भाड़ में जाये जनता यार, होंगे झारखण्ड में 65 पार, सेवा छोड़ो, बूथ देखो, राज्य में रघुवर सरकार बनाओ

पूरे राज्य में बिजली के लिए हाहाकार है, लोगों को पीने का पानी मयस्सर नहीं हो रहा, कानून-व्यवस्था ठप है, उद्योग-धंधे चौपट है, बेरोजगारी के कारण अब युवा आत्महत्या कर रहे हैं, कई-कई इलाकों में पिछले तीन महीने से सिर्फ इसलिए राशन नहीं मिल रहे, क्योंकि वहां इटरनेट नहीं काम कर रहा, खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास से एक बलात्कार पीड़िता का पिता जब न्याय मांगने गया तो मुख्यमंत्री ने पूरी सभा में उसकी बेइज्जती कर दी।

इसी रघुवर राज में एक रिकार्ड बना कि किसानों ने आत्महत्या तक कर ली। राज्य के लोगों ने देखा कि एक मंत्री को यहां तक बोलना पड़ गया कि कैबिनेट की बैठक में शामिल होने में उन्हें शर्म महसूस होती है, यहां का सीएम मोमेंटम झारखण्ड में भारी-भड़कम हाथी तक उड़वा देता है,  फिर भी केन्द्र में बैठे लोगों का रघुवर प्रेम देखिये, जो घटने के बजाय बढ़ता ही चला जा रहा है।

आश्चर्य तो यह भी है कि जो-जो 2014 में जनता से वादे किये गये, उसे पूरा किया गया कि नहीं, इसको लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह बैठकें नहीं करते, वे बैठक किसलिए करते हैं, तो सिर्फ और सिर्फ सत्ता के लिए, जरा देखिये कल की दिल्ली की बैठक में उन्होंने क्या कह दिया – “उन्हें जैसे झारखण्ड में लोकसभा लोकसभा चुनाव में 14 में से 12 सीटें मिली।

ठीक उसी प्रकार उन्हें झारखण्ड विधानसभा चुनाव में 65 से कम सीटें नहीं चाहिए,” यानी वोट के सौदागरों ने किस प्रकार वोट पाने के लिए राजनीतिक चाल चलनी शुरु कर दी, उसका एक झलक देखने को कल मिला, जब झारखण्ड में भाजपा को पुनः सत्तारुढ़ करने के लिए अमित शाह ने एक बैठक बुलाई, जिसमें झारखण्ड भाजपा के दिग्गजों ने भाग लिया।

इन दिग्गजों के भी होठ वहां इस बार भी सिले हुए थे, क्योंकि वे हां में हां मिलाने के लिए बैठकों में शामिल होते हैं, और जो वहां से निर्देश मिलता है, उसे यहां जमीन पर उतारते हैं, भले ही वे इस कारण जनता की आंखों में नजर से नजर मिलाकर बात ही क्यों न कर पाते हो, पर अपनी पारिवारिक और अपनी राजनीतिक जीवन की बेहतरी के लिए वे हर काम करने को तैयार रहते हैं, जिसकी इजाजत उनकी जमीर भी नहीं देती, पर क्या कहा जाये, झारखण्ड को यही सब देखना रह गया है।

इधर स्थिति तो ऐसी है कि यहां जब भी विधानसभा चुनाव होंगे तो रघुवर सरकार को जाना तय है, पर राजनैतिक पंडित बताते है कि अब चुनाव में जनता का मूड भी बदलता जा रहा है, लोकसभा में जब मोदी के नाम पर वोट पड़ सकता है, तो विधानसभा में भी मोदी के नाम पर क्यों नहीं वोट पड़ेगा, उस वक्त भी कोई नया शिगूफा लेकर ये लोग आयेंगे और जनता उनके भंवर जाल में फंसकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेगी, वो तोता और शिकारी वाली कहानी याद है न।

राजनैतिक पंडित तो ये भी कहते है कि इसी राज्य में कई पारा शिक्षक बेमौत मर गये, ईद के आस-पास एक पारा टीचर ने तो धनबाद में आत्मदाह करने की कोशिश की, गिरिडीह में तो कुछ शिक्षक भीख मांगने के लिए जिला शिक्षा अधीक्षक के पास एक पत्र तक लिख दिये कि उन्हें भीख मांगने के लिए एक दिन का अवकाश दिया जाये, ताकि अपने बच्चों का पेट पाल सके, पर वहीं पलामू में एक पारा टीचर को लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए प्रचार करते भी देखा गया।

राजनैतिक पंडित तो ये भी बताते है कि यहां के एक पत्रकार को तो भाजपा के लिए दो – दो जगहों पर मतदान करते भी देखा गया और उसकी फोटो भी खुद उसने फेसबुक पर वायरल की, पर प्रशासन उसके खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय, उसका हौसला बुलंद करता नजर आया, ऐसे में फिल्म गोपी का गीत यहां लागू हो जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए। जरा उसका एक अंतरा देखिये – “जो होगा लोभी और भोगी, वो जोगी कहलायेगा, हंस चुगेगा दाना तुनका, कौवा मोती खायेगा।”

यहां झारखण्ड में स्थिति वहीं हैं, कोई 51 डिसिमिल जमीन अपनी बीवी के नाम पर करवा लेता है, वह भी अपने पद का दुरुपयोग कर, पर सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती, यहां दूसरे दल के नेताओं पर यौन शोषण का आरोप लगता है तो उसे उलटा लटका दिया जाता है, और जब भाजपा के नेताओं पर यौन शोषण के आरोप लगते हैं तो उन्हें बचाने के लिए सीएमओ से फोन जाता है, भाई मानना पड़ेगा, क्या सरकार है?

यानी कुकर्म भी करेंगे और 65 के पार जाने का ख्वाब भी देखेंगे, कमाल है खुद दारु भी बेचेंगे, खुद स्कूल बंद करवायेंगे, सदन में प्रतिपक्ष के नेताओं को गाली देंगे, और 65 के पार जाने का ख्वाब भी देखेंगे और ये भी देखियेगा कि ये जनता जो फिलहाल बिजली-पानी-रोजगार- शिक्षा की समस्याओं से जूझ रही हैं, इन्हें फिर अपने माथे पर बिठाकर, इनकी आभार यात्रा में भी भाग लेंगी। 

कुछ राजनैतिक पंडित तो ये भी कहते है कि जनता के चाहने या न चाहने से क्या होता है, जब केन्द्र ने संकल्प कर लिया कि उसे झारखण्ड में हर हाल में सत्ता में रहना है तो वो रहेगी ही, वह उन सारे मीडिया के लोग को खरीदेगी, जो बिकने के लिए अपने शरीर पर अभी से ही अपना रेट तय कर लिये है, वह उन सारे अधिकारियों को पदोन्नति की लालच देगी, जो फिलहाल अपने लालची प्रवृत्तियों से  राज्य का नुकसान कर रहे हैं, वह उन सारे लालची विधायक जो दूसरे दलों में हैं और मजबूत स्थिति में हैं, उन्हें पैसों व पद का प्रलोभन देकर अपनी पार्टी में बुलायेगी।

क्योंकि ये सारे सत्य हरिश्चन्द्र के परिवार से थोड़े ही हैं, और देश व राज्य की सेवा के लिए राजनीति थोड़े ही नहीं कर रहे, ये तो खुला खेल फर्रुखाबादी वाले लोग हैं, अपनी पत्नी-प्रेमिकाओं के लिए ही सर्वस्व का त्याग करने के लिए राजनीति में आये हैं। इसलिए अगर भाजपा फिर 65 क्या अगर 81 भी आ जाये तो आश्चर्य मत करियेगा, क्योंकि अब बैलेट बॉक्स की जगह पर ईवीएम मशीन ने जिन्न निकालना भी तो शुरु कर दिया है। आप बात समझते क्यों नहीं?