अपने कार्यकाल में गंध मचाकर रख देनेवाले भी, चुनाव में ताल ठोक रहे हैं, आखिर रांची प्रेस क्लब से इतना लस्ट क्यों हैं भाई? ऐसे लोग जीत कैसे जाते हैं?
आखिर ये रांची प्रेस क्लब से इतना लस्ट क्यों हैं भाई, आखिर रांची प्रेस क्लब यहां चुनाव जीतकर आनेवालों को देता क्या है कि रांची प्रेस क्लब का चुनाव लड़ने के लिए, उसमें जीत हासिल करने के लिए, लोग कुछ भी करने को तैयार है। वे रांची प्रेस क्लब के वोटरों की मेम्बरिंग फीस बड़े तादाद में जमा करवा देते हैं। मंईंयां सम्मान योजना के तर्ज पर पत्रकारों को सम्मान देने के लिए एक बहुत बड़ा कार्यक्रम तक आयोजित करवा देते हैं। भोज-भात व जो मांगोगे वहीं मिलेगा के तर्ज पर हर प्रकार के कुकर्म करने को तैयार है और रांची प्रेस क्लब के कई सदस्य उनके द्वारा आयोजित इस कुकर्म में डूबकी लगाने को भी तैयार हैं।
आश्चर्य इस बात की भी है कि जिनके उपर पिछले कार्यकाल का दारोमदार था। उन्होंने काम तो कुछ नहीं किया, लेकिन गंध खुब मचाया। फिर भी वे अपने कार्यकाल को बेमिसाल बताकर रांची प्रेस क्लब के सदस्यों से वोट भी मांग रहे हैं और कई लोग उनका समर्थन भी कर रहे हैं। इससे बड़ा आठवां आश्चर्य कुछ और भी हो सकता है क्या?
ये वहीं लोग हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में राजभवन जाकर एयरपोर्ट व रेलवे स्टेशन की पार्किंग में मुफ्तखोरी व अपनी कंडीशन ठीक करवाने की गुहार लगाई। इसी कार्यकाल में रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष व पूर्व अध्यक्ष व उसके साथ गये प्रतिनिधिमंडल ने एमएलए कल्पना सोरेन से क्लब में दारु की दुकान खुलवाने में मदद करने की गुहार लगाई थी, इस प्रतिनिधिमंडल में तो रांची प्रेस क्लब का पूर्व अध्यक्ष भी शामिल था। जिसका संभ्रांत लोगों ने खुलकर विरोध किया था। इनके कार्यकाल में तो रांची प्रेस क्लब में पत्रकारों की जमकर कुटाई, गाली-गलौज, कारण बताओ नोटिस व इस्तीफे की नौटंकी बराबर चलती रही। जिस समाचार को विद्रोही24 विस्तार से लोगों के समक्ष रखता आया है।
अभी हाल ही में एजीएम के दौरान मंच से एक महिला पत्रकार ने कहा कि जो डिकोरम होनी चाहिए वो डिकोरम यहां नहीं दिखता, मर्यादाएं नहीं दिखती, वातावरण ऐसी बने कि महिला पत्रकार आ सकें, जा सकें। आखिर एक महिला पत्रकार को ऐसा क्यों बोलना पड़ा? इसका जवाब कौन देगा?
ये वहीं लोग हैं, जो एजीएम खुद बुलाते हैं। लेकिन भोजन की व्यवस्था तक ठीक से नहीं करा पाते। एजेंडे पर बात तक नहीं करते, भाग खड़े होते हैं और उसके बाद भी चुनाव में खड़े हो गये। वोट मांगते हैं। कमाल है। आखिर लोभ क्या है? क्या मिल रहा हैं, रांची प्रेस क्लब से? अगर आपको रांची प्रेस क्लब या इससे जुड़े सदस्यों को भला करना है, तो वो तो आप ऐसे भी कर सकते हैं। ये चुनाव लड़ने की इतनी बेचैनी क्यों?
जरा देखिये न। पन्द्रह सदस्यीय कमेटी में एक सदस्य का देहांत हो गया। बचे 14। इसमें धर्मेन्द्र गिरि कुलिंग ऑफ में चले गये। बचे 13 लोग। 13 में दस लोग चुनाव लड़ रहे हैं। रांची प्रेस क्लब के इतिहास में कभी भी निवर्तमान कमेटी के इतने लोगों ने चुनाव नहीं लड़ा था। अध्यक्ष अपने पद पर, कोषाध्यक्ष अपने पद पर, संयुक्त सचिव अपने पद पर व सचिव अपने पद पर लड़ रहे हैं।
हां, आपने कोई इतिहास बनाया होता तो बात समझ में आती। लेकिन आपने तो मर्यादाएं इतनी तोड़ी कि सच पूछा जाये तो आपको चुनाव लड़ने का कोई नैतिक आधार ही नहीं हैं। लेकिन आपको नैतिकता से क्या मतलब? आपको तो येन केन प्रकारेण पद प्राप्त करना है, ताकि आप सीएमओ, राजभवन, महानिदेशक पुलिस कार्यालय, सचिवालय तथा आईएएस व आईपीएस आदि के समूहों के साथ-साथ टाटा समूह व अडानी समूहों आदि के वरीय अधिकारियों से सीधे सम्पर्क में रहकर आप अपना कल्याण कर सकें। शेखी बघार सकें।
यह मैं इसलिये लिख रहा हूं कि कुछ वर्ष पहले रांची के एक थाने में, मैं कुछ काम से गया था। वहां पहले से रांची प्रेस क्लब का एक छोटा अधिकारी मौजूद था। जब वो छोटा अधिकारी निकल गया। तो रांची के उक्त थाने का थाना प्रभारी हमें बताया कि आप जानते हैं, वो कौन थे। मैंने पूछा कौन था? वो थाना प्रभारी बोला – रांची प्रेस क्लब के महत्वपूर्ण पदाधिकारी है। मैं उक्त थाना प्रभारी की इस घटिया अद्वितीय सोच पर बलिहारी गया। बलिहारी क्यों न जाऊं। यह उसकी अद्वितीय सोच थी। यह समाज के नैतिक पतन होने का सुंदर उदाहरण मेरे सामने था। पहले लोग उसकी नैतिकता व चरित्र को महान बताते हुए उसका गुणगान करते थे और आज पद पर महानता का बखान कर रहे हैं।
अब कल चुनाव है। रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष पद बड़े-बड़े लोग खड़े हैं। लेकिन जरा वे अपने छाती पर हाथ रख कर ये दावे से कह सकते हैं कि वे कितने नैतिक है? कुछ ने तो पूर्व में रांची प्रेस क्लब के चुनाव को जीतकर ऐसी नैतिकता दिखाई है कि उन्हें तो चुनाव लड़ना ही नहीं चाहिए, लेकिन वे चुनाव नहीं लड़ेंगे तो जी भी नहीं पायेंगे। क्योंकि वे इसी के लिए पैदा हुए हैं और इसके लिए जिम्मेवार भी कोई दूसरा नहीं हैं। इसके लिए जिम्मेवार वे लोग हैं, जिन्होंने ऐसे लोगों को अपना आशीर्वाद दिया और उन्हें जीतवाने में मुख्य भूमिका निभाई। इसमें कुछ लोग तो उपर चले गये और कुछ अभी भी जिन्दा है। ईश्वर ऐसे लोगों को पहले भी माफ नहीं करता था, आज भी नहीं माफ करता है।
अंत में, रांची प्रेस क्लब के सदस्यों, ईश्वर ने एक और मौका दिया है। आपको अपनी बेहतरी तलाश करने के लिए, आपके पास पहली बार इतनी बड़ी संख्या में विकल्प मिले हैं। नये विकल्प चुनिये। ऐसे लोगों को मौका दीजिये। जो रांची प्रेस क्लब के लिये कुछ कर सकें। वैसे लोगों को मत मौका दीजिये, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान गंध मचाया। एजीएम की मीटिंग छोड़कर भाग गया। एक नवनिर्वाचित विधायक के पास दारु की दुकान खुलवाने के लिए प्रतिनिधिमंडल तक लेकर चला गया। इस्तीफे की नौटंकी की शुरुआत की। एक बात और आप यह भी याद रखिये, कि आप पत्रकार हैं, पत्रकार जातिवादी नहीं होता, वो बुद्धिजीवी होता है और कुछ नहीं तो गांधी से सीख लीजिये, क्योंकि महात्मा गांधी भी पत्रकार ही थे।

भगवान पत्रकारों को विवेक दें।।