सिर्फ और सिर्फ ईश्वर को पाना और उनसे प्रेम करना ही जीवन का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए – ब्रह्मचारी निर्मलानन्द

रांची स्थित योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए ब्रह्मचारी निर्मलानन्द ने सभी योगदा सत्संगियों को कहा कि वे अपने जीवन का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ ईश्वर को पाने और उनसे प्रेम करने में लगाएं, क्योंकि यह जो जीवन हैं वो क्षणभंगुर हैं। कोई भी व्यक्ति इस धरती पर सदा के लिए नहीं आया हैं। हर को एक न एक दिन इसे त्यागना ही हैं, इसलिए अच्छा है कि इस जीवन को प्रभु को पाने और उनसे प्रेम करने में लगाएं।

ब्रह्मचारी निर्मलानन्द ने यह भी कहा कि ईश्वर को पाने में कई चुनौतियां आ सकती है, पर उस पर विजय पाना उतना कठिन भी नहीं। बशर्तें कि हम ईश्वर को पाने को ही अपना महत्वपूर्ण कार्यक्रम बना लें। उन्होंने कहा कि सभी को पता है कि वे इस धरती पर सदा के लिए नहीं हैं, फिर भी वे इस भ्रम में रहते हैं कि वे सदा के लिए हैं और इस प्रकार वे प्रभु को पाने को छोड़, उनसे प्रेम करने को छोड़ अन्य भौतिक सुख-सुविधाओं को पाने में ही अपना सारा जीवन लगा देते हैं।

ब्रह्मचारी निर्मलानन्द के अनुसार, हमारी सारी एक्टिविटी ईश्वर को पाने के लिए होनी चाहिए और उसका सबसे आसान तरीका है कि हम उन स्थानों पर ज्यादा समय बितायें। जहां हमें ईश्वर व गुरु का स्पन्दन प्राप्त होता हो। उन्होंने कहा कि हम आखिर आश्रम क्यों आते हैं, उसका मूल कारण है कि हमें यहां गुरुजी का स्पन्दन प्राप्त होता हैं, और इससे हमें ध्यान करने में सहुलियत होती है। यह वह स्थान है, जहां हमारी अंतःश्चेतना जागृत होती है। हम अध्यात्म की ओर प्रवृत्त होते हैं। इससे ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम जागृत होता है।

उन्होंने सभी से कहा कि आप प्रभु को पाने के लिए एक प्रतिदिन का रुटीन बनाइये। अपने जीवन को अनुशासित करने में समय लगाये। फिर देखिये, जीवन में कैसा सुधार होता है। उन्होंने कहा कि हमें ध्यान के लिए हमेशा अलर्ट रहना होगा। याद रखें, हमारे अंदर का गुस्सा और किसी के प्रति नफरत हमें ईश्वर से सदा के लिए दूर कर देता है। हमेशा अपने कुटस्थ में अपने प्रभु अथवा गुरु को रखकर, अपनी समस्याओं का समाधान खोजिये, हल अवश्य निकलेगा।

उन्होंने कहा कि हमेशा आप समय-समय पर चिन्तन करिये और उन सवालों को उसमें रखिये कि आप कहां तक सही है? जैसे कि हम जीवन को कैसे सरल बना सकते हैं? क्या हम बुरी आदतें छोड़ सकते हैं या क्या हैं बुरी आदतें? ध्यान के लिए क्या हम जल्दी उठते हैं? हमारे ध्यान में कितनी गहराई हैं? क्या हम सही मायनों में अपने ध्यान में प्रभु की भक्ति और प्रेम को शामिल कर रहे हैं? क्या हमने ईश्वर से सम्पर्क साधने की सही मायनों में ईमानदारी से कोशिश की हैं? याद रखें, यहीं चिन्तन हमें बेहतरी की ओर ले जायेंगी और फिर हम प्रभु को पाने में निश्चित तौर पर सफल होते दिखेंगे।