अपनी बात

ना मुंह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो….

छठी कक्षा में पढ़ रहा छोटा राजू, अपनी बड़ी बहन सविता को पहली बार दुपट्टा को नकाब का शक्ल देकर उससे मुंह छुपाकर निकलते हुए घर से बाहर जाते देखा था, तभी उसने मां से पूछा कि मां आज दीदी दुपट्टा से मुंह ढक कर क्यों निकली? पहले तो मैंने ऐसा उसे करते नहीं देखा था। बड़ी ही सहजता से राजू ने ये सवाल अपनी मां से पूछे थे। मां ने भी बड़ी सरलता से जवाब दिया था कि ये तुम जो सवाल हमसे पूछ रहे हो, इसका जवाब तुम स्वयं अपनी दीदी से क्यों नहीं पूछ लेते?  राजू ने कहा – ठीक है, दीदी जब कॉलेज से लौटेगी, तो पूछ लेंगे?

कोई शाम के सात बजे थे, सविता कॉलेज से आयी, मां बोली – सविता, हाथ, मुंह धोकर थोड़ा भगवान को शाम की आरती दिखा देना। सविता, हां मां कहकर आरती की तैयारी करने में लग गई। वह जल्द ही हाथ-मुंह धोकर धूले कपड़े पहनी और भगवान की संध्या आरती में लग गई। आरती दिखाने के बाद जब वह राजू के कमरे में गई, तो वह अपनी पढ़ाई कर रहा था। राजू को पढ़ता देख सविता ने उसे बड़े प्यार से आरती उसके माथे से छुलाया और फिर अपने काम में लग गई। सविता को आरती छूलाता देख राजू मुस्कुरा दिया था और सोचा कि दीदी उसे कितना प्यार करती है, इतना प्यार तो उसे कोई नहीं करता। यहीं सोचते-सोचते रात को खाना खाया और सो गया। अगले सुबह सविता कॉलेज की तैयारी में लग गई, और फिर उसने दुपट्टे को नकाब का शक्ल दिया और घर से निकल पड़ी। सविता को दुपट्टे का नकाब बनाकर, अपने मुंह को ढकना राजू को अच्छा लग नही रहा था, उसने सोचा कि कल तो वह भूल गया था, लेकिन आज जब दीदी कॉलेज से आयेगी तो वह जरुर पूछेगा कि आखिर वह दो दिनों से नकाब क्यों पहन रही है?

राजू तैयार था, दीदी जब भी कॉलेज से आयेगी तो वह नकाब का क्या चक्कर है? जरुर पूछेगा। सविता घर आयी और अपने रुम में जाकर दुपट्टे से बना नकाब उतारा और फिर अपने कामों में लग गई। रात को जब सविता अपने रुम में पढ़ने बैठी, तो राजू उसके रुम में आकर पूछा, दीदी आप बताओ कि आप पिछले दो तीन दिनों से दुपट्टे का नकाब बनाकर मुंह छुपाकर क्यों जाती हो, पहले तो तुम ऐसा नही करती थी। सविता ने पूछा – क्यों किसी ने तुमसे कुछ कहा हैं क्या?  राजू – कहां तो किसी ने नहीं, पर मुझे अच्छा नहीं लगता। ऐसे भी मेरे मास्टर साहेब बोल रहे थे, कि जो लोग अपना मुंह छुपाते है, वो गलत होते है, वो डर के कारण ऐसा करते है, शायद उन्हें लगता है कि गलत काम करते हुए कोई देख न लें, बस इसीलिए मैंने पूछा, क्योंकि मैं जानता हूं कि मेरी दीदी बहुत अच्छी है, और यह कहकर वह सविता से लिपट गया। सविता हतप्रभ थी, कि राजू ने ये सवाल बड़ी ही सहजता से  कहे थे, पर वो असहज हो गयी थी।

सविता ने कहा – देखों राजू दुपट्टा को नकाब बनाकर हम इसलिए चलते है ताकि धूल और गंदगी से खुद को बचा सकें तथा आंखों में धूल या गंदगी न जा सकें। राजू ने कहा, दीदी जब ऐसा हो तो सभी क्यों नहीं ऐसा करते। सविता इस पर झल्लाकर बोली, अगर कोई नही करता तो इसका मतलब ऐसा थोड़े ही न है, कि हम भी वैसा करें।

राजू क्या करता? दीदी बड़ी है, वो थोड़े ही अपनी दीदी से लड़ेगा, खासकर उस दीदी से जो दीदी हर साल उसे राखी बांधती है, ढेर सारा प्यार करती है,  यह सोचकर वह सारी बातें भूल गया। तभी एक दिन स्कूल से आते वक्त उसने अपनी दीदी को किसी युवक से हंस-हंसकर बाते करते देखा, वह सोचा दीदी का दोस्त होगा, पर उस वक्त उसकी दीदी के  चेहरे से दुपट्टे से बना नकाब नहीं था, एक पल वह रुक कर देखने लगा, तभी जिस युवक से सविता बात कर रही थी, उस युवक ने उसे कही चलने को राजी किया, फिर वह दुपट्टे से नकाब बनाई और मुंह को छुपाया, फिर युवक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठकर चल दी, चूंकि राजू पैदल था, उसे पता नहीं था कि दीदी कहां गई? वह अपने काम में लग गया।

इधर राजू का दोस्त, सोहन की बहन राधिका भी सविता के कॉलेज में एक साथ, एक ही क्लास में पढ़ती थी, राधिका ने राजू को देखा तो पूछा, राजू तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम्हें तो अभी अपने क्लास में होना चाहिए था, जाओ स्कूल जाओ। यह कहते हुए राधिका आगे बढ़ गई।

राजू ने राधिका से सवाल पूछा – दीदी, एक बात बताओं तुम अपना चेहरा क्यों नही ढकती? क्या तुम्हें धूल एवं गंदगी नहीं लगती? राधिका – क्यों?  धूल एवं गदगी जब लगनी है, लगेगी, बार-बार चेहरा क्यों ढकना, मैंने कौन सी गलती कर दी, कि मैं मुंह छुपाती फिरुं, अगर जब गलती होगी भी तो हम माफी मांग लेंगे, पर ऐसी भी क्या? कि हमें मुंह छुपाने की जरुरत पड़ जाये, ऐसी शर्मिंदगी, भगवान न करें कि मुझे उठानी पड़े। तो फिर मेरी दीदी आजकल पिछले चार-पाँच दिनो से दुपट्टे का नकाब बनाती है, और फिर उससे चेहरे छुपाकर चल देती है। राधिका का इस सवाल का जवाब, उसके पास नही था।

राजू सोचता रहा कि राधिका ने जवाब क्यों नहीं दिया? वह अपने मन में संकल्प किया कि वह सच्चाई का पता लगायेगा? क्योंकि राजू के पिता एक मैकेनिक थे, और उनके पास परिवार चलाने में भी बहुत कठिनाई होती थी, बच्चों को पढाने में तो उन्हें प्राण ही निकल रहे थे, फिर भी चाहते कि इज्जत की रोटी खाते हुए वक्त निकल जाये।

तभी एक शाम को राजू की मां ने राजू को बाजार से सामान लाने को कहा। राजू थैला उठाया और बाजार से सामान लाने को निकल पड़ा। थोड़ी देर ही गया होगा कि उसे भीड़ दिखाई पड़ी, पर उस भीड़ से कोई नाता न रखकर, वह अपने काम में लगना ज्यादा उचित समझा, तभी भीड़ से ही एक जानी पहचानी आवाज आयी, ये आवाज उसकी दीदी की थी, दीदी रो रही थी और कह रही थी कि मुझे छोड़ दो, मैं अब ऐसा नही करुंगी, उसके साथ कभी नहीं रहुंगी। आखिर ऐसा क्या हुआ?  राजू जब भीड़ के निकट गया तो देखकर हतप्रभ रह गया। दीदी नकाब बने दुपट्टे से अपना चेहरा छुपाने की कोशिश कर रही थी और दो लड़के बार-बार उसके चेहरे से नकाब उतार रहे थे और उसकी बेइज्जती कर रहे थे। राजू ने बड़ी ही तीव्रता से उन दोनों युवकों पर प्रहार किया और कहा अगर किसी ने भी मेरी दीदी के साथ गलत किया तो वह किसी को नहीं छोड़ेगा। राजू को अचानक भीड़ में देख, सविता को लगा कि उसकी रही-सही इज्जत भी चल गई, अब घर और समाज के लोगों को भी पता चल जायेगा कि वह कॉलेज के समय क्या करती है? राजू के अचानक आ धमकने और समाज के कुछ प्रतिष्ठित व प्रबुद्ध लोगो के कुद पड़ने से मामला वहां शांत हो गया, फिर राजू अपनी बहन को लेकर चल पड़ा।

घर आने पर सविता अपने रुम में गई। सविता को मुरझाया चेहरा देख, उसकी मां परेशान हो गई, मां ने सविता से पूछा कि कोई घटना तो नहीं घटी। सविता ने  मां से बात छुपाने की कोशिश की। तभी राजू ने कहा – दीदी, जब सारा समाज जान चुका है, तो फिर मां से छुपाना कैसा?  मां ही तो सबसे अच्छी दोस्त होती है, वह ही कुछ रास्ता दिखायेगी। खुलकर बताओ।

सविता ने बताया कि वह बराबर दुपट्टे का नकाब बनाकर चेहरा छुपाकर कॉलेज जाती थी, ताकि कोई मुझे न जान सके, न पहचान सकें कि मैं करती क्या हूं?  मेरे कई ब्वॉय फ्रेंड है, जिनसे हम कुछ न कुछ प्राप्त करते रहे हैं, हमें लगता था कि ये ब्वॉय फ्रेंड बहुत अच्छे है, मेरे दुख-सुख में साथ देंगे, पर ऐसा नहीं था, ये उसके बदले में मेरे शरीर से खेलने लगे थे, मैं इन सब के गिरफ्त में आ चुकी थी, कई बार इनके साथ कभी खुशी तो कभी मजबूरन, रेस्टोरेंट व होटलों में जाने पड़े थे, पर उसका परिणाम सुखद नहीं आ रहा था, आज वह अपने मन की बात कह रही थी, वह उनलोगों से रिश्ता तोड़कर एक सुखद रास्ते पर पग बढ़ाना चाहती थी, पर उसके ब्वॉय फ्रेंड उसे ऐसा करने से रोक रहे थे, आज सविता को पता लग गया था कि दुपट्टा का नकाब बनाकर, चेहरे को ढंकने के बाद भी वह उन लोगों के चंगुल से नहीं बच पाई थी, जो उसको बराबर अपना शिकार बना रहे थे।

मां ने सविता के माथे पर हाथ फेरा और कहा कि देखो तुम अपने पिताजी को ये बात मत बताना, नहीं तो उन पर क्या गुजरेगी, ये तुमलोग नहीं जानते, मैं उनके हृदय को जानती हूं, उनका मकसद तुमलोगों को खुश देखना है, जैसे ही ये बाते उन्हें पता चलेगी, उनका दिल टूट जायेगा,  फिर इस घर में कौन सा तूफान उठेगा, नहीं मालूम। गलतियां हुई है, सुधरने का मौका भी है, तुम अब नये रास्ते पर चलों, कहीं कोई दिक्कत नहीं होगा, राजू तुम्हारे साथ कॉलेज तक छोड़ने जायेगा, कोई दुपट्टा का नकाब पहनने की जरुरत नहीं, जो हम है, है… दुपट्टा का सही इस्तेमाल जरुरी है, इससे चेहरे भी छुपाये जाते है और शर्म भी। औरतों के लिए उसका लाज ही सबसे बड़ा धर्म है, लाज सिर्फ हया से बचती है, न कि दुपट्टों से। डरो मत, गलती की हो तो उसका सामना करो, किसी की हिम्मत नही कि सच के सामने आ कर खड़ा हो, तुम आज से सही रास्ता चुनों, क्योंकि जीना तुम्हें है, हम तुम्हें कब तक छिपाते या बचाते रहेंगे, स्वयं को मजबूत बनाओं और लड़ो, उनसे जो तुम्हें चुनौती दे रहे है, आगे बढ़ने से रोक रहे है, पर एक बार फिर दुपट्टे का नकाब बनाकर नहीं, दुपट्टे का सही इस्तेमाल कर, स्वयं को संस्कारयुक्त बनाकर।

सविता खुथ थी, राजू और उसकी मां ने बेहतर रास्ता बताया है, शायद यह सबक  है, उन सारी लड़कियों के लिए जो दुपट्टों का सही इस्तेमाल न कर, गलत इस्तेमाल करते हुए, वो हर प्रकार का काम करती है, जिसकी इजाजत न तो परिवार देता है और न समाज।

तभी राजू ने फिल्म ‘हमराज’ का गीत गुनगुनाया –

“ना मुंह छुपा के जियो और न सर झूका के जियो

गमों का दौर भी आये तो मुस्कुरा के जियो”

One thought on “ना मुंह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो….

  • राजेश कृष्ण

    वाह,वाह वाह।।सर कमाल का लिखा है,आदर्श संस्कार का अद्भुत मेल ,शब्द हृदयस्पर्शी है,और इतने जटिल बिषय को जिस भाव से सहज किया है,सलाम।।

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