सीपी ने राहुल को पप्पू बोला, बमके कांग्रेसी, सदन में किया हंगामा, क्या पप्पू शब्द सचमुच असंसदीय है?

क्या सचमुच पप्पू का मतलब गाली होता है? अगर पप्पू का मतलब गाली होता है तो कई भारतीय अपने बच्चों का नाम पप्पू क्यों रखते हैं? आखिर कई हिन्दी फिल्मों में बच्चों का नाम पप्पू क्यों है? अगर कोई व्यक्ति पप्पू बोलता है और आप चिढ़ जाते हैं तो इसमें गलती किसकी है? भाई कहा जाता है कि आप जितना चिढ़ेंगे, उतना लोग चिढ़ायेंगे, आप चिढ़ना बंद कर दीजिये, मामला ही शांत, पर आप को चिढ़ना-चिढ़ाना ही अच्छा लगता है और ले-देकर झारखण्ड विधानसभा बन जाता है चूं-चूं का मुरब्बा।

झारखण्ड विधानसभा बन जाता है – मछली बाजार और झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष हो जाते हैं किंकर्तव्यविमूढ़, जबकि ये मौका होता है, विधायकों को सबक सिखाने का, सदन को आर्डर में लाने का, पर जब विधानसभाध्यक्ष ही कुछ करने की स्थिति में नहीं रहेंगे तो झारखण्ड विधानसभा में वही होगा, जो अब तक देखा गया है। सच्चाई यही है कि झारखण्ड विधानसभा में अभी तक किसी भी विषय पर अच्छी बहस होती नहीं दिखी, पर हो-हंगामा अवश्य दिखा।

झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष को लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला से सीखना चाहिए, जब कुछ दिनों पहले कांग्रेसी सांसदों ने लोकसभा की मर्यादा को प्रभावित करने की कोशिश की, उन्होंने त्वरित एक्शन लिया और देखिये फिर कैसे लोकसभा सही स्थिति में आ गई, पर झारखण्ड तो झारखण्ड है, ये कभी नहीं सुधरनेवाला। क्योंकि किसी को भी सदन सुचारु रुप से चले इसको लेकर सदन के प्रति प्रतिबद्धता नहीं, तो इनकी प्रतिबद्धता कहां है? तो नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए, प्रतिबद्धता कहां है? तो विधायकों का कोटा बढ़ाने में और अपने नेता के प्रति स्वामिभक्ति दिखाने में, तो जहां ऐसे-ऐसे विधायक सदन में चुनकर जायेंगे, वहां आप सदन की गरिमा के बारे में अगर विचार करते हैं तो आप महामूर्ख है।

अब आज देखिये न, सदन में खुब हंगामा हुआ, पक्ष-विपक्ष आपस में कुश्ती प्रतियोगिता की शक्ल में लड़ने को व्याकुल हो गये। एक-दूसरे को धमकी भी दे डाली, स्पीकर बार-बार शांत रहने को कह रहे हैं, अपने-अपने आसन पर जाने को कह रहे हैं, पर ये विधायक स्कूली बच्चों की तरह अपनी बांहे चढ़ा रहे हैं, और कहेंगे कि हम जन-प्रतिनिधि है। ये हो-हंगामा तब हुआ, जब सीपी सिंह ने कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को पप्पू कहकर संबोधित कर दिया, लीजिये फिर क्या था? कांग्रेसी विधायक इरफान गुस्से में आ गये। लोग बताते हैं कि सदन में सर्वाधिक हंगामा करने में इरफान और सीपी सिंह ही प्रमुख रहे हैं।

अब सवाल उठता है कि अगर सीपी सिंह ने राहुल गांधी को पप्पू कह ही दिया तो क्या हुआ? क्या पप्पू शब्द गाली है। शायद कांग्रेसियों को नहीं पता कि देश में आज भी कई गावों-कस्बों और मुहल्लों में बहुत सारे बच्चों के नाम पप्पू हैं, ये नाम उनके माता-पिता ने ही रखे है और उन्हें इसमें कोई गाली नहीं दिखता। लेकिन कांग्रेसियों को पप्पू शब्द में ही गाली दिखता है, दरअसल पप्पू के नाम से ही ये चिढ़ते हैं तो लोग चिढ़ाते हैं,  जिस दिन चिढ़ना बंद कर देंगे, लोग बोलना बंद कर देंगे, पर आप सुधरेंगे नहीं और कोई आपको सुधारने का ठेका नहीं ले रखा है। अब जरा 1956 में बनी हिन्दी फिल्म जलदीप फिल्म का ये गाना देख लीजिये, जिसमें एक बच्चा जिसका नाम पप्पू हैं, क्या गा रहा है? सब आपको समझ में आ जायेगा, कि पप्पू शब्द गाली है या और कुछ।


दरअसल हंगामा करने की जो आदत हैं, उससे दूरियां बनाइये। आप बच्चे नहीं, जन-प्रतिनिधि है, इसलिए जन-प्रतिनिधि की तरह रहिये, नहीं तो दिक्कत आपको होना तय है, अभी तो सीपी सिंह ही चिढ़ा रहे हैं, कल पूरा देश चिढ़ाने लगेगा, तब क्या करियेगा। ऐसे किसी की हिम्मत भी नहीं कि पप्पू को असंसदीय शब्द करार दे दें, क्योंकि चिढ़ने वालों के लिए कोई भी एक शब्द उनके कह देने से असंसदीय नहीं हो जायेगा। सी पी सिंह को भी चाहिए कि जब वे जान गये कि राहुल गांधी को पप्पू बोलने से कांग्रेसी चिढ़ते हैं तो उन्हें ऐसी शब्दों से खासकर सदन में तौबा कर लेनी चाहिए, क्योंकि सदन का समय काफी महत्वपूर्ण होता है, जनता के लिए बहस हो तो ठीक हैं, नहीं तो बेड़ा गर्क होना तय है।