हेमन्त जी, जनता से कैसे मिलना चाहिए, इस शिष्टता को कम से कम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से तो सीखिये

सत्ता जब मिलती है, तो व्यक्ति-विशेष का हाव-भाव कैसे बदलता है? उसकी दो तस्वीरें मैं आपको दिखाता हूं। एक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है, जो अपनी जनता के लिए जनता दरबार लगाते हैं और उनसे आत्मीय भाव से मिलते हैं, अपने लिए कुर्सी की व्यवस्था तो करते ही हैं, साथ ही जनता का भी ख्याल रखते हैं और वे अपने समानान्तर जनता की कुर्सी लगवाते हैं, शायद उन्हें पता है कि लोकतंत्र की असली मालिक जनता होती है, पर झारखण्ड में क्या हो रहा है?

तथाकथित अबुआ राज में क्या होता है, झारखण्ड के मुख्यमंत्री अपने मन-मुताबिक अपने घर से निकलते हैं और अपने आवास पर आये दूर जिलों के लोगों से खड़े ही खड़े मिलते हैं, मतलब साफ है जनता को खड़े-खड़े ही मिलना है, उन्हें बैठने की शायद उनके आवास पर इजाजत नहीं। ये मैं आज से नहीं, कई महीनों से देख रहा हूं कि जब भी कोई जनता उनसे मिलती है, तो वे मर्यादा के अनुसार नहीं मिलते, बल्कि जनता को खड़ा करवा देते हैं और खड़े ही खड़े जनता से मिलते हैं।

जबकि पूर्व में झारखण्ड में ही ऐसा नहीं था, यहां जनता के बीच एक संवाद केन्द्र चला करता था, जहां पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास अपने मन-मुताबिक, ठकुरसोहाती वाली जनता को अपने सामने, अपने लोगों से कहकर बिठवाते थे, इस क्रम में एक-दो समस्या का समाधान होता था, और बाकी समस्याएं लटकी रह जाती थी।

मतलब ऐसा नहीं कि रघुवर दास के शासनकाल में जनता की समस्याओं का समाधान होता था, सरकारें बदली लोगों का लगा कि अबुआ राज आ गया, आदिवासी मुख्यमंत्री का राज आ गया, पर हुआ क्या? ठीक उलटा। आज जनता ही तबाह हो गई है। जनता खड़ी-खड़ी आती है। जनता मुख्यमंत्री आवास पर खड़ी-खड़ी रहती हैं। कोई उन्हें पूछनेवाला नहीं होता।

जब मुख्यमंत्री बाहर आते हैं, तो लोगों को बताया जाता है, मुख्यमंत्री आ गये और लोग उन्हें खड़े-खड़े ही घेर लेते हैं, समस्याएं सुनाते हैं, पता नहीं उन समस्याओं पर कितनी सुनवाई होती हैं, और जनता बेमन से अपने गांव की ओर लौट जाती है, ये सोचकर कि होने को होगा तो ठीक है, नहीं तो भगवान जाने।

कमाल है, ये स्थिति हैं, झारखण्ड की। राजनीतिक पंडितों की मानें तो उनका साफ कहना है कि बात काम होने या नहीं होने की नहीं, बात तो मर्यादा की है, कि आप जनता को क्या समझते हैं, एक ओर बिहार में जनता से वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बड़ी विनम्रता और शिष्टता से मिलते हैं, खुद दिलचस्पी लेते हैं।

वहां अधिकारियों की टीम भी उस वक्त उनके साथ होती हैं, जो मौके-वारदात समस्या का हल करती हैं, पर झारखण्ड में, वीवीआईपी के लिए अलग व्यवस्था और आम जनता के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं, बस वहीं खड़े-खड़े आइये और खड़े-खड़े जाइये, पता नहीं यहां की गरीब व सामान्य जनता को यहां के मुख्यमंत्री कब सम्मान देना सीखेंगे?