सचमुच अगर ऋचा भारती प्रकरण के बाद भी आप “झारखण्ड पुलिस” पर भरोसा करते हैं तो आपका भगवान ही मालिक है, क्योंकि झारखण्ड पुलिस पर भरोसा करना खुद को विनाश के कगार पर ले आने के बराबर है, यह मैं ऐसे ही नहीं लिख रहा हूं, उसके कई प्रमाण है, क्योंकि पत्रकारिता से जुड़े रहने के कारण अब तक एक–दो पुलिस अधिकारियों को छोड़, ज्यादातर हमें वहीं लोग मिले, जो एक नंबर के झूठे, मक्कार, गरीबों के साथ क्रूरता से पेश आनेवाले ही नजर आये, और सरकार ऐसे ही लोगों के हाथों में वो सब कुछ थमा दी, जिन पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता।
सबसे पहले झारखण्ड पुलिस की राजनीतिज्ञों के प्रति हरकत देखिये, अगर कोई राजनीतिज्ञ सत्ता पक्ष से जुड़ा हैं, और वह गलत करने का रिकार्ड बना रहा है, चाहे उस पर जमीन लूटने या यौन शोषण का आरोप ही क्यों न हो, तो उसे बचाने में वह एड़ी–चोटी लगा देती है, अरे वो इनके खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज नहीं होने देती, जबकि विपक्ष के लोगों के खिलाफ प्राथमिकी ही नहीं, बल्कि उन पर कानूनी कार्रवाई में तेजी आ जाती है, जरा आप एक ही प्रकार के कृत्यों पर झारखण्ड पुलिस की दोरंगी नीतियों को देखिये, जैसे हेमन्त सोरेन–समीर उरांव प्रकरण, प्रदीप यादव–ढुलू महतो प्रकरण को देख लीजिये। अधिकारियों की पिटाई के मामले मे साधु शरण महतो और विरंची नारायण इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है।
सामान्य जनता के लिए देख लीजिये, पांच जुलाई को घटित मॉब लिंचिंग और उसके शिकार लोगों को न्याय दिलाने के लिए झारखण्ड पुलिस ने अब तक क्या किया? जगजाहिर है और ऋचा भारती प्रकरण पर कितनी जल्दबाजी दिखाई, उस पर भी नजर डाल लीजिये, ऐसी है हमारी झारखण्ड पुलिस– रांची पुलिस यानी जनता के प्रति यह कितनी संवेदनशील है और सत्तारुढ़ दल के नेताओं को बचाने में कितनी सक्रिय है, उसका ये सुंदर उदाहरण है, यहीं कारण है कि सत्तापक्ष से जुड़ा कोई चिरकूट नेता ही क्यों न हो, वह इतना ताकत जरुर रखता है कि वह किसी को भी फंसा सकता है और ये पुलिस अधिकारी सच्चाई को बिना पता लगाये, उसे जेल की हवा खिला सकते हैं।
अभी हाल ही में पूर्व पुलिस महानिदेशक की पत्नी द्वारा रांची के कांके रोड में 51 डिसिमिल सरकारी जमीन अपने नाम करवाने का मामला आपको मालूम ही होगा, इससे बड़ा भ्रष्टाचार और क्या हो सकता है, कमाल तो उससे भी बड़ा है कि रांची के उपायुक्त ने कार्रवाई करने की बात की है, और कार्रवाई क्या हो रही है, सबको पता है, यानी मामला को ठंडे बस्ते में डालने का उपाय अभी से किया जाने लगा है।
और अब ऋचा भारती प्रकरण को लीजिये। अगर ऋचा भारती के प्रकरण को देखिये तो साफ पता लग जाता है कि फेसबुक पर पोस्ट के बाद कानूनी प्रक्रिया का पालन किये बिना ही ऋचा भारती को जेल भेज दिया गया था, जो बताता है कि पूरे मामले में स्थानीय पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही है।
नियम कहता है कि असाधारण परिस्थिति को छोड़ कोई स्त्री सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय के पहले गिरफ्तार नहीं की जा सकती, असाधारण परिस्थिति में भी प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट से लिखित सहमति मिलने के बाद ही गिरफ्तारी होगी, लेकिन पिठोरिया थानेदार विनोद राम, मुख्यालय एएसपी-1 अमित रेणु और ग्रामीण एसपी आशुतोष शेखर ने सायं सात बजे गिरफ्तारी के बाद ऋचा को रात के दस बजे जेल भेज दिया, जो कानूनी प्रक्रिया का खूलेआम उल्लंघन है।
ऐसे भी ऋचा एक सामान्य लड़की है, जो वीमेन्स कॉलेज की छात्रा है और न ही कोई संगठन से जुड़ी है, और न ही उसका कोई अपराधिक रिकार्ड रहा है, तो ऐसे में ऋचा भारती को किस आधार पर रात के दस बजे जेल भेज दिया गया। ऋचा के पिता प्रकाश पटेल के घर जाकर, उनके साथ गाली–गलौज करना क्या बताता है, उनके घर से ऋचा को अपराधी की तरह ले जाना पुलिस की मनोदशा को भी दर्शाता है।
जबकि ऐसे कई मामले है, जिस पर पुलिस ने आजतक कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि पूरे मामले में चुप्पी साधी हुई है, जैसे – एक जुलाई को कोतवाली थाने में अमृत रमण के बयान पर मजिद पठान के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज है, जिसमें मजिद पठान ने धर्म विशेष को लेकर अश्लील व अभद्र टिप्पणी फेसबुक पर की थी। पतरातू के बरकाकाना ओपी सुखदेवनगर थाना कांड संख्या 348/19 और अरगोड़ा थाना 80/18 में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई तक नहीं की गई। एकरा मस्जिद के बाहर दीपक श्रीवास्तव और विवेक पर जानलेवा हमला हुआ, पर आरोपी अभी तक पुलिस के पहुंच से बाहर है, जिससे पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान उठना लाजिमी है। जमशेदपुर के गोलमुरी में जसीम शेख पर भी बिरसा नगर की पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की (और बकोरिया कांड तो आपको जरुर ही मालूम होगा)।
लेकिन एक सामान्य छात्रा ऋचा भारती पर जरा देखिये कैसे उसे जेल में घुसाने के लिए दिमाग लगा दिया, वह भी इस तरह से जैसे लगता है कि उसने इतना बड़ा अपराध कर दिया कि अगर वह जेल नहीं जाती, तो उससे पूरे राज्य को खतरा था, जबकि ऐसे मामले को बातचीत या समझा–बुझा कर शांत कराया जा सकता था, यानी कुल मिलाकर ये सारी बाते बताती है कि आप झारखण्ड पुलिस पर भरोसा करते है, तो समझ लीजिये आपको न्याय मिलेगा, इसकी कोई गारंटी तो नहीं, पर जेल जरुर चल जाइयेगा और हर कोई ऋचा भारती नहीं होती, जिसके लिए पूरा समाज आंदोलित हो जाये।