रांची में शुरु हुआ विभिन्न अखबारों/चैनलों/पोर्टलों द्वारा हेमन्त सरकार हटाओ राजनीतिक साप्ताहिक महापर्व

जी हां। झारखण्ड की राजधानी रांची में एक राजनीतिक महापर्व प्रारम्भ हो चुका है। उस पर्व का नाम है- हेमन्त सरकार हटाओ महापर्व। यह महापर्व कुछ ही दिनों पहले प्रारम्भ हुआ हैं, जो दो-तीन दिनों तक और चलेगा। चूंकि अखबारों/चैनलों/पोर्टलों के पास लिखने/दिखाने/सुनाने का अब टोटा हो चुका हैं, तो इन लोगों ने दिमाग लगाना शुरु कर दिया कि अपने ग्राहकों को कैसे अपनी ओर मोड़ा जाये, ताकि उनकी दुकानदारी चलती रहे।

इसलिए सब ने दिमाग लगाना शुरु कर दिया, कि क्यों न अच्छी-खासी चल रही हेमन्त सरकार को गिराने का एक साप्ताहिक महापर्व ही प्रारम्भ किया जाये, क्योंकि यह तो एक ऐसा बीज (समाचार) हैं, जो हर समय यहां फिट रहता हैं, क्योंकि यहां की मिट्टी इसी के लिए तो उपयुक्त हैं, सरकार के पास अपनी बहुमत नहीं हैं, वैशाखी पर सरकार टिकी हैं, यहां के विधायक आयाराम-गयाराम के शुरु से ही प्रतीक रहे हैं, ऐसे में क्यों न यह महापर्व शुरु किया जाये और लीजिये इनके इस डायग्राम में दो नेता झामुमो के फिट भी हो गये, जो अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। जिसमें प्रथम है – सीता सोरेन और दूसरे हैं लोबिन हेम्ब्रम।

सीता सोरेन ने तो यह कहकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी एक तरह से क्लियर कर दी है कि उनकी बेटियों की इतनी उम्र जरुर हो गई है कि वो चुनाव लड़ सकती हैं, यानी उनकी चिन्ता झारखण्ड से ज्यादा अपनी बेटियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को लेकर हैं और जब राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ती हैं, तो क्या होता हैं, या तो पार्टी टूटती हैं, या वो व्यक्ति खुद टूट जाता हैं, या जो पार्टी को तोड़ने का प्रयास करता हैं वो बाद में कही का नहीं रहता।

ऐसे तो झारखण्ड में ही कई राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले लोग ऐसे हुए, जिन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए पार्टी को ही दांव पर लगा दिया और नतीजा यह हुआ कि वे आज कहीं के नहीं हैं। कुछ तो स्वर्ग चले गये। कुछ तो जिंदा होकर भी मरे हुए हैं। विधायक का पेंशन उठाकर खुद को जिन्दा रखे हुए हैं। लेकिन झारखण्ड के विकास में उनका क्या योगदान हैं, वो हमसे बेहतर कौन जानता हैं? झारखण्ड के निर्माण से लेकर अब तक ज्यादातर विधायकों की सोच स्वयं से उपर गई ही नहीं, जिसका नतीजा है कि झारखण्ड के समकक्ष जन्म लेनेवाले राज्य उत्तराखण्ड-छत्तीसगढ़ प्रगति पथ पर बहुत आगे निकल चुके, जबकि झारखण्ड अभी इन राज्यों के पिछलग्गू भी ठीक से नहीं बन पाया है।

अब जरा देखिये न। सुनने में आ रहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन माता वैष्णो देवी के दरबार में मत्था टेकने गये हैं और उनके तथाकथित चाहनेवाले- न चाहनेवाले लोग उनकी सरकार की गिराने के लिए दिमाग ही नहीं लगा रहे, बल्कि कील पर कील ठोके जा रहे हैं। जिन्होंने ठीक से माइक पकड़ना भी नहीं सीखा, वे पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक बनकर सरकार की अलोकप्रियता और सरकार की स्थिरता पर विचार प्रकट कर रहे हैं। जिन्हें अभी सीखने की जरुरत हैं, वे सीखा रहे हैं और ये सब तमाशा देखकर जो राजनीतिक पंडित हैं, वे अचंभित हैं।

सच्चाई यह है कि लोबिन हेम्ब्रम या सीता सोरेन कुछ भी कर लें, हेमन्त सरकार की सेहत पर फिलहाल कोई खतरा उत्पन्न नहीं होने जा रहा हैं और कांग्रेस के विधायक इतने मूर्ख भी नहीं कि इस सरकार के साथ रहकर जो मलाई वे चाभ रहे हैं, उस मिल रही मलाई को इस फालतू के चक्कर में कचरे में फेंक दें, अतः ये सरकार खूब चलेगी, और अपने समय को पूरा करेगी, हां उसके बाद होनेवाली चुनाव के बाद आयेगी या नहीं आयेगी, इसकी भविष्यवाणी विद्रोही24 डॉट कॉम ने पहले ही कर दी हैं।

अतः अखबारों/चैनलों/पोर्टलों को हेमन्त सरकार हटाओ राजनीतिक महापर्व मनाने दीजिये, उन्हें स्वपन लोक में जीने दीजिये, अपना गला फाड़ अभ्यास करने दीजिये, आप आराम से रहिये, इस सरकार को कुछ नहीं होने जा रहा और न इस सरकार से केन्द्र सरकार को कोई परेशानी हैं, हालांकि जिस दिन वे चाह लेंगे, उसी दिन ये सरकार भरभरा जायेगी, पर हम जानते है कि नरेन्द्र मोदी-अमित शाह इतने कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं, जो खुद अलोकप्रिय हो रही सरकार में अपनी गर्दन फंसाकर भाजपा के भविष्य पर ही दांव लगा दें।