बिहार के CM नीतीश कुमार से डरकर पटना के सारे अखबारों ने सच लिखने से किया इनकार, बेशर्मी का लबादा ओढ़ जहरीली शराब से मरनेवालों लोगों की मौत को संदिग्ध बताकर अपना पिंड छुड़ा लिया

बिहार में होली के दौरान जहरीली शराब पीकर जान गंवानेवालों की संख्या विभिन्न अखबारों के अनुसार तीन दर्जन से भी ज्यादा हैं, लेकिन क्या मजाल कि पटना से प्रकाशित होनेवाला कोई अखबार ये हेडिंग डाल दें कि “जहरीली शराब पीने से इतने लोगों की जानें गई हैं। कितने शर्म की बात है कि जिनके घरों से लाशें निकली, वे खुद कह रहे हैं कि उनके परिवार के इस सदस्य की मौत शराब पीने से हुई हैं, पर  ये पटना से प्रकाशित होनेवाले अखबार बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए, सारी मौतों को संदिग्ध बता रहे हैं।

जिसमें खुद को बिहार में सर्वाधिक बिकनेवाला-कहनेवाला हिन्दुस्तान, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और प्रभात खबर भी शामिल है। हमें एक बात समझ नहीं आ रही कि इन अखबारों को बिहार में किससे डर हैं? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से या विज्ञापन पर तलवार लटकने की डर से? और अगर तुम्हें इतना ही भय हैं तो पत्रकारिता क्यों कर रहे हो? जाओ किसी पटना के चौक-चौराहे पर पान की दुकान खोल लो।

अरे तुमसे कही बेहतर वे लोग हैं, जो ईमानदारी से छोटे-छोटे दुकान खोलकर ही अपने परिवार को चलाते हैं, तुम्हारी तरह किसी की जी-हुजूरी तो नहीं करते और न ही किसी को धोखा देते हैं। तुमने तो पत्रकारिता की मर्यादा को ही तार-तार करके रख दिया। मुझे तो लगता है कि आज बिहार की जनता, इन अखबारों को देखी होगी तो स्वयं शर्म से गर गई होगी कि आखिर वे किस प्रदेश में रह रहे हैं, कि जहां स्वयं को बुद्धिजीवी कहलानेवाला पत्रकार/संपादक/अखबार राज्य के मुख्यमंत्री से इतना भय खाता है कि सब कुछ जानते हुए भी मौत को संदिग्ध बताकर अपने काम को इतिश्री कर देता हैं।

आज भी हमें याद है कि एक बिहार वो भी था, जहां एक संपादक को बिहार का मुख्यमंत्री अपने यहां बुलाने की कोशिश करता है और अखबार का संपादक कहता है कि उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री के पास जाने को समय नहीं हैं और एक आज के समय को देखिये, कि बिहार के मुख्यमंत्री से बिहार की राजधानी पटना से निकलनेवाला सारा अखबार थर-थर कांपता हैं। आज का सारा अखबार उसी का प्रकटीकरण है।

 

सोशल साइट पर तो इसको लेकर खुब चर्चाएं हो रही हैं। एक पत्रकार प्रियरंजन भारती तो साफ कहते है कि संदिग्ध क्या है? पीकर मरनेवाले बतायेंगे क्या? परिजन कह ही रहे कि पी के मरे। इसी पर दो पत्रकार कमेन्टस भी कर रहे हैं। संजय कुमार कहते है कि संदिग्ध शब्द विज्ञापन के दबाव में मीडिया की लाचारी शब्द है, जबकि उदय मिश्र कहते है कि घर वाले तो कह ही रहे हैं शराब पीने से हुई हैं मौत। संदिग्ध शब्द इस बात का परिचायक है कि अखबारों को खुलकर लिखने की आजादी नहीं। बिना सेंसर अंकुश इसे ही कहते हैं। विज्ञापन चाहिए तो सच मत लिखिये।