अगर CM हेमन्त ने कांची पुल ढहने के मामले में यह कहा है कि जनता के पैसों की लूट किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जायेगी, तो भरोसा करना ही पड़ेगा

कांची नदी पर बना पुल ढह गया है। इस पुल के ढहने का समाचार पूरे सोशल साइट पर धमाल मचाये हुए हैं, कोई इसके लिए रघुवर शासनकाल को कोस रहा हैं तो कोई इसे ठेकेदारों और इंजीनियरों की कृपा बता रहा है, तो कोई अभी से ही रघुवर दास को बचाने के लिए तिकड़म भिड़ा दिया है। अब इसमें दोषी कौन है? इसका पता लगाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने त्वरित निर्णय ले लिये है।

उन्होंने कहा है कि कांची नदी पर जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये लगा नवनिर्मित हाराडीह-बुढ़ाडीह पुल के ध्वस्त होने के मामले में, उन्होंने निष्पक्ष उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिये हैं। उनके सेवाकाल में भ्रष्टाचार और जनता के पैसों की लूट किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जायेगी। मैं तो कहता हूं कि सचमुच ऐसा अगर हो जाये, तो झारखण्ड का कायापलट हो जाये।

ऐसे भी इन दिनों कई घटनाएं घटी है, जिससे सरकार पर अभी भी लोगों का विश्वास बना हुआ है। पहली घटना कोरोना को लेकर सरकार द्वारा लिया जा रहा जनहित में त्वरित निर्णय और इस निर्णय का न्यायालय द्वारा मिला समर्थन और दूसरा गैरमजरुआ जमीन की गलत ढंग से रजिस्ट्री मामले में सीएम हेमन्त सोरेन का लिया गया फैसला, जिसमें पूर्व डीजीपी डी के पांडेय की पत्नी समेत 17 अधिकारियों के परिजनों की जमीन की जमाबंदी रद्द करने की बात कही गई है।

इधर जैसे ही हेमन्त सोरेन ने उच्चस्तरीय जांच की बात कही, उधर भाजपा के नेताओं में सुगबुगाहट शुरु हो गई और अपने नेता रघुवर दास को बचाने के लिए कुछ नेता तिकड़म लगाने लगे, हालांकि हेमन्त सरकार ने किसी पर आरोप अभी तक नहीं लगाया है। भाजपा के एक बड़े नेता प्रदीप वर्मा ने इसी बीच पुल ढहने के लिए बालू के अवैध उत्खनन को जिम्मेवार बताया है, ये तो ये भी कहते है कि बालू का अवैध उत्खनन इसी तरह चलता रहा तो राज्य में और जगहों के पुल भी इसी प्रकार ध्वस्त होंगे।

प्रदीप वर्मा ने इसके लिए भी हेमन्त सरकार को जिम्मेवार ठहरा दिया है, वह भी यह कहते हुए कि हेमन्त सरकार के बनने के बाद बालू माफियाओं का मनोबल बढ़ा हुआ है। इधर राजनीतिक पंडितों की मानें, तो उनका कहना है कि इस राज्य में भाजपा शासनकाल में बनी कई पुल व नहरें-सड़कें, पहली वर्षाकाल में ही अपना अस्तित्व खो चुकी है, उसी में एक और पुल का नाम जुट गया, जिसका उद्घाटन भी नहीं हुआ था, ये पूरा मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हैं, इसको कोई झूठला नहीं सकता।

अब जबकि राज्य के मुख्यमंत्री ने उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिये हैं तो देखते हैं, परिणाम क्या निकलता है, पर इस जांच के आदेश का परिणाम जितना जल्द आयेगा, उतना अच्छा होगा, नहीं तो देर से आये जांच के परिणाम भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में ही सहायक होंगे।