अपनी बात

आखिर हमारे PM कब तक पं. नेहरु और इंदिरा को कोसते हुए अपनी गलती छिपाते रहेंगे

आखिर कब तक हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी गलतियों और गड़बड़ियों को छुपाने के लिए भारत के दिवंगत नेताओं का नाम संसद और संसद से बाहर उछालते रहेंगे? आखिर वे कब तक अपनी गलतियों व गड़बड़ियों को छुपाने के लिए कांग्रेस के 70 साल के शासन को कोसते रहेंगे। आखिर वे कब तक अपने भाषण में नेहरु परिवार को कटघरे में खड़े करते रहेंगे? आखिर ये सब कब तक चलता रहेगा? क्या इन्हें भी 70 साल शासन करने की छूट दे दी जाये, या पांच वर्ष में बतायेंगे कि जो उन्होंने वायदे किये, उनमें से कितने पूरे किये?

क्या नरेन्द्र मोदी को पता नहीं कि किसी भी प्रजातांत्रिक देश में एक निश्चित अवधि तक शासन करने के बाद सत्ता में रह रही सरकार को जनता को जवाब देना होता है। साथ ही विपक्ष का काम है कि सत्तारुढ़ दल द्वारा की जा रही गड़बड़ियों पर जनता का ध्यान आकृष्ट कराये तथा सदन में सरकार से सवाल पूछे, पर विपक्षियों के प्रश्नों का जवाब न देकर, सदन में भाषण देने की कला अगर कोई सीखना चाहे तो भाजपाइयों से सीखे।

जब से हमने होश संभाला, तो भाजपाइयों के मुख से यही सुनता आया हूं कि अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते तो कश्मीर समस्या नहीं होती। अरे भाई जो न तुम्हारे हाथ में है और न हमारे हाथ में है, उस पर ये वेवजह की बातें करने का क्या मतलब?  न तो आपके सवालों का जवाब देने के लिए पं. नेहरु जिंदा है और न ही सरदार पटेल तो फिर ये बेवजह के सवाल कब तक आप सदन में उठाते रहेंगे?

1975 के आपातकाल की बात आप करते हैं, उस आपातकाल का बदला तो भारत की जनता ने इंदिरा गांधी से 1977 के लोकसभा चुनाव में ही ले ली थी। इंदिरा से सत्ता छीनकर, आप ही के लोगों को सत्ता दिलाया, जिसका नाम था – जनता पार्टी, पर जनता पार्टी के नेता स्वयं ही आपस में सिरफुटौव्वल करने लगे, नतीजा देश को 1980 में मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ा और पुनः जिस इंदिरा जी को आप कोसते चले आ रहे हैं, उसी जनता ने 1980 में इंदिरा जी को सत्ता सौंप दिया, ये आपको मालूम होना चाहिए। यह भी मत भूलिये कि भारत की जनता इंदिरा गांधी को कितना प्यार करती थी, जो लोग 1985 का लोकसभा चुनाव देखे हैं, उन्हें पता है कि राजीव गांधी को यहां की जनता ने कितनी सीटें देकर प्रधानमंत्री बनाया था।

ऐसा नहीं कि भाजपा दूध की धुली है, और बाकी पार्टियां किसी नदी के गंदे जल से। जिन अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लेते आप नहीं अघाते, उन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर बस यात्रा की थी, नतीजा क्या निकला, संसद पर हमला?  कारगिल युद्ध में कितने जवान शहीद हुए, वह पूरे देश को पता है, ताबूत घोटाला एनडीए के ही शासन में हुआ, इसलिए आप दूसरे को जो अनाप-शनाप बोल देते है, थोड़ा अपने दामन पर भी देखिये। हमारा मानना है कि किसी भी दल को मर्यादा मे रहना चाहिए, जो लोग इस दुनिया में नहीं है, जो अपनी बातें आपके समक्ष नहीं रख सकते, उनके बारे में बोलने से बचना चाहिए।

ये मत भूलिये कि आप जहां बैठते है, वहां आपके पूर्व भी कई लोग बैठकर देश को नई दिशा दी, ऊंचाईयां दी, देश को विकास के पथ पर ले जाने के लिए सर्वस्व का त्याग किया। आप ये मत भूलिये कि जब आप 1984 के सिक्ख दंगों की बात करते है तो लोगों को गुजरात का 2002 का दंगा भी याद है, जब आप ही के अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात में दंगा प्रभावित इलाके में कहा था कि अगर ऐसा हो रहा हैं तो मैं कौन सा मुंह लेकर विदेश जाऊंगा। वहीं अटल बिहारी वाजपेयी ने आपको राजधर्म की सीख दी थी, पर आप तो राजधर्म कितना सीखे हैं, वह तो पूरा देश देख रहा है।

अंत में ज्यादा किसी को बोलने की जरुरत नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी को फील गुड, उन्हीं के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने कराया था और आपको भी 2019 में फील गुड कराने का जिम्मा अरुण जेटली ने ले लिया है, बस अब ज्यादा दिन बचे कहां है, सबको अब पता है कि अब सहीं में अच्छे दिन आनेवाले है, क्योंकि आप 2019 में सत्ता से जानेवाले है। आप बनाते रहिये 2022 तक का प्लान, ये तो जनता निर्णय करेगी कि उस प्लान को आगे कौन ले जायेगा, आप की पार्टी या वह पार्टी जिसे जनता 2019 में सत्ता सौंपेगी।