अपनी बात

जिस पत्रकार को महाभ्रष्ट अधिकारियों/नेताओं का समूह सुबह-शाम गालियों से न नवाजें, उन्हें मैं पत्रकार ही नहीं मानता

भाई मैं तो साफ जानता हूं कि जिस पत्रकार को आला दर्जें का काइयां, गुंडा, लूटेरा, महाभ्रष्ट अधिकारियों व नेताओं का समूह प्रतिदिन सुबह-शाम उच्चकोटि की गालियों से न नवाजें, उन्हें मैं पत्रकार ही नहीं मानता। भाई मैं तो साफ जानता हूं कि जिस पत्रकार को आला दर्जें का काइयां, गुंडा, लूटेरा, महाभ्रष्ट अधिकारियों व नेताओं का समूह मरने पर न मजबूर कर दें, उन्हें मैं पत्रकार ही नहीं मानता।

मेरा तो यह भी मानना है कि जिस पत्रकार को आला दर्जें का काइयां, गुंडा, लूटेरा, महाभ्रष्ट अधिकारियों व नेताओं का समूह पचहत्तर झूठे केस ठोकवाकर उसे बर्बाद करने का संकल्प न ले लें, उन्हें मैं पत्रकार ही नहीं मानता, क्योंकि अगर ये काइयां, गुंडा, लूटेरा, महाभ्रष्ट अधिकारियों व नेताओं का समूह उक्त पत्रकार के साथ ऐसा अशोभनीय आचरण करने का मन रखते हैं, तो वह पत्रकार निश्चय ही स्वाभिमानी, देशभक्त व सत्यनिष्ठ होगा, नहीं तो जिसके साथ ऐसा नहीं होता है, तो समझ लीजिये, वो पत्रकार कैसा होगा?

लीजिये वो भी मैं बता देता हूं कि वो पत्रकार कैसा होगा? उसके पास जीवन के परम सुख प्राप्त करने की हर सुख-सुविधा उसके घर पहुंचेगी। नेता व अधिकारी उस पत्रकार के और कुछ हो या न हो, पर भैया जरुर होंगे। भले ही उस पत्रकार को एक पैसा उसका कंपनी न देता हो, पर उसके घर में दुध-दही की नदियां तथा मुर्गें की सुबह-शाम रसोई में बांग जरुर सनाई पड़ेगी, तथा इह लोक में परम सुख पाकर, राज्यसभा में डूबकी लगाकर, वह अपने शरीर को परमगति पहुंचा कर, अखबारों व चैनल में थोड़ा बहुत स्थान पाकर नरक की सीट अवश्य आरक्षित करा लेगा।

आप कहेंगे कि मेरा दिमाग आज क्यों घूम गया, भाई घूमेगा क्यों नहीं, अपने देश व राज्य में पत्रकारों की बाढ़ आ गई है, जिसे देखो पत्रकार बन रहा हैं, बहुत सारी निजी व सरकारी विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता सिखाने के नाम पर दुकानें खुल गई है, जहां इसका कारोबार खुब फल-फूल रहा है। अब तो हमारे देश के हर घर में एक पत्रकार पैदा हो रहा है, ऐसे में इन दुकानों की तो निकल पड़ी हैं, कमाल ये भी है कि इन विश्वविद्यालयों में पढाई की और भी शाखाएं हैं, पर सबको पत्रकार ही बनना है, तो ये बेचारे निजी व सरकारी विश्वविद्यालय इसका फायदा क्यों न उठाएं, इसलिए यहां से पत्रकारिता की डिग्री लेनेवाले लाखों खर्च करने में भी गुरेज नहीं कर रहे। चलिए जिनके पास पैसा होगा, वहीं खर्च करेंगे, जिनके पास नहीं होंगे, वे क्या करेंगे?

कमाल है, इन विश्वविद्यालयों में जो पत्रकारिता के गुर सिखा रहे हैं, वे भी महान ही है, वे खुद किस विश्वविद्यालय से और कहां से डिग्री लिये हैं, इनका भी भगवान ही मालिक है, और ये भी बहती गंगा में डूबकी लगाने से नहीं चूक रहे। मतलब इन दुकानों में वहीं हो रहा है, कि कोई कहे कि भाई हमें कवि या साहित्यकार बनना है, इसके लिए हम कौन से विश्वविद्यालय में जाकर किस विभाग में नाम लिखाएं और कोई हंस कर कह दें कि कवि/साहित्यकार बनने के लिए डिग्री की क्या आवश्यकता?

भाई, कुछ लोगों ने हमें आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की बधाई दी है। मैंने पूछा कि भाई, आप ये बताओ कि हम परतंत्र कब थे कि हमें भी स्वतंत्रता दिवस मनाने की आवश्यकता पड़ेगी। जिन्हें गुलाम होना है, वे हमेशा गुलाम रहेंगे, और जिन्हें गुलाम नहीं रहना है, वे किसी भी जिंदगी में गुलाम नहीं रहेंगे। अरे जरा देखिये, लक्ष्मीबाई को, वह कभी गुलाम रही क्या, जब तक रही स्वतंत्र रही और जब उनकी स्वतंत्रता पर ग्रहण लगा, अंग्रेजों के सामने तलवार लेकर खड़ी हो गई। ये अलग बात है कि वो वीरगति प्राप्त हुई, पर जब तक जिंदा रही,स्वतंत्र रही, जबकि उन्हीं के समय ग्वालियर नरेश हमेशा अंग्रेजों के शरणागत रहे।

उसी प्रकार जिस देश के पत्रकार मुफ्त की आम का जूस पीने के लिए लाइन लगायेंगे। कोरोना संक्रमण से त्रस्त गरीबों के लिए बंट रहे भोजन में भी अपना हक ढुंढेंगे और उनसे आप विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मूल्यों की बात करेंगे तो आप पत्थर से सिर ही टकरायेंगे न। इसलिए आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस किसके लिए हैं, समझते रहिये। मेरा मतलब जो स्वतंत्रता  का मतलब ही नहीं समझता, जो स्वाभिमान का मतलब ही नहीं समझता, जिसे ये नहीं पता कि स्तरहीन आलेख और स्तरीय आलेख में क्या अंतर है? जो पत्रकारीय कार्य में भी जातीयता को लाकर, अपनी शान का झंडा लहरा रहा है,  उससे ये परिकल्पना करना कि वह प्रेस की स्वतंत्रता का लाज रखेगा, तो आप मूर्ख ही है न।

पर ज्यादा निराश होने की जरुरत नहीं, आज भी कई शहरों में ऐसे युवा पत्रकार भी नजर आ रहे हैं, जो इन सबसे परे पत्रकारीय कार्य में लगे हैं और सत्यनिष्ठता के साथ प्रेस की स्वतंत्रता का भी मान रख रहे हैं और गरीबों की आवाज बन रहे हैं। देश में फैली भ्रष्टाचार पर चोट कर रहे हैं। साथ ही देश की करोड़ों जनता की आवाज बनकर आला दर्जें के काइयों, गुंडों,लूटेरों,महाभ्रष्ट अधिकारियों व नेताओं के समूह को नाक में दम कर रखे हैं। बधाई रांची के उन कर्मवीर पत्रकारों को जो आज भी किसी के आगे हाथ न पसारकर, अपनी कलम और बूम दोनों का मान बरकरार रखे हुए हैं। सही मायनों में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने के असली हकदार वही है।

2 thoughts on “जिस पत्रकार को महाभ्रष्ट अधिकारियों/नेताओं का समूह सुबह-शाम गालियों से न नवाजें, उन्हें मैं पत्रकार ही नहीं मानता

  • Shivam Besra

    Shivam besra Surat Gujarat se bol raha hu 1500 majdur pphase have hai sarkar kuch karo na jaldih contact na 9354319921 ,,,

  • राजेश कृष्ण

    सही..झकझोरें हैं।

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