अपनी बात

मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र सिर्फ नाम का, नहीं मिलता महिलाओं को न्याय, पुरस्कृत होते हैं आरोपी

आपका यौन शोषण हो या आपके साथ कुछ भी हो जाये या आप मर जाये। झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को कुछ भी फर्क नहीं पड़ता और न ही फर्क पड़ता है मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र को। ऐसे तो मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र के ऐसे बहुत सारे कारनामे हैं, जिन कारनामों की चर्चा सोशल साइट पर मौजूद है, पर क्या मजाल कि मुख्यमंत्री रघुवर दास, मुख्यमंत्री के सचिव सुनील बर्णवाल की कानों पर जूं तक रेंग जाये। ये तो आजकल स्वयं को साक्षात भगवान समझ रहे है। इन्हें कुछ भी करने का अधिकार है, अगर कोई शिकायत मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र तक आये तो उस शिकायत/समस्याओं को बिना सुलझाये ही, शिकायत/समस्याओं पर डिस्पोज्ड का बोर्ड लगाने का भी इन्हें अधिकार है। आजकल ज्यादा मामलों में मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र, मुख्यमंत्री रघुवर दास और मुख्यमंत्री के सचिव सुनील कुमार बर्णवाल के इशारे पर बिना शिकायत/समस्याओं को निबटाए ही डिस्पोज्ड का बोर्ड लगा दे रहा है।

जब शिकायतकर्ता पुछ रहा है कि भाई आप ये बताओं कि, आपने जो उसकी शिकायत पर डिस्पोज्ड का बोर्ड लगाया, वह डिस्पोज्ड कैसे हुआ?  उस पर क्या एक्शन लिया गया? उधर से कोई जवाब तक नहीं मिलता। अब सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में आये शिकायतों और समस्याओं को बिना सुलझाये ही निष्पादित हो जाने का बोर्ड लगेगा तो फिर लोग मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र क्यों जायेंगे? इससे तो साफ लगता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास, जनता की आंखों में धूल झोंक रहे हैं और इसके नाम पर मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवों का समूह राज्य के खजानों को लूट रहा है।

उदाहरण आपके समक्ष है – 8 अगस्त  2017 को एक शिकायतकर्ता ने मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में एक शिकायत दर्ज करायी। जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर है – OL/HAZ/17-1296 और शिकायत संख्या 33976 है। शिकायत, गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग से संबंधित है। शिकायत यह है कि – घाटशिला जेल में स्थापित क्लर्क दीपांजलि अमृता टोप्पो का दिनांक 11.6.17 को जेलर अनिमेष चौधरी द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था। कारा महानिरीक्षक ने इसे लेकर तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की थी, जिसमें अनिमेष चौधरी को दोषी पाया गया था। उसके बावजूद आरोपी जेलर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, उलटे उन्हें घाटशिला से हटाकर, पुरस्कारस्वरुप धनबाद जेल में पदस्थापित कर दिया गया।

शिकायतकर्ता की मांग थी कि जांच समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर जेलर के विरुद्ध कार्रवाई की जाय, और सर्वोच्च न्यायालय के विशाखा जजमेंट के आलोक में कारा विभाग में काम करनेवाली सभी महिलाओं की सुरक्षा का इंतजाम किया जाय। जानकारी के अनुसार पूर्व में भी कई मामलों में उक्त जेलर सजा पा चुका है। ऐसे आरोपी को धनबाद जेल में पदस्थापित करने से, इस प्रकार के लोगों को मनोबल बढ़ेगा और महिलाओं का मनोबल टूटेगा।

आश्चर्य इस बात की है कि इतनी बड़ी घटना को मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र पचा गया और इस मामले को डिस्पोज्ड कहकर बंद कर दिया। क्या यहीं न्याय है?  क्या मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र का यहीं कार्य है?  हमारे अनुसार ये तो बेशर्मी और अन्याय की पराकाष्ठा है, जहां महिलाओं को न्याय नहीं मिले, जहां यौन शोषण करनेवालों पर राज्य सरकार मेहरबान हो, वह सरकार क्या जनता का हित करेगी।

ये सरकार इतनी बेशर्म है कि आज भी जहां महिलाएं बड़ी संख्या में कार्य करती है। उन विभागों में यौन उत्पीड़न आंतरिक शिकायत समिति का गठन नही करायी हैं। जिसके कारण राज्य के कई विभागों में इस प्रकार के मामले खुलकर नहीं आ रहे?  ज्यादातर महिलाएं इज्जत जाने के भय से मुंह नहीं खोल रही और सरकार बेशर्मी से दांत निपोर रही है?

हाल ही में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने यौन उत्पीड़न आंतरिक शिकायत समिति का गठन करवाकर, उसका अध्यक्ष शालिनी वर्मा को बनाया था। अब शालिनी वर्मा को रांची से हटाकर दुमका पदस्थापित कर दिया गया है, ऐसे में यहां भी इस समिति का बंटाधार होना तय है।

याद करियेगा, मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत महिलाकर्मियों ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को, इसी बात के लिए दरवाजा खटखटाया था, पर आज तक उन महिलाकर्मियों को न्याय नहीं मिला, जबकि सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में कार्यरत सभी अधिकारियों को इस बात की जानकारी है। ऐसे में राज्य की महिलाएं कितनी सुरक्षित है, जनता को स्वयं जान लेना चाहिए, शायद यहीं कारण है कि अब कोई महिलाएं मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र जाकर अपनी समस्याएं लिखवाना नही चाहती, क्योंकि जानती है कि ये करेंगे कुछ नहीं निष्पादित का बोर्ड लगवाकर अपनी पीठ थपथपा लेंगे और बेकार में उनकी इज्जत का और ये फलूदा बना देंगे।