अपनी बात

चले थे दिसम्बर में हेमन्त सरकार को उखाड़ने और यहां पासा गया पलट, CM हेमन्त ने झारखण्ड में अपनी मजबूत पकड़ से राजनीतिक पंडितों को किया हैरान, विपक्षियों की बढ़ाई धड़कनें

पिछले ही नवम्बर महीने के दूसरे हफ्ते की बात है। जमशेदपुर पूर्व से झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में ओड़िशा के राज्यपाल रघुवर दास को विधानसभा चुनाव 2019 में धूल चटानेवाले सरयू राय का बयान आया था कि हेमन्त सरकार अब ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं हैं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि दिसम्बर माह में यह सरकार चली जायेगी। यह समाचार उस वक्त झारखण्ड से निकलनेवाली सभी अखबारों की सुर्खियां बन गई थी।

लेकिन यहां तो हो रहा है उल्टा। दिसम्बर महीने में यह सरकार और मजबूत होकर उभरी है। ऐसे भी जो लोग झारखण्ड की राजनीति को नजदीक से जानते हैं। वे आसानी से बता सकते हैं कि दिसम्बर महीना व हेमन्त ऋतु हमेशा से हेमन्त सोरेन के लिए शुभकारी-मंगलकारी व हर्ष को प्रदान करनेवाला रहा है। इसलिए इस बार दिसम्बर का महीना हेमन्त सरकार के लिये अहितकारी हो जाये, ये कैसे हो सकता है?

अब जैसे झारखण्ड से प्रकाशित होनेवाले आज की सारे अखबारों की सुर्खियों पर नजर डाले। सुर्खियां – हेमन्त सरकार से संबंधित है। सभी अखबारों ने यह खबर दी है कि झारखण्ड हाई कोर्ट में जो राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से संबंधित खनन पट्टा और जमीन आवंटन के मामले से संबंधित जनहित याचिका डाली गई थी। उस जनहित याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

ज्ञातव्य है कि आरटीआइ एक्टिविस्ट सुनील महतो ने सीएम हेमन्त सोरेन और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री ने पद पर रहते हुए संवैधानिक पद का दुरुपयोग किया और अपने नाम से माइनिंग लीज ली है, साथ ही अपने रिश्तेदारों को भी माइनिंग लीज दिलवाया। आरटीआइ एक्टिविस्ट ने हाईकोर्ट से इस पूरे मामले की जांच कराने का आग्रह भी किया था।

कल इसी मामले में झारखण्ड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और जस्टिस आनन्द सेन ने याचिका खारिज कर दी और अपने आदेश में कहा कि चूंकि इसी प्रकार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर चुकी है। ऐसे में इस पर कोई मामला नहीं बनता। राजनीतिक पंडितों की मानें तो दिसम्बर में हेमन्त सोरेन की विदाई करने को लेकर मन बना चुके भाजपाइयों और उनके समर्थकों, साथ ही अपनी पार्टी को भाजपा में विलय करने का मन बना चुके सरयू राय को निश्चय ही गहरा झटका लगा होगा। जबकि हेमन्त सोरेन और उनके समर्थकों के हौसले कल के हाई कोर्ट के फैसले से निश्चय ही बुलंद हुए होंगे।

रांची के कई अखबारों में काम करनेवाले हमारे अभिन्न मित्र (यहां उनका नाम लेना ठीक नहीं होगा) मुंह पिजाये हुए थे। उनका कहना था कि देख लीजियेगा यह सरकार दिसम्बर तक एकदम चली जायेगी। अब कोई हेमन्त सोरेन के पास विकल्प नहीं हैं। लेकिन पता नहीं क्यों? मुझे पूर्व की तरह आज भी विश्वास है कि यह सरकार चलेगी और खूब चलेगी। अपने विरोधियों को हर प्रकार से जवाब देती रहेगी।

ऐसे भी जब से हेमन्त सोरेन की राज्य में सरकार बनी है। इनके विरोधियों ने चैन से बैठने नहीं दिया। दो साल तो कोरोना ले डूबा और जैसे ही कोरोना से मुक्ति मिली। लीजिये कभी चुनाव आयोग की चिट्ठी की धमकी, कभी राज्यपाल के एटम बम की धमकी, कभी विधानसभा से पारित हुई विधेयकों को बेवजह लटकाने की जुर्रत, मतलब हर प्रकार से जनता के सामने हेमन्त सोरेन को नीचा गिराने की कोशिश विपक्ष द्वारा की गई। लेकिन सत्य यह भी है कि जितना ही इस सरकार को गिराने की कोशिश की गई। हेमन्त उतने ही मजबूत भी होते गये।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो इसी दरम्यान हेमन्त सोरेन द्वारा लिये ये निर्णयों ने राज्य की जनता के बीच इनकी पैठ और मजबूत कर दी। वे निर्णय थे – 1932 के खतियान को स्थानीयता के तौर पर लागू करना, झारखण्ड के निजी कल-कारखानों में स्थानीयों के लिए 75% सीटे रिजर्व करवा देना, आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड लागू कराना, सरकारी कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम से जोड़ना, पुलिसकर्मियों की पुरानी बहुप्रतीक्षित मांगों को पूरी करना, सर्वजन पेंशन योजना लागू करना आदि कुछ ऐसे निर्णय थे, जो आज भी झारखण्ड की जनता के बीच हेमन्त सोरेन की लोकप्रियता में वृद्धि करा देते हैं।

वर्तमान में आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार कार्यक्रम में पहली बार देखा गया कि राज्य के अधिकारी, गांवों की रुख कर रहे हैं और वहीं ग्रामीण स्तर पर ही समस्याओं का समाधान कर रहे हैं। यही नहीं देश या विदेश में जहां भी झारखण्ड के श्रमिकों व नागरिकों पर आफत आती हैं, तो जो सक्रियता हेमन्त सरकार में दिखी हैं। वैसी सक्रियता कभी देखने को नहीं मिली। उन जगहों पर त्वरित निर्णय लेते हुए अपने अधिकारियों को वहां भेजना और हर प्रकार की मदद पहुंचाना अगर कोई सीखें तो हेमन्त सोरेन से सीखें।

इसी हेमन्त सरकार ने कुछ ऐसे भी निर्णय लिये, जो किसी जिंदगी में कोई भाजपाई ले ही नहीं सकता। राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने ऐसे-ऐसे लोगों को जेल के रास्ते दिखायें, जिनमें एक की तो पूर्व की भाजपा सरकारों ने तीन-तीन बॉडीगार्ड मुहैया कराकर रखे थे। उस ब्लैकमेलर के डर से जो सच्चे व अच्छे लोग थे, वे भी थर-थर कांपते थे, क्योंकि उसे डर था कि सरकार और सरकार में शामिल लोगों से उसकी खूब पटती हैं और वो उनके खिलाफ कुछ भी करवा सकता हैं।

एक थानेदार ने तो विद्रोही24 को बताया था कि उसके घर में जब पार्टी होती थी, तो कई बार भाजपाई मुख्यमंत्री को भी उसके घर जाकर उपस्थिति बनाते हुए कइयों ने देखी थी। आईएएस-आईपीएस तो उसके कार्यालय और घर में जाकर चाय पीना अपना सौभाग्य समझते थे। परन्तु हेमन्त सोरेन ने उस तिलिस्म को तोड़ा और उसे जेल भेजकर ही दम लिया। आज उसकी हालत देखते बनती है। ऐसे में, हेमन्त सोरेन को भला कौन चुनौती दे सकता है? राजनीतिक पंडितों की मानें तो सफलता और लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे हेमन्त सोरेन को डिगा देना इतना आसान नहीं, जितना भाजपाई समझ रहे हैं।