परमहंस योगानन्द जी को मत भूलिये, हमेशा उनका स्मरण करिये, क्योंकि बिना गुरु के आप माया पर विजय नहीं प्राप्त कर सकतेः स्वामी अमरानन्द

आपके पास समय कम है। इसलिए सिर्फ ध्यान करिये। क्रिया योग में मन लगाइये। हं-सः व ओम तकनीक के माध्यम से स्वयं को जागृत करिये। अगर आप ऐसा कर पायेंगे तो आप स्वयं महसूस करेंगे कि आपको कोई भी उस सर्वशक्तिमान तक पहुंचने में बाधक नहीं बन पायेगा। ये बातें आज योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी अमरानन्द गिरि ने कही।

स्वामी अमरानन्द गिरि ने यह भी कहा कि आप जितना ध्यान की गहराइयों में जायेंगे, आप पायेंगे कि आप ईश्वर के उतने ही निकट होते जा रहे हैं। उन्होंने योगदा सत्संग मठ द्वारा बताये जानेवाले विभिन्न तकनीकों और उसके शरीर और मन पर पड़नेवाले प्रभावों की भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने इस अवसर पर कई दृष्टांतों के माध्यम से योगदा भक्तों को बताया कि वे कैसे अपने जीवन को कर्मफल से मुक्त करते हुए स्वयं को बेहतर स्थिति में ला सकते हैं।

उन्होंने कहा कि आप कोई भी काम करते हो। इतना याद रखें कि उन कामों को संपन्न करने के दौरान भी अपने गुरु व ईश्वर को याद किया जा सकता है। आप जितना आध्यात्मिक रुप से मजबूत होंगे, ईश्वर के प्रति आप उतने ही स्वयं को नजदीक पायेंगे। उन्होंने श्रीकृष्ण-अर्जुन का दृष्टांत बताते हुए कहा कि श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के समय अर्जुन से कहा था कि हमारा-तुम्हारा मिलन कोई आज का नहीं हैं। ये कई जन्मों से संबंध बना हुआ है।

ठीक उसी प्रकार, आप जो यहां इस योगदा सत्संग से जुड़े हैं तो कोई ये अकस्मात् नहीं हुआ है। आप भी कर्मफल के सिद्धांतों को भोगते हुए, इस जन्म में भी गुरु की कृपा से इस स्थल पर आये हैं। मतलब स्पष्ट है कि एक बार आपने गुरु परमहंस योगानन्द को मान लिया तो आप भले ही उनसे पिंड छुड़वाने की कोशिश करें, वो छोड़नेवाले नहीं, वे आपको आपके गंतव्य तक पहुंचाये बिना नहीं माननेवाले, चाहे आपको कितना भी जन्म क्यों न लेना पड़े।

उन्होंने कहा कि परमहंस योगानन्द जी को प्रेमावतार ऐसे ही नहीं कहा गया। गुरुजी सब देख रहे हैं। उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं। गुरुजी को आप प्रेम से ही पा सकते हैं। माया आपके जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं, पर ये भी सत्य है कि उस माया से निकालने का काम गुरु जी ही कर सकते हैं, दूसरा कोई नहीं। आप अपने गुरु को किसी भी प्रकार से भूलने की कोशिश नहीं करें। आप उन्हें सदैव अपना मानें। उनसे प्रेम करना सीखें। हमेशा उन्हें याद करें। फिर देखिये, आप कैसे इस माया रुपी संसार से स्वयं को मुक्त कर योगदा सत्संग के बताये मार्ग व उनके प्राविधियों पर चलकर ईश्वर को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करते हैं।