अपनी बात

बेगूसराय में किसी पत्रकार को कन्हैया में तो किसी को गिरिराज सिंह में खुदा नजर आ रहा, बेचारे तनवीर को कोई पूछ ही नहीं रहा

जब से बेगूसराय पर दो राष्ट्रीय चैनलों के रोड शो हमने देखे हैं, मन आक्रोशित हैं। आक्रोशित होने के कारण भी हैं। दो राष्ट्रीय चैनलों ने इस प्रकार से वहां की रिपोर्टिंग, वह भी रोड शो के माध्यम से की हैं, उससे साफ पता चलता है कि इनके मन में अपने प्रतिद्वंद्वियों के प्रति कितना मैल भरा हैं। यहीं नहीं इनलोगों ने पत्रकारिता को श्रद्धांजलि देकर, पत्रकारिता की आड़ में अपने-अपने प्रत्याशियों के लिए खूब कड़ी मेहनत की हैं। जो बताता है कि अगर इसी प्रकार से नेतागिरी और इसी प्रकार से पत्रकारिता चलती रही, तो भारत की बर्बादी को कोई रोक भी नहीं सकता।

मेरा मानना है कि जिस किसी पत्रकार या चैनल को लगता है कि भाजपा बहुत अच्छी है, या भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी बहुत अच्छी है या राष्ट्रीय जनता दल बहुत अच्छी है, उसे बिना किसी किन्तु-परन्तु के पत्रकारिता छोड़, अपनी-अपनी पसंद के अनुसार, इन दलों की सदस्यता ग्रहण कर लेनी चाहिए, न कि पत्रकारिता की आड़ में अपने-अपने पसन्द के प्रत्याशियों के लिए रोड शो के नाम पर चुनाव-प्रचार करना चाहिए।

जरा देखिये, एनडीटीवी के रवीश कुमार को, ये जनाब वामपंथियों में काफी लोकप्रिय हैं। इनको मानने और जाननेवालों की एक अच्छी तादाद है, क्योंकि अपने एनडीटीवी पर जब वे प्राइम टाइम लेकर न्यूज को परोसते हैं, तब उनका टीवी पर अभिनय देखने लायक होता है, और इस अभिनय से प्रभावित होकर एक बहुत बड़ा तबका उनका फैन हो चुका है। ठीक उसी प्रकार जैसे अमिताभ बच्चन के अभिनय से प्रभावित होकर बहुत सारे लोग उनके फैन है।

जरा देखिये, वे एनडीटीवी के बूम लेकर बेगूसराय पहुंच चुके हैं, हम आपको बता दें कि रवीश कुमार का बेगूसराय पहुंचना, उसी समय तय हो गया था, जब कन्हैया का चुनाव लड़ना बेगूसराय से तय हो चुका था, वे कन्हैया के गांव बीहट और बेगूसराय के उन सारे गांवों में जाकर कन्हैया के पक्ष में खूब रिपोर्टिंग करते हैं, उन सारे इलाकों में जाते है, जहां के लोग बड़े ही गर्व से कन्हैया के लिए वोटिंग करने की बात करते हैं, पर उन जगहों पर नहीं जाते, जहां कन्हैया के विरोधी जमे हैं, और न ही रोड शो के दौरान उनके चैनल में यह दिखाने की कोशिश होती है, कि बेगूसराय में कन्हैया का विरोध भी बड़े पैमाने पर हैं।

रवीश खुद कहते है कि ये सारे इलाके कन्हैया के है, पर कुछ ऐसा इलाका भी है, जहां भाजपा के लोग हैं, पर वे उन इलाकों को नहीं दिखाते, आखिर क्यों भाई, आपको इससे क्या मतलब? आप तो पत्रकार हो, आपको कन्हैया के पक्ष या विरोध से क्या मतलब? रोड शो करने चले हैं, तो दिखाइये जमीनी सच्चाई।

और इधर क्या हो रहा है, एक और राष्ट्रीय चैनल है इंडिया टीवी, जिसे चलाते हैं, रजत शर्मा, उनका बंदा भी यहां पहुंच गया है, वह बेगूसराय के सिमरिया, बीहट, रामबेरी, रतनपुर, पोखरिया मुहल्ला में खूब घुम रहा हैं, जहां इसे केवल भाजपाई ही दिखाई पड़ रहे हैं, एक भी कन्हैया का सपोर्टर नहीं दीख रहा, जो भी मिले, खूलकर बोले कि वे भाजपा को वोट देंगे, एनडीए को वोट देंगे। कमाल है, इस चैनल की रिपोर्टिग में भूमिहार शब्द का इतनी बार उच्चारण किया गया है कि इस चैनल की जितनी आलोचना की जाय, उतना ही कम है, क्योंकि इस चैनल ने भूमिहार शब्द की बार-बार उच्चारण कर, यहां के मतदाताओं का एक तरह से अपमान ही किया है।

यह राष्ट्रीय चैनल खोलकर बोल रहा है कि यहां भूमिहार पौने पांच लाख, मुसलमान ढाई लाख, कुर्मी दो लाख, यादव डेढ़ लाख मतदाता है, और बाकी के बारे में उसकी कोई जानकारी ही नहीं है, शायद इसे लगता है कि बाकी मतदाता तो कीड़े-मकोड़े हैं, असली तो यहीं मतदाता है, यहीं नौ या छः कर देंगे, ये घटिया स्तर की सोच की पत्रकारिता कहां ले जायेगी, जरा विचार करिये।

इधर एक और पोर्टल न्यूज का संवाददाता भी दिखाई पड़ा, जो भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह का इंटरव्यू लेने की कोशिश कर रहा, पर उसके सवाल पूछने का लहजा ही बता देता है कि उसके अंदर गिरिराज सिंह के लिए कितनी घृणा भरी पड़ी है, मेरा कहना है कि जब आपके मन में पहले से ही किसी व्यक्ति विशेष के लिए घृणा कर गई, तो फिर आप रिपोर्टिंग क्या करेंगे खाक? ऐसे भी गिरिराज सिंह ने अपने स्वभावानुसार, उस कथित पत्रकार की अच्छी क्लास ले ली, यह कहकर कि पहले आप बेगूसराय तो थोड़ा बढ़िया से घूम लीजिये और उसके बाद उनके पास आकर इंटरव्यू लीजिये।

कमाल है, यहां गिरिराज सिंह है, यहां कन्हैया है, यहां तनवीर हसन है, जो भी आ रहा है, उसकी पहली प्राथमिकता कन्हैया की रिपोर्टिंग है, उसके बाद दूसरे नंबर पर गिरिराज सिंह हैं पर बेचारा तनवीर हसन के पास किसी का बूम ही नहीं पहुंच रहा, जबकि लोग कहते है कि यहां तनवीर हसन को नजरंदाज करना सही नहीं होगा।

इसमें कोई दो मत नहीं कि यहां से जितने भी उम्मीदवार है, उनकी योग्यता और उनकी प्रतिभा पर कोई अंगूली नहीं उठा सकता। अगर कन्हैया तेज तर्रार है, तो गिरिराज सिंह और राजद के तनवीर हसन भी कोई कम नहीं। सच्चाई यह भी है कि अगर राजद के तनवीर हसन, कन्हैया के विरोध में खड़े नहीं होते, तो परिणाम कन्हैया के पक्ष में था, लेकिन तनवीर हसन का खड़ा हो जाना, कन्हैया के लिए चुनौती सा बन गया है। इस बात को कन्हैया भी स्वीकारते हैं।

बेगूसराय के कई इलाकों में उभरते नई पीढ़ियों के बीच कन्हैया लोकप्रिय हैं, पर बुजूर्गों और प्रौढ़ तथा युवाओं के बीच आज भी नरेन्द्र मोदी कन्हैया पर भारी पड़ रहे हैं, और गिरिराज सिंह का यह कह देना कि मोदी जी राम है, और उन्हें हनुमान की आवश्यकता है, इसके लिए उनके साथ गिरिराज का होना जरुरी है, ऐसे में बेगूसराय की जनता  उनके साथ है, उनके अंदर सुनिश्चित जीत के मनोबल को पुष्ट करता है।

बेगूसराय में कन्हैया को जीताने के लिए पूरी जेएनयू लग गई है, बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं, पर उसके बावजूद भी वो लहर पैदा नहीं हो रही, जिसकी कन्हैया को जरुरत है। हालांकि कन्हैया का इंटरव्यू ले रहे रवीश कुमार के कुछ सवालों का जवाब कन्हैया इस कदर से देते हैं, जिस पर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि ऐसे लोग सदन में रहने चाहिए, पर ऐसे लोगों को उन जगहों से लड़ना चाहिए, जहां उनकी जीत सुनिश्चित हो, बेगूसराय से कन्हैया जीत पायेंगे, इसकी संभावना नहीं दीखती, क्योंकि कुछ चैनलों ने उन पर ऐसा ठप्पा लगा दिया है कि आज भी बेगूसराय में उसे स्वीकार कर पाना, संभव सा नहीं दीखता।

हालांकि कन्हैया का प्रयास रंग लाये, उसके लिए उसके पूरे परिवार, दोस्तों की टीम, भाकपा की टीम, फिल्मी दुनिया की टीम, जेएनयू की टीम लगी हुई है, और इधर गिरिराज सिंह अकेले अपनी भाजपा की टीम के साथ लेकर बीच रास्ते में खड़े हैं, उधर राजद के तनवीर हसन भी रास्ते में बड़ा सा पत्थर लेकर लालटेन के साथ खड़े हैं, ऐसे में कौन जीतेगा, अब कहना मुश्किल है, कहना सही नहीं होगा, क्योंकि परिणाम निकल गया है, जीत किसकी होगी, हारनेवाला भी स्वीकार कर लिया हैं, और जो पत्रकार, राजनीतिक दल की तरह प्रचार कार्य में लगे हैं, उन्हें भी पता चल गया है कि यह दिल्ली नहीं बल्कि ये तो बेगूसराय है।