अपनी बात

जिस सजायाफ्ता लालू प्रसाद ने कभी लोक-लाज व मर्यादा की परवाह तक नहीं की, उस सजायाफ्ता लालू प्रसाद को लोक-लाज व मर्यादा की चिन्ता, ये बात कुछ हजम नहीं हुई

जिन लोगों ने लालू प्रसाद यादव एवं इनके फैमिली की बिहार में शासन देखी हैं। उनलोगों ने इनके अतःतः भी जरुर ही देखे होंगे। कैसे इनके शासनकाल में लोक-लाज व मर्यादाओं का खुद इन्हीं और इन्हीं के परिवारों द्वारा हनन हुआ, वो किसी से छुपा है क्या? कहावत है – बोए पेड़ बबूर के तो आम कहां से पाये। लालू प्रसाद यादव एंड इनके फैमिली का कारनामा तो जगजाहिर हैं। देश की प्रमुख जांच एंजेसियों ने तो इनकी सारी अकड़ ढीली कर रखी हैं। वो भी ऐसी कि एक मामले में तो ये सजायाफ्ता भी हैं, जबकि अन्य और कई मामलों में फिर से सजायाफ्ता होने को एक तरह से बेकरार भी हैं।

भारतीय नीति -सिद्धांतों में तो एक कर्मफल का भी सिद्धांत हैं। जो कहता है कि तुम जैसा करोगे, उसका प्रतिफल भी तुम्हें ही भोगना होगा। चाहे तो इसी जन्म में और नहीं तो आनेवाले जन्म में, भोगना तुम्हें ही हैं। लालू यादव को तो अगले जन्म का इन्तजार भी नहीं करना पड़ा, उन्हें तो इसी जन्म में सभी मिल रहा है। जिन लोगों ने उनके शासनकाल की अनीतियां-कुकर्म देखी हैं, इनके परिवारों का कुकृत्य देखा हैं, वे अब यह भी देख रहे है कि उनके उन कुकृत्यों ने उनके और उनके परिवार का क्या हाल कर रखा है?

जरा देखिये न। लालू प्रसाद के बड़े बेटे ने, लालू का क्या हाल कर रखा हैं। स्थिति ऐसी हो गई कि सत्ता एक बार फिर हाथ से जाता हुआ देखकर लालू ने अपनी छवि को बेहतर करने के उद्देश्य से, एक डॉयलॉग सोशल साइट के माध्यम से आम जनता के बीच में रखा है। अब सवाल उठता है कि क्या बिहार की जनता इतनी बेवकूफ हैं कि वो इनके इस झांसे में आ जायेगी। अरे लालू और लालू की संतान कितने उच्च मूल्यों वाले हैं। वो किसे नहीं पता? जरा देखिये, सजायाफ्ता लालू प्रसाद ने अपने सोशल साइट पर आज लिखा क्या हैं? –

निजी जीवन में नैतिक मूल्यों की अवहेलना करना हमारे सामाजिक न्याय के लिए सामूहिक संघर्ष को कमज़ोर करता है। ज्येष्ठ पुत्र की गतिविधि, लोक आचरण तथा गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हमारे पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों के अनुरूप नहीं है। अतएव उपरोक्त परिस्थितियों के चलते उसे पार्टी और परिवार से दूर करता हूँ। अब से पार्टी और परिवार में उसकी किसी भी प्रकार की कोई भूमिका नहीं रहेगी। उसे पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित किया जाता है। अपने निजी जीवन का भला -बुरा और गुण-दोष देखने में वह स्वयं सक्षम है। उससे जो भी लोग संबंध रखेंगे वो स्वविवेक से निर्णय लें। लोकजीवन में लोकलाज का सदैव हिमायती रहा हूँ। परिवार के आज्ञाकारी सदस्यों ने सावर्जनिक जीवन में इसी विचार को अंगीकार कर अनुसरण किया है। धन्यवाद।

सजायाफ्ता लालू प्रसाद के इस फिल्मी डॉयलॉग पर बिहार के वरिष्ठ व सामाजिक मूल्यों व सिद्धांतों पर चलनेवाले पत्रकार श्री ज्ञानेन्द्र नाथ अपने सोशल साइट पर लिखते हैं कि “राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन की मर्यादा – सुचिता का ध्यान रखते हु अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है, परिवार से भी। अभी कल ही सोशल मीडिया पर तेजप्रताप ने अपनी प्रेमिका के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट की थी। उन्होंने अपनी बारह साल पुरानी मित्रता का हवाला देते हुए उसे अपनी पत्नी तक बता दिया था।

बाद में उन्होंने इस तस्वीर को डिलीट कर दिया और यह भी लिखा कि उनका अकाउंट किसी ने हैक कर लिया है। बहरहाल, इन्ही सब का नैतिक संज्ञान लेते हुए लालूजी ने उन्हें पार्टी से छह वर्षों के लिए निकाल दिया है। व्यक्तिगत रूप से मैं लालूजी के परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं जानता हूं, फिर भी इतना तो कह ही सकता हूं कि अगर इस साल बिहार में चुनाव न होने वाला रहता तो लालूजी को इतना कठोर निर्णय लेने के लिए बाध्य न होना पड़ता।

वजह ये कि इससे बहुत ज्यादा गम्भीर और बड़े बड़े पारिवारिक मामलों को लालूजी ने न जाने कितनी बार नज़रंदाज़ ही नहीं किया है बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से उसका बचाव भी किया। बहरहाल, ये उनका पारिवारिक और पार्टी का मामला है। हां, इतना अवश्य है कि अगर पार्टी से निकाले जाने का यह नैतिक आधार अपनाया जाता है तो अधिकांश पार्टियों में कम से कम 25 से 30 प्रतिशत सदस्यों की सदस्यता तो अवश्य ही चली जायेगी।

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  • शालीन वर्मा

    Lalu yadav ke bare me log kya bolte hai isse lalu ke wayaktitw par koi frk nahi padta hai,lalau ek vichar hai ek itihas hai ek shakti hai garibon ka …itni aukat bjp me nahi hai jitni lalau ne dikhaya tejpratap ko bedakhal karke…

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