अपनी बात

योग व ध्यान का थीम बना जनता को दिखानेवाले चंद्रशेखर आजाद दुर्गापूजा समिति के लोगों थोड़ा योग व ध्यान का मतलब भी समझो, कानफाड़ू DJ बजा भजन गाने से शांति नहीं, अशांति आती है

थीम भारत का। थीम भारत के योग व ध्यान का। थीम भारतीय संस्कृति का और आप (चंद्रशेखर आजाद दुर्गा पूजा समिति) कर क्या रहे हैं, तो सदर अस्पताल की चहारदीवारी को तोड़कर अस्पताल के परिसर में पंडाल बनाते हैं और उसकी चहारदीवारी के सटे मंच बनवाकर, उस मंच पर भजन गायक/गायिकाओं को बुलाकर कानफाड़ू ध्वनिविस्तारक उपकरणों का प्रयोग कर अस्पताल में इलाजरत लोगों का नींद तो हराम कर ही रहे हैं, उन्हें ठीक से अपना इलाज भी नहीं करवाने दे रहे हैं। यही नहीं सड़कों पर चलनेवाले हृदय रोग से पीड़ित लोगों-बुजुर्गों को परेशान करके रख दे रहे हैं। क्या दुर्गापूजा का मतलब यही होता है?

मैं चंद्रशेखर आजाद दुर्गा पूजा समिति के आयोजकों से ही पूछता हूं कि उनके घर में किसी सदस्य का तबियत खराब हो या हृदय रोग से पीड़ित हो और उनके ही घर के ठीक सामने कानफाड़ू ध्वनिविस्तारक उपकरण लगाकर रात भर भजन गवा दिया जाये तो वे क्या करेंगे? आश्चर्य तो हमें जिला प्रशासन पर भी आता है कि आखिर वो अस्पताल परिसर के आस-पास ऐसे आयोजनों की अनुमति कैसे दे देती हैं।

आयोजक तो कहेंगे कि हम बहुत वर्षों से वहां ऐसा आयोजन करते रहे हैं। भाई आप करते होंगे। उस वक्त सदर अस्पताल इस प्रकार का नहीं था। लेकिन अब उस सदर अस्पताल में काफी परिवर्तन हुआ है। वहां अब नाना प्रकार के रोगी वहां इलाजरत हैं। उन्हें इस प्रकार के आयोजन से दिक्कत तो आयेगी ही। आप दुर्गापूजा का आयोजन करें, हल्की ध्वनिविस्तारक उपकरणों का उपयोग करें, कौन मना करता है, पर समाजसेवी के नाम पर, पूजा के नाम पर आप किसी को चैन से रहने ही न दें। ये कौन सी पूजा है भाई?

आजकल तो जिसे देखिये, जागरण के नाम पर, भजन संध्या के नाम पर डीजे लगाकर जो मन आये, वो भी धर्म के नाम पर किये जा रहा है। आश्चर्य तो तब होता है कि जो पूजा में अपने पंडाल का थीम – योग व ध्यान को रखता है, वो भी सही मायनों में दूसरों को तो योग व ध्यान के प्रति आकृष्ट होने का संदेश देता हैं पर खुद डीजे में ही अपने व अपने परिवार व इष्ट मित्रों के लिए आनन्द ढूंढ लेता है। पता नहीं आखिर ऐसी सोच कहां से आती है।

आजकल तो मैं देख रहा हूं कि चंद्रशेखर आजाद दुर्गापूजा समिति के आयोजकों का समूह अपने नेतृत्वकर्ता के साथ मिलकर कई मीडिया हाउसों में जाकर मीडियाकर्मियों को चुनरी जाकर ओढ़ा आये। अब सवाल उठता है कि ये चुनरी कहां की थी, किसकी थी, आप कौन सा सम्मान ले और दे रहे थे। क्या वो चुनरी मां दुर्गा से संबंधित थी? क्या वो पूजित चुनरी थी? क्या वो आशीर्वाद से सिंचित थी? उत्तर होगा – नहीं।

तो इसका मतलब तो यही हुआ न कि, फिर आप बाजार गये और थोक भाव में लाल चुनरी खरीद ली और चल पड़े सम्मान का पिटारा लेकर सम्मान बांटने और आश्चर्य है वैसे मीडिया हाउस के लोगों पर कि वे उस चुनरी को पहनकर खुद पर इतराने लगे। सोशल साइट पर चुनरी और चुनरी ओढानेवाले का फोटो डालकर डॉयलॉग लिखने लगे। क्या यहां की जनता मूर्ख है, वो नहीं समझ रही कि आनेवाले समय में चुनाव होनेवाले है और इसकी अभी से ही तैयारी चल रही है। पहले से ही मीडिया हाउस के लोगों को अपने पॉकेट में रखने की तैयारी होने लगी है उसमें ये चुनरी वितरण कार्यक्रम भी शामिल है।

चंद्रशेखर आजाद दुर्गा पूजा समिति से जुड़े महानुभावों, दुर्गापूजा समिति में चंद्रशेखर आजाद का नाम लिख देने से आप चंद्रशेखर आजाद नहीं हो जाते। आपको उनसे गुण भी सीखना चाहिए और अगर गुण नहीं हैं तो चंद्रशेखर आजाद का नाम बदनाम करने का आपको अधिकार नहीं हैं। चंद्रशेखर आजाद आपसे ज्यादा धमाका करते थे।

लेकिन वो धमाका अंग्रेजों की नींद हराम करने के लिए थी, लेकिन आपका जो धार्मिक धमाका है, वो आम आदमी की नींद हराम कर दी है। इस पर जरा ध्यान दीजिये। जो थीम दिखाइये। उस थीम पर आप भी चलिये। चुनरी ओढ़ाकर मीडिया हाउस को उल्लू जरुर बनाइये, वे उल्लू बनने के लिये ही बने हैं, पर जनता को उल्लू बनाने का अधिकार आपको किसने दे दिया?