अपनी बात

बिना वेतन के काम करनेवाले पुलिस महानिदेशक (DGP) के दर्शन करने हो तो झारखण्ड पधारें

शायद पूरे देश में झारखण्ड ही एक ऐसा राज्य है, जहां का पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बिना वेतन के ही काम करने को तैयार हो जाता है। इस बात का रहस्योद्घाटन झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने एक ट्विटर के माध्यम से किया है। उन्होंने अपने ट्विटर में लिखा है “सुना है कि राज्य पुलिस के डीजीपी बिना वेतन के काम कर रहे हैं। महालेखाकार ने उन्हें 31 जनवरी यानी वास्तविक सेवा निवृत्ति के बाद वेतन पर्ची निर्गत ही नहीं किया है। जिस राज्य का डीजीपी बिना वेतन के काम करेगा, वहां कोयला, बालू पत्थर, जमीन की चोरी नहीं तो और क्या होगी?”

राजनीतिक पंडित बाबू लाल मरांडी के इस ट्विट को लेकर राज्य के वर्तमान पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा पर सवाल उठा दिये हैं। आखिर क्या वजह है कि तीन महीने होने को आये, उन्हें राज्य सरकार वेतन भी नहीं दे रही, फिर भी वे कुर्सी से इतना मोह क्यों रखे हुए हैं, कुर्सी से चिपके क्यों हैं, वे स्वतः वहां से निकल क्यों नहीं जाते? इसका मतलब है कि उन्हें वेतन नहीं मिलने के बावजूद भी फायदा ही फायदा नजर आ रहा है, अगर फायदा नहीं होता तो कोई बिना वेतन के कुर्सी पर क्यों चिपका रहेगा?

राजनीतिक पंडित तो ये भी कहने से नहीं चूंके कि बाबू लाल मरांडी की बातों में दम हैं कि राज्य में जो बड़े पैमाने पर कोयला चोरी, बालू-पत्थर खनन और जमीन की जो लूट हो रही हैं, उसमें पुलिस महानिदेशक की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। आखिर कोई बिना वेतन के किसी भी पद पर इतने दिनों तक क्यों कब्जा जमायेगा, इसका मतलब है कि उसे बिना वेतन के काम करने पर भी आनन्द की प्राप्ति हो रही है, अब राज्य सरकार बाबू लाल मरांडी के इस ट्विट के बाद क्या रुख अख्तियार करती है, या पुलिस महानिदेशक अपने पद को छोड़ते हैं भी या नहीं, सभी का ध्यान फिलहाल पुलिस मुख्यालय पर जाकर टिक गया है।