अंततः EX-CM रघुवर के अतिप्रिय एवं बाघमारा के दबंग BJP MLA ढुलू ने कहा “अहं कारागारं शरणं गच्छामि”

आखिरकार तत्कालीन भाजपा नेत्री व वर्तमान में कांग्रेस नेत्री का तप बल काम आया। पिछले तीन महीने से लगातार फरार चल रहे पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के अतिप्रिय एवं बाघमारा के दबंग भाजपा विधायक ढुलू महतो को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। उसे लगा कि अब कोई किन्तु-परन्तु से काम नहीं चलेगा, अंततः कारागार के शरण में जाना ही हैं, न्यायालय में आत्मसमर्पण करने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है।

इसलिए उसने धनबाद के न्यायिक दंडाधिकारी सुश्री संगीता की अदालत में अंततः आत्मसमर्पण कर दिया और अदालत ने भी उसे जेल भेजने का आदेश दे डाला। जेल जाने के बाद ढुलू का सैंपल लिया गया, तथा जेल में ही उसे चौदह दिनों तक क्वारेन्टाइन रखने को कहा गया।

कमाल है, अदालत भी वहीं, न्यायालय भी वहीं, पर शासन क्या बदला, बेचारे की दशा ही बिगड़ गई। राजनीतिक पंडित बताते है कि अगर सत्ता नहीं बदलती, हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री नहीं बनते, तो आज भी ढुलू महतो की दबंगई उसी प्रकार चलता, जैसा की पूर्व में चलता था, पर समय जो न करा दे, फिलहाल समय ढुलू के खिलाफ है।

लोग बताते हैं कि ज्यादा दिनों की बात नहीं है, जब तक विधानसभा का चुनाव परिणाम नहीं आया था, बड़े-बड़े धनबाद के पुलिसकर्मी इसके इशारे पर नाचते थे, इसके लोगों की गुंडई से धनबाद का बाघमारा त्रस्त था, इसके लोगों की गुंडई का हाल ये था कि वहां सज्जनों का जीना हराम हो गया था, उसके लोग किसी को भी किसी भी प्रकार के झूठे केस में फंसा दिया करते थे, और पुलिस केस दर्ज किया करती थी।

पर जब ढुलू के खिलाफ केस दर्ज करने की बात आती थी, तो पुलिस की नानी मर जाया करती थी, उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, तत्कालीन भाजपा नेतृ की प्राथमिकी का दर्ज नहीं किया जाना, यहां तक की न्यायालय के आदेश तक की अवहेलना करने से पुलिस ने परहेज नहीं की, जब पुलिस को लगा कि अब केस दर्ज करने के सिवा कोई चारा नहीं, तब जाकर केस दर्ज किया गया।

केस दर्ज करने के बाद भी ढुलू को गिरफ्तार करने की हिम्मत धनबाद के तत्कालीन एसएसपी को नहीं थी, क्योंकि उसे पता था कि ढुलू पर सीएम रघुवर दास की कृपा बरसती है, पर जैसे ही सत्ता बदली, पुलिस ने अपना रंग दिखाना शुरु किया, शायद उसे आभास हो गया कि अगर कानून का पालन नहीं कराया, तो उसकी कुर्सी भी जा सकती है, परिणाम यह हुआ कि ढुलू फरार हो गया।

ढुलू तीन महीने तक दिखा नहीं, और जब दिखा तो वह न्यायालय में था, आत्मसमर्पण कर चुका था, और पुलिस उसे कोर्ट से जेल में ले जाने के लिए तैयार बैठी थी। इसे कहते है वक्त की मार, जब वक्त की मार पड़ती है तो टाइगर भी क्या बन जाता है, आपके सामने है, वो टाइगर छुप-छुपाकर न्यायालय पहुंचता है, आत्मसमर्पण की अर्जी देता है, कुछ नहीं बोल पाता, उसके भारी भरकम लोग भी असहाय सा दीखते हैं, चेहरा मुरझाया रहता है, तीन महीने फरार रहने की खुशी भी चेहरे पर नहीं दिखती, अब देखिये न्यायालय आगे क्या फैसला लेती है, समय बतायेगा, पर इतना तो यह है कि हेमन्त के शासनकाल में लोगों को कानून पर भरोसा जगा है।