प्रेम कैसा हो यह कला गोपियों और विदुर से सीखिये, भक्ति का फल सुख-सुविधा प्राप्त करना नहीं और न ही समस्याओं का समाधान है, ये तो प्रेमानन्द में डूबने का नाम हैः ब्रह्मचारी सच्चिदानन्द
परमहंस योगानन्द जी ने अपनी पुस्तक योगीकथामृत के ‘मेरे गुरु के आश्रम में मेरी कालावधि’ अध्याय में लिखा है कि
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