हेमन्त जी ध्यान दें, नहीं तो यहां की गरीब जनता बेमौत मर जायेगी और आपका रहा-सहा यश भी समाप्त हो जायेगा

इसमें कोई दो मत नहीं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद, अब आपके पास समय का बहुत बड़ा अभाव है, क्योंकि अब आपके पास ऐसे-ऐसे लोग बैठ रहे हैं, जो आपको दिमाग दे रहे हैं। हमें अच्छा भी लग रहा है कि ये दिमाग देनेवाले लोग आपको कैसा-कैसा दिमाग दे रहे हैंपर आम जनता कि क्या स्थिति हैं, ये वहीं बतायेगा, जो आम जनता के बीच रहेगा, न कि नेता और वे अधिकारी, जो हर आई हुई आफत को एक महोत्सव के रुप में लेते हैं।

कोरोना वायरस जैसी संक्रामक बीमारी भले ही गरीबों के लिए आफत है, पर यहां के आइएएस/आइपीएस व नेताओं के लिए महोत्सव ही तो हैं, क्योंकि अब केन्द्र व राज्य सरकार नाना प्रकार की भलाई योजनाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए अपने कोषागार का द्वार खोलेगी और ये उसमें से अपना कमीशन या भविष्य का द्वार ढूंढ लेंगे, इसके एक नहीं कई प्रमाण है, बिहार में हुआ बाढ़ राहत घोटाला, उसका जीता-जागता प्रमाण है।

फिलहाल कोरोना वायरस ने जिस प्रकार देश के अन्य राज्यों में तहलका मचाना शुरु किया है, उन समाचारों को सुनकर ही लोगों के दिल दहल जा रहे हैं, पर लोगों को यह समाचार सुनकर खुशी हो रही हैं कि अब तक कोरोना वायरस के एक भी पोजिटिव रिपोर्ट झारखण्ड में नहीं मिली हैं, पर सच्चाई यह भी है कि यहां की जनता इसके लिए आपको श्रेय नहीं दे रही, बल्कि अब तक वह इसके लिए सिर्फ और सिर्फ ईश्वर को श्रेय दे रही हैं।

जनता यह भी देखी है कि कडरु में बनाये गये शाहीनबाग की महिलाओं ने आपके द्वारा भेजे गये प्रतिनिधि सुप्रियो भट्टाचार्य का कितना ख्याल रखा और आपने शाहीनबाग के आगे कैसे सिर झुकाया, चलिए राजनीति में ये सब चलती रहती है, पर कोरोना वायरस को लेकर लाये गये लॉकडाउन ने मात्र दो दिनों में लोगों के हाथ-पांव फूला दिये हैं।

जो लोग कानून को मानते हैं या अनुशासन में रहते हैं, या जो अत्यंत गरीब हैं, निः संदेह ऐसी स्थिति रही तो वे भूखों मरेंगे, पर जो कानून को नहीं मानते, अनुशासन में नहीं रहते, जिन्हें अपने अमीर होने का ज्यादा घमंड है, उनकी तो बात ही क्या कहनी, लॉकडाउन हो या कर्फ्यू, उन्हें क्या फर्क पड़ता है?

जैसे एक सवाल, क्या आप बता सकते हैं कि नोटबंदी के दौरान किस विधायक या आइएएस/आइपीएस अफसर ने अपने यहां रखे नोटों की अदला-बदली करने के लिए किसी बैंक का चक्कर लगाया और अगर आपके पास ऐसा प्रमाण है तो आप हमें उपलब्ध कराइये, मैं जिंदगी भर आपका गुलाम रहुंगा। ये उदाहरण मैं इसलिए दे रहा हूं कि आप सच्चाई को समझिये।

सच्चाई क्या है? खुद को पढ़े-लिखे जाहिलों ने इस प्रकार राशन की लूट मचाई कि व्यापारियों ने इसका खुब फायदा उठाया, जिसका परिणाम यह हुआ कि बहुत लोगों के पास आज अनाज का संकट है, जिस पर आपके आइएएस/आइपीएस का ध्यान ही नहीं, क्योंकि दरअसल इन्हें चावल-दाल का भाव क्या मालूम, ये तो घर जायेंगे, बना-बनाया मिल ही जायेगा, इनके आगे-पीछे करनेवाले बूके देनेवाले लोग इनका माला उठा ही लेंगे तो फिर इन्हें दिक्कत क्या है?

आप पता लगाइये कि कितने लोगो के घरों में आज भोजन/सब्जियां बनी और अगर नहीं बनी तो उसके लिए जिम्मेवार कौन है? इन सारी चीजों की व्यवस्था करना, किसका काम है, केवल लॉकडाउन और कर्फ्यू की घोषणा करने से कोरोनावायरस से नहीं लड़ा जा सकता, क्योंकि जब मरने की बात आयेगी तो लोग ऐसे भी मर जायेंगे।

इसलिए हमारा सुझाव हैं कि यह आप सुनिश्चित करायें कि राज्य के सभी गांवों/मुहल्लों/शहरों में सभी छोटे-बड़े राशन दुकानदार अपनी दुकानें खुले रखें और अपने दुकान के सामने सारी खाद्यान्न वस्तुएं के नाम व दाम चिपकाए रखें ताकि कोई खाद्यान्न वस्तुओं की कालाबाजारी न कर सकें। आप यह भी सुनिश्चित कराएं कि इन सारी दुकानों में राशन का अभाव नहीं हो, ताकि ये राशन दुकानदार राशन नहीं रहने का बहाना नहीं बना सकें।

आज भी झारखण्ड के कई इलाकों में खेतों में सब्जियां ऐसी ही पड़ी हैं, पर उन इलाकों से उचित जगहों पर इन सब्जियों को लाने की कोई व्यवस्था ही नहीं की गई, नतीजा जहां सब्जियां थी, वहां वह कौड़ियों के भाव बिकी और जहां नहीं थी, लोग तरसते रह गये। हमारा सुझाव है कि इन सब्जियों को भी उचित स्थानों पर पहुंचाएं तथा यह सुनिश्चित करें कि इन सब्जियों को कोई मनमाने ढंग से न बेच सकें।

अच्छा रहेगा कि सब्जी बेचनेवाले अपने सामानों के आगे छोटी सी पर्ची में सामान के दाम लिखे रहें ताकि कोई मनमाना रेट न वसूल सकें। फिलहाल इतना ही काम कर दीजिये, सही कह रहा हूं, लोग आपको बड़ी दुआ देंगे, नहीं तो बद्दुआ देने में कितना समय लगता है, और ये बद्दुआ कैसे पड़ती हैं, उसका सुंदर उदाहरण आपसे-हमसे बेहतर कौन जानेगा? क्योंकि कोरोना वायरस से लड़ाई, इतनी जल्दी खत्म नहीं होनेवाली हैं, लंबी लड़ाई चलेगी, इसलिए आपको ज्यादा कंशस होना पड़ेगा, क्योंकि हार-पछताकर लोगों की आशाएं आपसे हैं, आपके भ्रष्ट अधिकारियों से नहीं।