अपनी बात

इधर बाबू लाल “लेटर बम” चलाते रहे, उधर हेमन्त उतने ही जनता के बीच लोकप्रिय और मजबूत होते चले गये

जब से बाबू लाल मरांडी ने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन किया है, तब से लेकर कई लेटर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को उन्होंने प्रेषित किया है। इधर जबसे कोरोना संक्रमण राज्य में हुआ है, उसके बाद इनका लेटर लिखने की गति और तेज पकड़ी है। ये लेटर बाबू लाल मरांडी खुद नहीं लिखते और न ही इन लेटर में उनकी कोई दिलचस्पी होती है, बल्कि ये लेटर उनके खासमखास व्यक्ति लिखा करते हैं, और बस नीचे ऊपर बाबू लाल मरांडी का नाम डाल दिया जाता है, तथा इसकी सूचना उन्हें दे दी जाती है ताकि कोई पत्रकार इस मुद्दे पर बाइट मांगने जाये तो वे आराम से उन्हें वे बाइट इस संबंध में दे डालें।

हालांकि ये सारे लेटर किसी काम के नहीं हैं, क्योंकि इन लेटरों में कुछ भी ऐसा नहीं होता, जिसको लेकर सरकार सजग हो, बल्कि इसमें राजनीतिबाजी ही ज्यादा होती है। ऐसे भी कोई नेता विपक्ष होता हैं तो उसकी पहली और अंतिम जिम्मेदारी यही होती है कि वो राजनीति करें, तथा हर माहौल में उपजी परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने का माहौल तैयार रखे, शायद इसी को राजनीति कहते हैं और इस राजनीति में उनके पुराने मित्र उनकी बहुत मदद कर रहे हैं।

उन मित्र महोदय को लगता है कि बाबू लाल मरांडी का वो पुराना दिन यानी 15 नवम्बर 2000 वाला वे पुनः लौटा देंगे, जबकि राजनीतिक पंडितों का मानना है कि जो दिन गुजर गये, वे पुनः उसी स्थिति में लौट आयेंगे, इसकी संभावना न के बराबर होती है, हर कोई श्रीमती इंदिरा गांधी नहीं हो जाता कि जैसे उन्होंने ढाई साल में खोई सत्ता प्राप्त कर ली, ये बाबू लाल भी अपनी खोई सत्ता पुनः ले लेंगे, क्योंकि झारखण्ड की राजनीति ने 2020 में इस प्रकार करवट ली है कि भाजपा के लिए झारखण्ड में पुनः सत्ता हासिल करना इतना आसान नहीं, जितना दिल्ली में बैठे भाजपा के राजनीतिक धुरंधर समझ रहे हैं।

राजनीतिक पंडितों का ये भी कहना है कि बाबू लाल मरांडी को 15 नवम्बर 2000 में भाजपा में कोई उनका विकल्प नहीं होने के कारण, उन्हें फायदा मिला और वे मुख्यमंत्री बने, पर 2003 में उनके द्वारा गलत उत्तराधिकारी चुने जाने के कारण उनकी स्थिति ये हो गई कि उनके ही उत्तराधिकारी अर्जुन मुंडा ने ऐसा उनके खिलाफ ताना-बाना बुना कि उनके पास भाजपा छोड़ने के सिवा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था, उसके बाद बाबू लाल मरांडी ने कभी कांग्रेस तो कभी महागठबंधन तो कभी स्वतंत्र रुप से अपनी पार्टी झाविमो के द्वारा भाग्य आजमाया, लेकिन सफलता नहीं मिली, ऐसे में वे पुनर्मूषिको भव के तहत भाजपा में आ गये, पर क्या इस बार वे फायदा उठा सकेंगे या ये लेटर बम सदा के लिए फुस्स हो जायेंगे।

जानकार बताते है कि लेटर बम से जो लोग यह समझ रहे है कि बाबू लाल मरांडी को सत्ता में ले आयेंगे तो ऐसा अब संभव नहीं, क्योंकि हेमन्त सोरेन ने थोड़े ही समय में जिस प्रकार से कोरोना संक्रमण में अपनी उपयोगिता साबित की है, वो पूरे देश के राज्यों में से किसी मुख्यमंत्री ने नहीं किया। जानकार ये भी बताते है कि जब भाजपा के लोगों को इस कोरोना संक्रमण में राज्य सरकार को सहयोग करना चाहिए था, केन्द्र सरकार पर दबाव डालकर झारखण्ड के लिए विशेष आर्थिक पैकेज देने तथा यहां के श्रमिकों के लिए विशेष व्यवस्था कर झारखण्ड लाने का प्रयास करना चाहिए था, उस वक्त इनके नेता राजनीति करने व लेटर बम चलाने में ज्यादा रुचि ले रहे थे।

शायद यही कारण था कि हेमन्त सोरेन ने भाजपाइयों पर चुटकी लेते हुए कहा था कि उनके नेता कितना भी लेटरबाजी कर लें, उनका काम फिलहाल झारखण्डियों को अपने राज्य लाना, उन्हें भोजन की व्यवस्था कराना और रोजगार मुहैया कराना है ताकि वे फिर पलायन के शिकार न हो, और खुशी इस बात की है कि इस काम में हेमन्त ने बाजी मार ली और इसका प्रभाव पूरे देश में देखा गया, जब मीडिया के धुरंधरों ने हेमन्त की मुक्त कंठ से इस बात के लिए प्रशंसा की, कि हेमन्त सोरेन पूरे देश में पहले मुख्यमंत्री बने, जो अपने राज्य के श्रमिकों को अपने यहां लाने में विशेष भूमिका अदा कर दी, पीएम को लेटर लिखकर बताया कि श्रमिकों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाना इस समय कितना जरुरी है, और केन्द्र ने इस बात को जमीन पर उतारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दी।

सीएम हेमन्त के इसी अंदाज से झारखण्ड के ग्रामीण अंचलों में रहनेवाले लोगों को लगा कि कोई उनके घर से ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री बना है, जो उनमें रुचि ले रहा हैं, लोगों को विश्वास जगा और लीजिये, ट्रेनों का सिलसिला चल पड़ा। कोटा, लिंगमपल्ली, तिरुवनन्तपुरम, जलंधर आदि जगहों से झारखण्ड के लिए ट्रेनें चल पड़ी, लोग झारखण्ड आने लगे, यहीं नहीं पहली बार देश के किसी राज्य में श्रमिकों का सम्मान पूर्वक स्वागत हुआ, क्योंकि आम तौर पर ऐसा स्वागत कभी देखने को मिला ही नहीं, और अपने इसी अंदाज से हेमन्त सोरेन ने बिना किसी प्रचार के झारखण्ड के करीब सवा तीन करोड़ जनता के बीच अपनी अलग पहचान बना ली।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो जिस प्रकार कोरोना संक्रमण को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हुई बैठक में झारखण्ड से जुड़े मुद्दों को लेकर सीएम हेमन्त सोरेन ने महत्वपूर्ण मुद्दे, जिस गंभारता से उठाए, उसका परिणाम देखने को भी मिल रहा है। पहले ये चीजें देखने को नहीं मिलती थी, भाजपा के ही कोटे से बने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का बोलने का लहजा अपने मातहत काम करनेवाले लोगों के साथ कैसा रहता था, कौन नहीं जानता है, पर आज उसी पद पर बैठे हेमन्त सोरेन ने उस दाग को भी अच्छी तरह धोने का भी काम किया है, जिसका नतीजा यह है कि यहां कोरोना संक्रमण से प्रभावित लोगों की सेवा में लगे अधिकारियों/कर्मचारियों का मनोबल ऊंचा है, साथ ही यहां रिकवरी रेट भी लगभग पचास प्रतिशत हो चुका है।