राजनीति

छोटी-छोटी घटनाओं पर ट्विटर के माध्यम से अधिकारियों को आदेश देनेवाले CM की पत्रकारों के मामले में चुप्पी हैरान करनेवाली – प्रीतम

चतरा हो या दुमका, हजारीबाग हो या रांची, लगातार पत्रकारों पर हो रहे अत्याचार, झूठे केस दर्ज करने के मामले और बदसलूकी से राज्य के पत्रकारों में आक्रोश गहराता जा रहा है, और ये आक्रोश आनेवाले समय में एक भयंकर तूफान का रुप ले सकता है, इसे सभी को समझ लेने की जरुरत है। हजारीबाग के दौरे पर गई  AISMJW ऐसोसिएशन की टीम ने आज विद्रोही24 को बताया कि हजारीबाग के पत्रकारों को फर्जी मामले में जेल भेजने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही ना कर उल्टे बचाने का अब प्रयास किया जा रहा है।

हालांकि इस मामले में एसोसिएशन का प्रतिनिधिमंडल डीजीपी से भी मिला था, डीजीपी के आश्वासन पर यह उम्मीद बंधी थी कि जल्द ही दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी, लेकिन अब तक नतीजा शून्य ही कहा जाएगा। अभी यह मामला ठंडा भी नहीं हुआ था, कि रांची के वरिष्ठ पत्रकार केबी मिश्रा पर एक घटिया और वाहियात शिकायत लिखकर फर्जी मामला दर्ज कर दिया गया। इस मामले की जानकारी जब एसोसिएशन को हुई तो एसोसिएशन का प्रतिनिधिमंडल केबी मिश्रा के आवास पर जाकर मिला और जब शिकायतकर्ता की लिखित देखी तो शिकायत को पढ़ते ही महसूस हुआ कि यह पत्रकार को डराने का असफल प्रयास है।

गोंडा में भी कुछ ऐसा ही मामला था जहां एक सरकारी कर्मचारी ने घूसखोरी की और जब पत्रकार दिलखुश कुमार ने खबर चलाई तो उसके ऊपर फर्जी मामला दर्ज कर दिया गया।अभी ये मामले ठंडे नहीं हुए थे कि चतरा में डीएसपी और उसके बॉडीगार्ड ने मिलकर पत्रकार मोहम्मद अरबाज को बेवजह पीट दिया। इससे आहत होकर अरबाज जब शिकायत करने पहुंचा तो उल्टे उससे बांड लिखवाकर उसे छोड़ दिया गया कि पुलिस से कोई शिकायत नहीं है। अब अरबाज चीख-चीख कर कह रहा है, कि सारी घटना सीसीटीवी में कैद है तो फिर चतरा पुलिस बताए, देर किस बात की है, क्या सीसीटीवी खराब है या फिर कोई सुन नहीं रहा? मामले का खुलासा कब करेंगे एसपी साहब?

आश्चर्य है कि इन सब घटनाओं में सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आती। जहां ट्विटर पर छोटी-छोटी बातों में मुख्यमंत्री साहब संज्ञान ले लेते हैं और दीन-दुखियों की सेवा का आदेश संबंधित जिला के अधिकारी को देते हैं, वैसे हमारे न्यायप्रिय मुख्यमंत्री ऐसी घटनाओं पर ट्विटर में कोई जवाब भी नहीं देते। इससे भी दुखद बात यह है कि हर छोटे-बड़े मामले को मीडिया कर्मियों के माध्यम से उजागर करने वाले विपक्षी विधायकों और सांसदों की भूमिका इस मामले में नगण्य है। तो अब सवाल यह है कि क्या मीडियाकर्मी कमजोर है या उनके संगठन सो चुके हैं।

प्रीतम सिंह भाटिया ने विद्रोही24 से कहा कि इन सबसे ऊपर ऊठकर वे झारखण्ड के पत्रकारों को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि जब कोई काम नहीं आएगा तो AISMJWA इस प्रकार की लड़ाई को तब तक लड़ेगा जब तक अंजाम तक सारे मामले ना पहुंच जाएं। प्रीतम सिंह भाटिया ने यह भी कहा कि इधर देखा जा रहा है कि पत्रकारों के नाम पर एसोसिएशन चलानेवाले कुछ संगठन पत्रकारों का हित कम, अपना हित ज्यादा साध रहे हैं।

वे उन्हें बता देना चाहते है कि ऐसे लोगों को भी करारा जवाब दिया जायेगा। देखने में आ रहा है एक दलाल किस्म का खुद को पत्रकारों का नेता बताने वाला चिल्लर इस काम में लगा हुआ है, वह ढोंगी एक अखबार भी चलाता है, हालांकि सरकार से लड़ने की उसकी शक्ति भी नहीं है, क्योंकि कहीं न कहीं उसका विज्ञापन ना बंद हो जाए इसकी उसे चिंता है।

कुछ अधिकारियों के जूते ढोने का जिंदगी भर उसने काम किया है, ऐसे उसके नाम से सब वाकिफ हैं। कभी उसे जेल भेजने के लिए अपनी जिप्सी में लादकर थाने लाने वाले पुलिस के वरीय अधिकारी भी उसके इस नये अंदाज से उसकी हरकतों पर चुस्कियां ले रहे हैं, पर उसे लगता है कि वो जो कर रहा हैं वो ही सर्वथा सत्य है।