राजनीति

झारखण्ड विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन विपक्ष का भारी हंगामा

झारखण्ड विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण के दौरान विपक्ष ने जबर्दस्त हंगामा किया, तथा सरकार को हर मोर्चे पर विफल बताया। विपक्ष का कहना था कि बकोरिया कांड, पुलिस महानिदेशक और राज्य के मुख्य सचिव को लेकर सरकार का गैरजिम्मेदाराना कार्य, राज्य में हो रही भूख से मौत तथा विपक्षी नेताओं के खिलाफ सदन में गाली-गलौज बताता है कि यहां राज्य सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है तथा ऐसी सरकार को सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं।

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बजट सत्र के पहले ही दिन सभी विपक्षी नेताओं ने सरकार विरोधी नारे लगाये तथा राज्य में हो रही भूख से मौत, भ्रष्टाचार मामले पर सरकार को अपने-अपने ढंग से घेरा। इधर सरकार ने राज्यपाल के अभिभाषण के माध्यम से अपनी पीठ थपथपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, इसी बीच राज्यपाल का अभिभाषण चलता रहा और विपक्ष राज्यपाल से इस अभिभाषण को न पढ़ने का अनुरोध करता रहा। विपक्ष का कहना था कि राज्य सरकार ने जो भी जनता से वायदे किये, वह पूरे नहीं किये और न ही सदन की गरिमा रखी।

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राज्यपाल ने अपने अभिभाषण के दौरान कहा कि महिला सशक्तिकरण, संपूर्ण स्वच्छता अभियान, कौशल मिशन, डिजिटल झारखण्ड, मोमेंटम झारखण्ड, जोहार योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना, वित्तीय समावेशन, मीठी क्रांति इत्यादि के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कृतसंकल्पित है।

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राज्यपाल ने कहा कि राज्य के खनिजों के उत्खनन एवं इससे संबंधित कार्यों में पारदर्शिता के साथ-साथ अधिकाधिक राजस्व की प्राप्ति के लिए ई-आक्शन के माध्यम से खनिज आधारित क्षेत्रों को चिह्नित करने हुए निविदा प्रकाशित कर खनन पट्टा आवंटित करने का कार्य सरकार के द्वारा किया जा रहा है।

इधर संपूर्ण विपक्ष ने एकस्वर से राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान हंगामा करता रहा तथा राज्य सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करता रहा।

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बजट सत्र के पहले ही दिन, जिस प्रकार से विपक्ष ने अपनी बातें जोरदार ढंग से रखी है, उससे साफ लगता है कि पूरा बजट सत्र हंगामेदार रहेगा, सरकार को हर मोर्चे पर घेरने के लिए विपक्ष ने अच्छी तैयारी कर ली है, जबकि सरकार के पास सिवाय रक्षात्मक रुप से सदन चलाने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। कहने को तो ये इस बार का बजट सत्र 17 जनवरी से 7 फरवरी तक हैं पर इसमें सात दिनों का अवकाश भी शामिल है, यानी मात्र 15 दिनों का ही सदन में काम-काज होगा।