतलब उस वक्त उनकी मदद से केन्द्र व राज्य की सहायता द्वारा करोड़ों रुपये उसे हासिल हुए।

जब उन्होंने (इंदर सिंह नामधारी ने) आर्थिक लाभ लिये, करोड़ों की सम्पति प्राप्त कर चुके उक्त बेटे से कहा कि पूरन चंद के नाम पर उक्त राशि में से कम से कम एक उनके लिए स्मारक बनवा दो। तब वो सीधे पलट गया। उसने नहीं बनाया। मतलब वो युवक बेईमान निकला। आज भी ऐसे लोगों को जब वे देखते हैं, मन घृणा से भर उठता है कि कैसे लोग हैं। जिनकी वजह से वे लाभान्वित हुए, और उनके नाम पर कुछ भी करने को तैयार नहीं।

इंदर सिंह नामधारी ने बताया कि पूरनंचद स्वतंत्रता सेनानी थे। पहली बार 1967 में विधायक बने। दूसरी बार वे 1977 में विधायक बने। बाद में उन्हें हराकर वे यानी इंदर सिंह नामधारी 1981 में विधायक बने। पर आज भी पूरनचंद के प्रति उनकी श्रद्धा कम नहीं हुई। आज भी पलामू के लोग उनकी सादगी को लेकर उनके प्रति बड़ी आदर रखते हैं। इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि पुस्तकें व स्मारक स्थल प्रेरणा देती हैं कि हम कुछ बेहतर करें।

उन्होंने एक और घटना बताई कि जब पलामू के छात्र-छात्राओं को किसी भी विश्वविद्यालयीय कार्यों के लिए रांची की दौड़ लगाते वे देखते थे। तो उन्हें पीड़ा होती थी। अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में उन्होंने पलामू में एक विश्वविदयालय की स्थापना करने की सोची। फिर आया कि विश्वविद्यालय का नाम क्या हो। उन्होंने तुरन्त बताया कि नीलाम्बर-पीताम्बर जी के नाम पर विश्वविद्यालय होना चाहिए, क्योंकि वे पलामू के भंडरिया के रहनेवाले थे।

इन दोनों भाइयों ने अंग्रेजों के पसीने छुड़ा दिये थे। अंग्रेजों ने 24-25 वर्ष की अवस्था में ही इन दोनों को फांसी चढ़ा दिया था। इसलिए वे आज भी कहते हैं कि पुस्तक व स्मारक दोनों भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अंत में इंदर सिंह नामधारी को इतना सुंदर वक्तव्य देने के लिए व प्रभात मिश्रा को पलामू के क्रांतिकारी नामक पुस्तक लोगों के बीच रखने के लिए बहुत-बहुत बधाई।