अपनी बात

हेमन्त ने जनता का रखा ख्याल, जनता को डीजीपी के रुप में कमल नयन नहीं, बल्कि एमवी राव ही चाहिए

राज्य में पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति उनके बेहतर भविष्य या उनके परिवारों को बेहतर सुविधा उपलब्ध हो, वे आजीवन सुख-ऐश्वर्य का आनन्द लेते हुए अवकाश प्राप्त करें, बाद में किसी पार्टी में शामिल होकर दुसरी इनिंग खेले, सांसद बन जाये और जब तक जिंदा रहे परमसुख को प्राप्त कर स्वर्ग जाये, इसके लिए नहीं की जाती। पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति इसलिए की जाती है कि वे राज्य में बेहतर कानून-व्यवस्था स्थापित करें, राज्य में शांति का माहौल हो, इसके लिए प्रयास करें और इसके लिए कोई भी निर्णय लेना, यह किसी भी राज्य सरकार का विशेषाधिकार है।

शायद यही कारण रहा होगा कि जब संघ लोक सेवा आयोग ने पूर्व डीजीपी कमल नयन चौबे को लेकर जो सवाल राज्य सरकार से पूछे, उसका जवाब राज्य सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग को दे दिया, अब संघ लोक सेवा आयोग को जो करना है करें। पूरा झारखण्ड जानता है कि पूर्व डीजीपी डी के पांडेय हो या कमल नयन चौबे, इन दोनों ने राज्य के पुलिस महकमे का कैसा कबाड़ा बनाया?

पूर्व डीजीपी डी के पांडेय तो अपने सेवाकाल में ही भाजपा प्रवक्ता के रुप में पेश आते थे,इन पर तो भ्रष्टाचार के ऐसे-ऐसे आरोप है कि पूछिये मत। अपनी पत्नी के नाम पर 51 डिसमिल जमीन हड़पने का मामला हो या गले में सांप को लटका लेना, कौन नहीं जानता है कि इनके बारे में। क्या संघ लोक सेवा आयोग बता सकता है कि उसने पूर्व डीजीपी डी के पांडेय पर क्या एक्शन लिया था?

यही बात पूर्व डीजीपी कमल नयन चौबे कह सकते है कि उन्होंने ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहण किया? क्या यह सही नहीं कि उनके कार्यकाल में एक धनबाद की महिला, अपने उपर हुए यौन शोषण के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए कहां-कहां नहीं भटकी। वो उन तक भी पहुंची थी। क्या किया पूर्व डीजीपी कमल नयन चौबे ने? भाजपा नेता के इशारे पर, मुख्यमंत्री रघुवर दास के इशारे पर उक्त नेता यानी भाजपा का बाघमारा विधायक ढुलू महतो पर प्राथमिकी तक दर्ज नहीं होने दी।

जबकि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है कि किसी भी महिला पर इस प्रकार का अत्याचार हो तो उसकी प्राथमिकी, प्राथमिकता के आधार पर दर्ज होनी चाहिए, पर हुआ क्या? उक्त महिला को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा, हाई कोर्ट ने आदेश भी दिये, उसके बावजूद महीनों लग गये, ढुलू के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में, क्या ऐसा डीजीपी प्रदेश को चाहिए?  

क्या ऐसे लोग राज्य के पुलिस महकमे को बेहतर बनायेंगे? क्या पूर्व डीजीपी कमल नयन चौबे बता सकते है कि धनबाद के एसएसपी के खिलाफ उन्होंने क्या एक्शन लिये? जिसने ढुलू के खिलाफ प्राथमिकी ही नहीं होने दी, उस ढुलू के खिलाफ जिसके खिलाफ 40 अपराधिक प्राथमिकी दर्ज है? भाई, ऐसी कौन सी मजबूरी थी, कि आपने ढुलू के खिलाफ एक्शन ही नहीं होने दिया? जिस ढुलू ने बाघमारा में आतंक का साम्राज्य स्थापित कर रखा है। क्या जनता नहीं जानती कि जिस ढुलू को पूर्व डीजीपी कमल नयन चौबे के कार्यकाल में फूलोंं की छड़ी से भी नहीं छूआ जाता था। वह ढुलू महतो वर्तमान डीजीपी एमवी राव के कार्यकाल में अदालत में आत्मसमर्पण को मजबूर हुआ, कई महीनों तक जेल की सलाखों में रहा।

आश्चर्य है, इनके शासनकाल में कई इलाकों में सांप्रदायिक तनाव हुए, दंगे हुए, लोहरदगा का दंगा तो भाजपाइयों को मालूम ही होगा, क्या हुआ था वहां? और आज जब हेमन्त सरकार ने एक्शन लिया तो लीजिए, सबकी घिग्घी बंध गई। सभी वर्तमान डीजीपी एमवी राव को हटाने में लग गये। किसलिए भाई? इसलिए कि उन्होंने बकोरिया कांड में गलत लोगों को नंगा करके धर दिया।

इसलिए कि उन्होंने कोविड 19 के समय सांप्रदायिकता फैलानेवालों पर कड़ा एक्शन लेना शुरु किया। कोल माफिया की बैंड बजाकर रख दी। घटियास्तर के नेताओं की नाक में नकेल कसकर रख दी। वे नेता जो हाथी उड़ानेवाले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खासमखास थे। वे नेता जिनको दिखाने के लिए अंगरक्षक चाहिए, जिस पर एमवी राव ने नकेल कस दिया।

राज्य को कमल नयन चौबे या डी के पांडे की तरह नहीं, एमवी राव ही चाहिए, ताकि कोई भी जनता उनके पास निर्भय होकर अपनी समस्या लेकर पहुंच सकें और उसका हल बिना किसी लाग-लपेट या पैरवी के हो जाये, जनता को टर्म से कोई लेना-देना नहीं, जनता को इससे भी कोई मतलब नहीं कि कौन कितने अवधि तक डीजीपी रहा या रहेगा, जनता को तो सिर्फ इससे मतलब कि, किसके कार्यकाल में वह चैन की नींद सो सकी, फिलहाल इन सबसे बेहतर तो अभी एमवी राव ही है, और मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने जिस प्रकार से अपना पक्ष रखा तथा एमवी राव को डीजीपी बनाया, वह जनता की नजरों में काबिले तारीफ है।